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________________ कर्वटजद २२६४ तथा वायुजन्य वृद्धि (फरक रेही) के लिए समान कर्शकूअन तरानस-[?] मटर। रूप से होता है। कर्श चरन-[ ? ] गुलतुर्रा । कर्वटज़द- बम्ब० ] Cocculus Indiens. | कर्शन-संज्ञा पुं० [सं० को० ] दुबजा बनाने का काकमारी । काकफल । क़र्व दवाली-[१०] फोतों की रगों का फूल जाना । ___काम । कृशकरण । Varicocele वि० दे० "दवालियुस्स फ़न"। कशेपाल-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] मीठा इंद्रजव । कर्वर-संज्ञा पुं० [सं० पु०, क्ली० ] (१) बाघ । | कशेफ-[फा०] करप्स । अजमोदा । ___ब्याघ्र । मे० (२) एक ओषधि । कर्शान-[ तु० ] सफ़ेदा। कर्वर फल-संज्ञा पुं॰ [सं० वी० ] साकुरुंड । सकु | कर्शम:-[अ० ] कपोल । गाल । मुखमंडल । कवरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (१) हिंगुपत्री। कशाम, कशूम-[१०] बड़ी चिचड़ी । कुन: बुजुर्ग ___एक घास । के । (२) ब्याघ्रो । बाघन । मे। कर्शित-वि० [सं० वि० ] कृशीकृत । दुबला हुआ। कलह मी-[१०] अंड का एक रोग जिसमें अंडों | कर्शी- [१०] एक पारव्य ख्यातनामा युनानी चिकिमें प्रगाढ़ सौदावी मादा के उतरने से उनके चारों . साचार्य। अर्थात् अलाउद्दीन अबुल्हसन अलीबिन ओर गोश्त पैदा हो जाता है और उनकी: ऊपरी हाज़िमुल् मुल्कियुल् कर्शी । इनका उपनाम कर्शी त्वचा अर्थात् अंडकोष मोटे पड़ जाते हैं। उक्त है और इसी नाम से ये सुप्रसिद्ध हैं। इन्हें अवस्था में सूजन कठोर और कभी पत्थर को तरह द्वितीय जालोनूस भी कहते हैं। आप तत्कालीन होती है, जिसके साथ सख़्त पीड़ा भी उत्पन्न होतो अद्वितीय उद्भट विद्वानों में से थे। इनका जन्म है। मांसज अंडवृद्धि । Sarcocele सार्कोसोल स्थान मक्का की पुनोत भूमि है, परंतु ये दमिश्क (अं०)। में निवास करते थे । “मूजिजुल कानून" इनकी नोट-सार्कोसील वस्तुतः अंड में होनेवाला सर्वोत्कृष्ट रचना है, जिसके अनेक सुप्रसिद्ध भाष्य एक प्रकार का मांसार्बुद है । जिसमें अंड बहुत हो जुके हैं। मौलाना नफ्रोस बिन-एवजकिर्मानीबढ़ जाते हैं। यह रोग बंगाल, आसाम और लिखित "नफ़ोसी" नामक भाष्य उसका एक दक्षिण में प्रायः होता है। उज्ज्वल उदारहण हैं। इसके सिवा सदीदुद्दीन कर्वान, कर्वानक-[१] एक प्रकार को चिड़िया । गाज़रुनी लिखित "सदीदी" और जमालुद्दीन कर्वानग-[?] भूरे रंग का एक प्रसिद्ध पक्षी जिसका अकसराईलिखित "अकसराई"नामक अन्यसुप्रसिद्ध मांस सुस्वादु होता है। करवानग । ता० श० । भाष्य हैं। उन लब्धप्रतिष्ठ युनानी चिकित्सा दे० "करवाँ"। शास्त्राचार्यों के अतिरिक्त हकीम फजलुल्ला कर्वीर-).. तवरेजी ने भी इस पर एक भाष्य लिखा है। दिल्ली निवासी हकीम शरीफ खाँ मौलाना अब्दुल हकीम लखनवो ओर मोलाना अनवर कोरो-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] बेर । बदरी । अली जैसे ख्यातनामा विद्वानों ने भी इस पर कवु दार-दे० "कर्बुदार"। हाशिये (टिप्पणी) लिखे हैं। कवुर-वि० दे० "कबुर"। की वे शेख रचित कानून जो भाष्य प्रकाशित कर्बु रिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कर्वरी । किया है। वह भी अपनी शैली का एक निराला ही है। यद्यपि यह अब तक अप्रकाशित है। कव्वूर-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] अाम्राहल्दी । शटो । परंतु इसके हस्तलेख अब तक किसी किसी कवू रक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कपूरहलदी । पुस्तकालय में सुरक्षित पड़े हैं। कर्श-[१०] ओझड़ी । किर्स। ___ इस कुशाग्र बुद्धि हकीम ने स्वयं बुक.. [पं०] तिमशा । किलोंज । रात के ग्रंथ (सूल) पर दो भाष्यों क/ल- छड़ीला । खस स्याह ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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