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कलौंजी जीर
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' छँ०, ज.रा. स्याह १छँ०, कालीमिर्च श्राधी छँ०, लालमिर्च श्राधी छँ, हलदी १ तो, श्रमचुर २ छँ, सेंधा नमक १ छँ०, भुनी हींग तलाब १ तो० इन सब को बारीक करके रखें । कलौंजी जीरु -[ गु० ] कलौंजी । मँगरैला । कलौंदा -संज्ञा पु ं० [सं० ? ] घोक्कार | लु० क० ।
संज्ञा पुं० [देश० विहार ] एक प्रकार का खट्टा फल जिसका प्रायः अचार बनता है । कलौंस - वि० [हिं० काला + औंस ( प्रत्य० ) ] काला पन लिये । सियाही मायल |
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संज्ञा पु ं० कालापन । स्याही | कालिख | कलौथी - संज्ञा स्त्री० [सं० कुलत्थ ] मुँगरा चावल | क़लौली - [?] एक प्रकार की बड़ी मुग़त्री | क़ाज़ | कल्कक - [फ़ा॰] तुख़्म खु । खु। कल्कंद-[ ? ] नीलाथोथा ।
करकंदी - [ रू० ] एक प्रकार का ज़ाज । कल्कदीस । क़ल्अ-[ अ ] उखाड़ना । उखाद डालना | जड़ से |
उखाद डालना ।
कल्उल्. हुम्मा - [ श्रु० ] उबर उतरना । बुख़ार उतना | Termination of Fever क़ड सन्न् - [अ०] दाँत उखाड़ना । दाँत निका• खना । दन्तोत्पाटन : 'Tooth Eotra
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कलक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० क्री० ] ( १ ) जल में पिसे हुये द्रव्य का पिंड । किसी द्रव्य वा चूर्ण को सिल पर पीसने से कल्क प्रस्तुत होता है । जैसे"यत्पिढं रसपिष्टानां तत्कल्कं परिकीर्त्तितम् ।” च० । गुलूला लुगदी । ( २ ) शहद आदि डाल कर इसकी मात्रा एक कर्ष (२ तो० ) है । परिभाषा प्रदीप के अनुसार इसमें शहद, घी और तैल दूना, मिश्री वा गुड़ बराबर और द्रव पदार्थ चौगुना डालना चाहिये । प० प्र० १ ख० । पिसो हुई चीज । यथा"कल्को मध्वादि पेषितैः ।" रा०नि० व० २० । "य: रिडचा पिष्टानां स कल्क इति कीर्तितः । वृद्ध वैद्यवचः साक्षात्कलको दृषदि पेषितः । मात्रा पिचुमिता तत्र द्विगुणं माक्षिकादिकम् । सितां गुड़ समं दद्याद्द्वा देयाश्चतु गुणाः ॥” इति कश्क विधिः ।
कल्कवानीस
(३) घृत व तेल का किट्ट । तत्तछर । कीट | मे० द्वि । (४) सिल पर पिसी हुई वहसूखी वा जल मिली हुई वस्तु जिसे घी वा तेल पकाते समय उसमें डालते हैं। श्रावाप । प्रक्षेप । यथा" द्रव्यमात्र शिलापिष्टं शुष्कं वा जलमिश्रितं । तदेवसुरभिः पूर्वै: कल इत्यभिधोयते" प० प्र० १ ख ० । ( १ ) गोली या भिगोई हुई श्रोषधियों की शिल पर बारीक पीसकर बनाई हुई चटनी । लुगदी । अवलेह | इसे कपड़े में रखकर निचोड़े हुये रसकी मात्रा २ तोला है । भा० । ( ६ ) कान की मैल । खूँट । श० २० । (७) तुरुष्क नामक गंध-द्रव्य । शिलारस । सिह्नक । रा० नि० ० १२ । (८) विष्ठा । ( 8 ) कीट । किट्ट । मैल | मल । मे० कद्विकं । (१०) हाथी दाँत । करिदन्त । वै० निघ० । ( ११ ) बहेड़े के पेड़ । ( १२ ) चूर्ण | बुकनो । ( १३ ) पीठी । ( १४ ) गूद्दा ।
क़ल्क़ताया - [अ० ]आँख का एक रोग जिसमें कार्निया की झिल्ली के नीचे पीप बंद होकर उस स्थान को खा जाती है और वह स्थान नाखुना की तरह मालून होता है । कमूनुमिहः । हाइपोपीन Hy popayon-(श्रं० )।
क़ल्क़तार - [ रू०] पीले सुनहरे रंग का ज्ञाज । कूलं
क़तार ।
कल्क़द्दीस - [ रू० [] जलाया हुआ ताँबा । रू सुख़्तज । कल फफल-संज्ञा पुं० [सं० पु ] अनार । दाड़िम वृक्ष । रा० नि० ० ११ । कल्करोध-संज्ञा पुं० [सं० पुं०] पठानी लोध । पट्टिकारोध | रा० नि० व० ६ । क़ल्क़लंत, कल्कुलंद - [ रू० हीरा कसीस ।
ज़ाज
अनज़र ।
क़ल्क़लान - [ ? ] चकवड़ । कुञ्जकुल । कल्कलानज - [ ? ] एक हिंदी माजून का नाम । क़ल्कलानियः - [अ०] फ़ाख़्ता | पंडुक | पेड़ की । कल्फलानी - [ ० ] फ़ाख़्ता की तरह का एक पक्षी । कल्कलः - श्र० ] ( १ ) गति देना । हिलाना | मिलाना । ( १ ) विकलता । बेचैनी । क्षोभ । जोरा ।
कल कलीक - [ तु ] सायर । पुदीना कोही । कल्कवानीस - [ ? ] मंदूर |