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________________ कह:जुद्रिय्यः काह:स अबानिय्यः नोट-बरून एक व्यक्ति का नाम है जिसे | एन्डेमिकल्सर Endemic Ulcer. (अं.) सम्भवतः सर्व प्रथम इस प्रकार का व्रण हुश्रा था नोट-पूर्वीय देशों में होनेवाले इस प्रकार के वा जिसने सबसे पहले इस प्रकार के व्रण की व्रणों को डाक्टरी में फ्युरंक्युलस श्रोरिएण्टेलिस चिकित्सा की थी। इसलिए इस प्रकार के व्रण अर्थात् पूर्वीय व्रण (कुरूह मश्रक्रियः, सबूर को उसी के नाम से अभिहित किया गया। शिर्कियः वा दमामील शिर्कियः) आदि नामों से अर्वाचीन गवेषणाओं से ज्ञात हुआ है कि इस अभिहित करते हैं; पर जब विशेष स्थान में इस प्रकार का व्रण साधारणतः यक्ष्मा के माद्दे से प्रकार का फोड़ा हो तब उसे विशिष्ट नाम से हुमा करता है । इससे ऐसे ज़ख़्मको टयुबरक्युलस | अभिहित करते हैं। जैसे, देल्ही सोर (देहलवी अल्सर Tuberculous Ulcer कहते हैं। फोड़ा ), लाहौर सोर (लाहौरी फोड़ा) कहः जुड़िय्य:-१०] वह ज़ल्म जो आतशक से इत्यादि। पैदा हो । औपदंशीय क्षत । पातशकीय ज़ख़्म । | कह : मुतअफ्फिन:-[१०] एक प्रकार का ज़ख्म कह : अजियः (१०) शंकराइड Chanc- जिसमें से सड़ायँध और बदबू आती है। पूतिगंध riod, शंकराइड अल्सर Chancriod युक्त व्रण । सड़नदार ज़ख़्म । मुत्त्रफिन ज़ख़्म । Ulcer, सिफलिटिक अल्सर Syphilitic प्युटिड अल्सर Putrid Ulcer.(अं०) Ulcer (अं०)। कह : मुत्कादिम:-[१०] एक प्रकार का व्रण जो कहतन-[फा०] मकड़ी। प्रायः पिंडली पर हुआ करता है और जिसके क्र.: फल्ग़मूनिय्य:-[१०] एक प्रकार का व्रण, किनारे उभरे हुये होते हैं। इसकी सतह पर जिसके किनारे अधिक सूजे हुये और वेदनापूर्ण अंकुर नहीं आते। तिब में ऐसे व्रण को "बु त्म" होते हैं और उसमें से बहुतसा मवाद निकलता है कहते हैं । चिरकारी व्रण । पुरातन प्रण। देरीना संशोफत्रण । सूजा हुश्रा व्रण- मुतवरिम जन्म ।। जख्म । पुराना ज़ख्म । कह : मुत्वरिमः (१०)। क्रॉनिक अल्सर Chronic Ulcer, इंब्युकर्ह बल्खिय्यः- अ० ] दे॰ “बल्लिय्यः । लेंट अल्सर Indulent Ulcer, कैलस कह: बसीत:-[१०] वह पोपदार ज़ख़्म जिसमें न अल्सर CallousUlcer (अं०)। दर्द हो और जो न बहता ही हो । सादा कह । कह : मुरक्किब:-[१०] वह प्रण जिसमें वेदना बा सामान्य क्षत | Simple Ulcer. । पीप बहना इत्यादि व्रण पूरण बिरोधी उपसर्ग ह.: मरियल बौल-[१०] पेशाब की नाली का वर्तमान हों । मिश्र व्रण । मुरक्कब कह। ज़ल्म जिससे पोप पाती है। सूजाक । सूजनक । | कर्हरी-संज्ञा स्त्री० दे० "करहरी"। सपूयमेह । तत्र कीवः (अ.)। गनोरिया। कहः वजिर:-[अ० ] वह अशुद्ध व्रण जिसमें अधिक Gonorrhoea, ग्लीट Gleet (अं०)।। परिमाण में गंदे मवाद हों। अस्वच्छ बण । नोट--अंगरेजी शब्द ग्लीट पुरातन सूजाक के ज़ख्म कसी फ। प्युटिड अल्सर Putrid लिए प्रयुक्त होता है। Ulcer (अं०) कई : मिअदियः-[१०] प्रामायिक व्रण । मेदे का कहः स अबानिय्यः-[अ० ] वह व्रण जो एक जगह से दूसरी जगह पर स्थानांतरित होता रहे। गैष्टिक अल्सर Gastric Ulcer, पेप्टिक | रेंगनेवाला जख्म । भौतुहा फोड़ा । अल्सर Peptic Ulcer (अं०)। सर्पिजिनस अल्सर Sripiginous Ulcer, कई : मुक्कामिय्य:-[१०] एक प्रकार का व्रण जो क्रोपिंड अल्सर Creeping Ulcer. किसी विशेष स्थान वा जनपद में हो। जैसे-सर- (अं.)। हदी फोड़ा, लाहौरी कोड़ा इत्यादि । देशम प्रण। नोट- इस प्रकार का व्रण स.अबान (अजजानपदीय व्रण । कही वतनियः । गर) की भाँति रेंगता है अर्थात् एक जगहसे दूसरी
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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