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कर्मपुरुष
२२६३ प्रयोग से भी नहीं दबता । केवल कर्म के क्षय से | इन्द्रिय । वह इन्द्रिय जिसे हिला डुलाकर कोई ही इसकी शांति होती है।
क्रिया उत्पन्न की जाती है। कर्मेन्द्रियाँ पाँच हैं- वि० [सं० त्रि०] (1) कर्म से उत्पन्न । हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ । वि० दे० (२) जन्मांतर में किये हुये पुण्य-पाप से | "इन्द्रिय"। उत्पन्न ।
कयोबस-[ ? ] वज़ग़ः । जंगली छिपकली । कम पुरुष-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] जीव । यथा- कर्यास-[रू. ] (१) गोश्त । (२) Latrine "यस्मिन् चिकित्सा वर्तते स एव कर्म पुरुषश्चि
संडास । पायख़ाना । कित्सिताधिकृतः ।” सु० शा० १ ०। कर-[ सक्ने द ज़ीरा । कर्मफल-संज्ञा पु[सं०की०] (१) कमरख का फल ।
करई-संज्ञा स्त्री० [देश॰] कुलू । गुलू । तबसी। कर्मरंगफल । रत्ना०। (२) कर्म विपाक । .. मे० लचतुष्क । (३) सुख । (४) दुःख ।
कर्रप-डामर-[ ता० ] काला डामर । . त्रिका।
करलुर-संज्ञा [ देश० अवध ] करविला । कर्मभू-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्त्री.] कर्षित भूमि । कर वेण्डलम्-ते. ] पिण्डालू । .. ___ कृष्ट भूमि । जोती हुई जमीन । हे। करी-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] कुड़ा, कुरेया। कुटज । कर्ममूल-संज्ञा पुं० [सं० को०] (१) कुश ।
कर्रिल-[ कना० ] सिंगिनी । पाशवल । - कुसा । श० च०। (२)शर तृण ।
करी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का पेड़ जो कर्मर, कम्मेरक-संज्ञा पु० [सं० पु.] कमरख ।
देहरादून और अवध के जंगलों तथा दक्षिण में कर्मरंग।
पाया जाता है । इसके पत्ते बहुत बड़े होते हैं और कमरङ्ग-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं० (१) कमरख का
मार्च में झड़ जाते हैं। पत्ते चारे के काम में आते वृक्ष । (२) कमरख का फल । रा. नि० व०
हैं। इस वृक्ष में फल भी लगते हैं जो जून में ११ । राज. ३ प० । वै०निघ० । भा० । वि०दे०
पकते हैं । (हिं० श० सा०)। .. "कमरख"। कर्मरा-चें झाड़-[ मरा० ] कमरख का पेड़।
कर्रानीम-[ बम्ब० ] सुरभिनिम्ब । कढ़ी नीम । कमरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] वंशलोचन । वै० करोसिव सब्लिमेंट-[अं० Corrosive subli..निघः ।
__ment ] पारद का एक योग । विशेष दे. कर्मविपाक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] पूर्व जन्मके किये |
"पारा"। हुये शुभ और अशुभ कर्मों के भले वा बुरे फल | कलिगेन-[डच० ] तरली । गोइँठी।
द्वारा होने वाले रोग प्रादि । कर्मपाक । कावाख-[ तु० ] अवाबील । कार-संज्ञा पु० [सं० पु.] (१) एक प्रकार | कलीस-[सिरि० ] कागज़ ।
का बाँस । (२) कमरख । कर्मरङ्ग । रा०नि० | कर्व-संज्ञा पु० [सं० पु.](१) चूहा। मूषक । व०७।११
(२) काम । ख़ाहिश । उणा। कारक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कमरख का वृक्ष । क़र्व-अ.] एक प्रकार की वृद्धि जिसमें अंडकोष में कर्मरङ्ग वृक्ष । वै० निघ० ।
आँत, सर्ब (प्रान्त्रश्च्छदा कला), वायु वा पानी काह-संज्ञा पु० [सं० पु.] मनुष्य । श्रादमी। उतर पाता है । अंडकोष वृद्धि । अंत्रांड वृद्धि । कीर-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) नारंगी । नारंग । कीलः । फरक सिफ़नी (अ.)। Scrotal - किर्मीर । (२) चितकबरा रंग।
Hernia. कर्मीरक-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं० [सिहोरे का पेड़ ।। नोट-कर्व शब्द का प्रयोग अंत्रवृद्धि ( फल्क शाखोट वृक्ष ।
मिश्राई), उदरच्छदा कला की वृद्धि (फ्रक कर्मेन्द्रिय-संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] काम करनेवाली | सर्वी), कुरएड वा मूत्रज वृद्धि (फरक माई)