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की रचना की है। प्रथम लघु जिसमें फसूल | क्षीरिणी । कटुपर्णिका । पिसौरा । नि०शि०। के वाक्य उद्धृत कर स्वयं भाष्य लिखे हैं और | कर्षणीया-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) कासा द्वितीय वृहत् जिसमें प्रथम बुकरात के उद्धरण, का बीया । काशतृण वीज । वै० निघ। (२) पुनः उस पर जालीनूस लिखित भाष्य देकर, अंत | गोजिह्वा । गोभी। "गवेधका व गोजिहा कर्षणीया में उभय विचारों पर अपना वक्तव्य (Rema
सिता तथा।" रा०नि० । धन्व०नि०। rk) लिखा है।
कर्षण्याकार कीटाणु-संज्ञा पु० [सं०] एक कीटाणु सन् ७७०हिजरी में इनके निधन की दु:खद
विशेष । (Spirillums) तिथी है। कशु-[पं०] बालछड़। बारचर ।
कर्षफल-संज्ञा पु. [सं० पु.] (१) बहेड़े का कशुनाम्बु- ता०] कली का चूना ।
फल । विभीतक वृक्ष । रा०नि० व०११। भा० कश्य-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कचूर । नरकचूर ।
पू०१ भ०। (२) भिलावें का पेड़ । भल्लातक जरंबाद । रा०नि० व०६ ।
वृक्ष । वै० निघ०। (३) आँवला । कर्ष-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक प्रकार का मागधी | कर्षफला-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] आँवले का पेड़। मान जो सोलह माशे का होता है । च०। श्रामलक वृक्ष । रत्ना० ।
नोट-प्राचीन काल में माशा पाँच रत्ती का | कर्षाद्ध-संज्ञा पु० [सं० श्री.] एक तोले का मान । . होता था इससे आजकल के अनुसार कर्ष दस ही
प्राधा कर्ष । ५० प्र० १ ख०। माशे का ठहरेगा।
कर्षिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] काश बीज । काँसे (२) वैद्यक में दो तोले का एक मान ।
___का बीया । वै० निघ। यथा-"कोलद्वयन्तु कर्षः स्यात्। ५० प्र० ख०। पो०-सुवर्ण, अक्षः, विडालपदकं, पिचुः,
कर्षिणी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] खिरनी का पेड़ । पाणितलें, उडु म्बरं, तिन्दुकं, कवडग्रहः । ३० ।
क्षीरिणी वृत्त । रा० नि० व ५ । वै० निघ० । (३) एक प्रकार का कालिंग मान जो दस माशे | कषु-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.](१) जंगली कंडे की का होता है। यथा-"कर्षः स्याद्दशमाषकः ।" भाग । करीषाग्नि । (२) जीविका ।मे० बद्विक । शाङ्गी० पू० १ भ०। (४) सश्रुत के अनुसार | कषू-संज्ञा पु० [सं० स्त्री.] (१) कंडे की आग ।
सोलह माशे का एक मान, जब कि माशा पाँच ____ करीषाग्नि । वै० निघ । (२) पानी । जल । ' स्ती का हो। (१० माशे का एक मान)। ___रा०नि०। (५) बहेड़ा का वृक्ष । श० र०।
संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (1) एक प्रकार संज्ञा पुं॰ [सं० क्रो० ] सोना । सुवर्ण।
का भारी पक्का गड्ढा जिसका मुंह छोटा हो। करक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (1) अयस्कांत
च० सू० १४ अ०। (२)नदी। र०। (३) मणि । खींचनेवाला । अाकर्षणकारी
कृत्रिम क्षुद्र जलाशय । (विकर्षित कर्षी, कर्षक, कर्षणीय, कj ] कर्ष स्वेद-संज्ञा पु० [सं० पु.] स्वेद का एक कर्षण-संज्ञा पुं॰ [सं० क्वी०] (१) कृशीकरण । ।
भेद । चरक के मत से इसकी विधि यह है-सोने हे० च०। (२) खींचना । अाकर्षण । (३)
की जगह एक ऐसा बड़ा गड्ढा खोदें जिसका मुंह शोषणा।
छोटा हो । पुनः उस गड्ढे को बिना धूआँ के दहकर्षणा-[सं० स्त्री.] कुलित्थ । कुलथी। स० नि०।
कते हुये अंगारों से भर देवें और उसके ऊपर चारकर्षणि-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] सीसी का पौधा ।
पाई रखकर उस पर शयन करके स्वेदन करें । अतसी वृक्ष । उणा०।
च० सू० १४ अ० । सु० । वि० दे० "स्वेद"। कर्षणी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (१) खिरनी का ..पेड़ । क्षीरिणी वृक्ष । रा० नि०व०। (२)
" कर्स-[ ? ] चर्ग । (२) साँप की केंचुली । सफेद वच । श्वेत वचा । वै० निघ० । कांची। कस-[अ० ] टिकिया बनाना ।