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________________ कसल २२४६ करीवमेटी । कञ्ची कोंपल और हरी पत्ती पीस कर टिकिया गरम करके करील की कोपलों के रस में ५० बार बना कलाई पर बाँधने से छाला होकर ज्वर मुक्त बुझावें। इसके बाद उसको इन्हीं कोंपलों की हो जाता है। लुगदी में रखकर २-३ गजपुट में फूकने से सफेद इसकी कोंपल को मुख में रखकर चबाते रहने से रंग की भस्म तैयार होती है। कोंपलों के रस के दंतशूल मिटता है । इसकी छाल के चूर्ण से मला बदले में यदि करील का ताजा हरा कांड, जो १६ वरोध निवृत्त होता है । इसकी छाल पीसकर लेप अंगुल लंबा और ६ अंगुल मोटा हो, उसमें , करने से पित्त की सूजन मिटती है । इसकी जड़का अंगुल गहरा छेद करके उसमें उस ताँबे के टुकड़े बफारा देने से हस्त-पाद की संधियों के रोग दूर को अथवा पैसे को रखकर ऊपर करील की लकड़ी होते हैं। इसकी छाल कड़वी होती है और वृक्ष का बुरादा भर, उसी का डाट लगाकर गजपुट की दस्तावर होता है। इसकी लकड़ी को पीसकर पाँच देने से भी सफेद भस्म प्रस्तुत हो जाती है। सुहाता गर्म लेप करने से सूजन उतरती है । इसके यदि उसमें कुछ कमी रह जाय. तो एक दो बार उपयोग से विष नष्ट होता है। इसको लकड़ी इसी प्रकार करने से ठीक हो जाती है। जलाकर भस्म करले, इसमें से एक माशा राख यह भस्म नपुंसकता, उदररोग, श्वास इत्यादि खिलाने से कफ नष्ट होता है। इसकी कच्ची कोंपल रोगों में उपयुक्त अनुपान के साथ देने से बहुत बिना पानी मिलाये पीसकर दो-तीन दिन तक लाभ पहुँचाती है। नपुंसकता में इसको घी के मलने से उस जगह के बाल शीघ्र उग आते हैं । साथ चटाकर ऊपर से ५-१० तोला घी पिलाना इसकी शुष्क कोपलों का चूर्ण एक तोला और चाहिये। इससे प्यास अधिक लगती है। पर कालीमिर्च का चूर्ण छः माशा दोनों को एकत्र चार पहर तक पानी नहीं पिलाना चाहिये । यदि मिता प्रातःकाल जल के साथ फाँकने से तिल्ली प्यास न रुके तो दूध में घी मिलाकर देना पीहा मिटती है । इसकी एक तोला जड़ को तीन चाहिये । इससे नपुंसकता में बहुत उपकार होता सेर पानी में औटाएँ । जब श्राध सेर जल शेष है। इसके सेवन काल में तेल, खटाई, लालमिर्च रहे, तब उसे उतार छानकर दिन में दो बार ७-८ इत्यादि वर्जित हैं । (जंगलनी जड़ी बूटी) दिन पिलाने से रक्तार्श नष्ट होता है। इसकी लकड़ी की भस्म घी में मिलाकर चाटने से जोड़ों (३)पारद भस्म-शुद्ध पारे को करीर पुष्प का दर्द दूर होता है । इसके और रेड के पत्तों को स्वरस में दो दिन (८ प्रहर) खरल करें, गोला गरम करके बाँधने से सूजन उतरती है। इसकी बन जावेगा | फिर करीर पुष्प को पीसकर इसकी जड़ को पीसकर बालों की जड़ में मलने से बाल लगभग तीन छटाँक लुगदी तैयार करें। इसके खम्बे पड़ जाते हैं। ख० अ० । उपरांत उन गोले को इस लुगदी के भीतर रखकर ऊपर से कपड़मिट्टी कर दें। फिर इसे दो सेर करील और धातु-भस्में उपलों की आँच दें। लपट निकल जाने के उपरांत करील से निम्न धातुओं की भस्में प्रस्तुत श्वेत भस्म प्रस्तुत होगी । यदि करीर के पीले रंग होती हैं के फूल में (जो इस तरफ मिल जाते हैं) खरल (१)ताम्र भस्म-ताम्र १ तोला, करील | करके आँच देवें तो पीत वर्ण की भस्म प्राप्त होगी। के फल अर्थात् टेंटी और उसकी शाखाओं के एक हकीम गोकुलचंद महाशय वैद्य (रुमूजुल इतिब्बा)। पाव लुगदी में रखकर संपुट करें। फिर उसे पूरे २० सेर उपलों की भाग दें। सफेद भस्म प्रस्तुत | करीलन, बरीलन-[ देश० ] बंडाल । घघरवेल । होगा और वज़न भी पूरा रहेगा । -हकीम मु० | करीवगेटी-] बम्ब० ] ( Paramignya monरियाजुल हसन । ophylla, Wight.) गुलाब के वर्ग की (२) ताँबे की श्वेत भस्म-शुद्ध किये हुये | एक औषधि जो जंगली नीचू की जाति का एक .. तांबे के मोटे टुकड़े को या ढब्बू पैसे को अग्नि में पौधा है जो परिवर्तक और मूत्रल गुण के लिये
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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