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________________ कलौंजी २३३२ नहीं लगते । छिड़कने से पूर्व इसमें कपूर का चूर्ण भी मिला लेते हैं। बीज पित्तघ्न भी हैं, श्रतएव तज्जन्य वमन निरोधार्थ इनका श्रांतरिक प्रयोग होता है। बीजों कों भून पीसकर मलमल की थैली में भरकर पोटली बनाकर निरंतर सूँघने से सरदी और नाकसे पानी बहना (Catarrh of the nose ) शांत होता है । प्रसूता नारी की प्रसवोत्तर पीड़ा हरणार्थ कलौंजी के बीजों को पीपर, सेंधा नमक और मदिरा के साथ प्रयोगित करने से उपकार होता है। कलौंजी, जीरा, कालीमिर्च, किशमिश, इमली का गूदा, अनार का रस, सोंचल नमक, इनके चूर्ण का गुड़ और मधु में बनाया अवलेह श्ररुचि और क्षुधानिवृत्ति में श्रतीव गुणकारी होता है । ( चक्रदत्त ) Indian_Indigenous Drugs & plants. ) आर० एन० चोपरा - कलौंजी व्यक्त वातालोक और जठराग्निदीपक (Stomachic) गुणविशिष्ट होती है तथा अन्य सुगंधित एवं तिक पदार्थों के साथ इसका व्यवहार होता है । इसके योग से पामा (Eczema ) और व्यंग (Pityriasis ) में प्रयुक्र वाह्य प्रयोग की उत्तम अनुलेपनौषधि इस प्रकार बनती है— कलौंजी का चूर्ण २ श्राउंस (५ तोले), बकुची २ श्राउंस ( ५ तोले ), गुग्गुल ( Bdellium) ५ तोले, दक्षिणी दाव-मूल-चूर्ण ( Coscini radix ) ५ तोले, गंधक २॥ तोले, धौर नारियल का तेल २ पाइंट, यथाविधि मलहम वा तेल बनाकर काम में लाएँ । (इं० ० ई० पृ० ५८७ ) मोहीदीन शरीफ़ - प्रभाव - यह जठराग्नि दीपक, वातानुलोमक, उत्त ेजक, बल्य, ज्वरहर और कृमिघ्न है । आमयिक प्रयोग — यह अजीर्ण और दुर्बलता के कतिपय भेदों में तथा कतिपय साधारण प्रकार के बाल ज्वरों में उपकारी सिद्ध हुई है । उपर्युक्र रोगों में से किसी एक रोग में उन औषधि के सेवन काल में बालकों के मल में के निर्गत केचुए अवलोकन किये गये हैं। मुसलमान लोग घोषध - कलौंली और भोजन दोनों में इसका व्यवहार करते हैं । ( मे० मे० मै० पृ० ६ ) कलौंजी को पानी में पीसकर उससे बाल धोने से सात दिन में बाल लम्बे हो जाते हैं । कलौंजी १ तो, प्याज के बीज १ तो०, कुसुम के बीज अर्थात् कड़ १ तो० कटेरी की जड़ १ तो०, सोंठ १ तो०, म्योंड़ी की जड़ की छाल, (क) ४०, करास की जड़ की छाल ४तो० इनसबको जो कुछ कर रखें। इसमें से १ तो० से ४ तो० तक श्राध सेर पानी में काथ करें, जब एक छटांक पानी शेष रहे तब इसे छान कर दो तोला पुराना गुड़ मिलाकर स्त्री को पिलाने से रुद्ध श्राव का प्रवर्त्तन होता है । — लेखक | कोमान के मतानुसार साधारण सूतिकाज्जर में यह श्रौषधी लाभकारी है । कायस और महस्कर के मतानुसार सर्प दंश और बिच्छू के डक पर यह श्रौषधि निरुपयोगी है। कलौंजी को पीसकर छाछ में मिलाकर कथित कर नारू पर मलकर लगाने से तीन दिन में समूचा नारू निकल जाता है । यदि नारू टूट गया हो तो कलौंजी के पत्त े, बीज और डालियाँ पीसकर बाँध देने से लाभ होता है । इसके तीन माशे चूर्ण को तीन माशे मक्खन में मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है। कलौंजी को पानी में पीसकर शहद मिलाकर पीने से मसाने और गुर्दे की पथरी निकल जाती है T कलौंजी को जलाकर उसकी राख पानी में पीने से और सुखी राख को मस्सों पर मलने से बवासीर में उपकार होता है । ( २ ) एक प्रकार की तरकारी | इसके बनाने की यह रीति है कि - करैले, परवर, भिंडी, बैंगन श्रादि का पेटा चीरकर निम्न मसाले खटाई, नमक के साथ भरते हैं। और उसे तेल वा घी में तल लेते हैं । कलौंजी के मसाले में ये द्रव्य पड़ते हैंकलौंजी १ छँ०, धनियां भुनी हुई : बँ०, मेथी भुनी हुई १ छँ० सोंफ १०, जीरा सफेद
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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