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करील
इसकी राख नासूर को लाभ पहुँचाती है। प्रस्तुत कर खाने से प्लीहागत सूजन जाती रहती -म. मु०।
है। यह कफ का छेदन करता एवं गृध्रसो, संधिकरील गरम है और यह कोष्ठ मृदुकर, कफवात शूल, निरिस ( वातरक्त) तथा उरः क्षत-सिल दोष नाशक एवं फोड़ा, फुन्सी, सूजन तथा को लाभ पहुँचाता है । इसके फूलों की तरकारी बवासीर को नष्ट करता है। इसका फूल कफ बनाकर खाने से भी पूर्वांत गुण प्रदर्शित होते हैं। नाशक और पित्तनाशक है। इसका प्रचार पक्षा- यदि करील की लकड़ी को जलाकर कोयला कर घाताक्रांत ( मालूज़ एवं इस्तरखा वाले ) रोगी फिर उसे चूर्ण करलें । यदि २ माशा यह चूर्ण के लिये उपकारी है। -ना० मु०।
थोड़े घी के साथ चाटें, तो कटि-शूल नष्ट हो । करील स्वाद में अम्ल है।
यदि इसकी लकड़ी की भस्म तीसी वा तिल तैल प्रकृति-सर्द एवं तर या मातदिल ।
में मिलाकर नासूर में टपकायें, तो नासूर अच्छा हानिकर्ता-कफ प्रकृति वालों को।
हो । तिब फरिश्ता के लेखक ने लिखा है, यदि दर्पघ्न-शुद्ध मधु ।
किसी की पशु कास्थि टूट जाय, तो करील की गुण-धर्म-यह ख़ाक़ान, वहशत और उन्माद लकड़ी उसकी तरह छील-बनाकर उस जगह को दूर करता है तथा बुद्धि एवं चेतना को पुष्ट
स्थापित करदें। वह कदापि सड़े-गलेगी नहीं और करता और हृदयोल्लासकारी भी है । यह हृदय को न नष्ट होगी । इसका फल मनोल्लास एवं शक्ति प्रदान करता, उष्माशामक और उष्ण प्रसन्नता जनक है। यह हृदय को शनि प्रदान व्याधियों को लाभकारी है। -बु० मु०।
करता है और अपने प्रभाव से उन्माद एवं तालीफ़ शरीफ्नी के अनुसार इसके फल-टेंटी वहशत को दूर करता है । संज्ञा-शक्रि एवं बुद्धि को पकाकर खाते हैं और पानी, नमक एवं रोशन
को तीव्र करता और काम शक्ति को पुष्ट करत है। स्याह में इसका प्रचार भी डालते हैं । यह तीक्ष्ण
इसकी कोंपल और इसबंद दोनों सम भाग कूटउष्ण, कड़वा, भेदन, एवं कफवातनाशक है और छानकर रखें। इसमें से ६ माशा की मात्रा में यह यह फोड़ा, फुन्सी, विष एवं बवासीर को नष्ट चूर्ण प्रति दिन बासी पानी के साथ ऋतु-स्नाता करता है । इसका फूल कफ-पित्त नाशक है। स्त्री को सेवन कराने से वह वंध्या हो जाती है। करील कफ एवं विकार नष्ट करता है । यह
इसमें किसी प्रकार की कठिनाई भी नहीं होती । फोड़े-फुसी का निवारण करता, सूजन उतारता
बिना पानी पिलाये इसकी कोपल पीसकर दो और बबासीर को लाभ पहुंचाता है। इसका फूल
तीन दिन मलने से श्मश्रु के केश जम आते हैं। कफ एवं पित्त को नष्ट करता है । इसके भक्षण से
हकीम अली ने कानून की टीका में लिखा है कि रक्त धातु कम पैदा होती है अर्थात् यह कलीलुल
यदि जलोदर-इस्तिस्काऽज़िक्की किसी प्रकार ग़िजा है । यह उदरस्थ कृमियों को नष्ट करता
श्राराम न हो सकता हो, रोग ने जड़ पकड़ और पक्षाघात-फ्रालिज, प्लीहा तथा गंध को लाभ लिया हो और आरोग्य होने की आशा न हो, तो पहुंचाता है। यह श्रामदोष का उत्सर्ग करता करील-वृक्ष की जड़ सुखा-पीसकर एक तोला तथा अतिसार बंद करता है। किसी किसी के प्रति दिन सप्ताह पर्यंत खिलायें और भुनाहुना, मतानुसार यह कोष्ठमूदुकर है । परंतु अनुभवी गुरुपाको एवं विष्ट भी पदर्थ खाना त्याग दें लोगों ने इसे धारक बतलाया है, कफ को नष्ट | क्यों कि उक्त औषधि द्रव निष्कासनार्थ दी जाती करने में अत्यंत प्रभावशाली है। पक्षाघात- है। और जो वस्तु विष्ट भी वा काबिज़ होगी, फालिज एवं इस्तरखा जैसे शीतल रोगों में इसका | वह उसकी क्रिया न होने देगी। हकीम अली ने प्रचार गुणकारक है। इसकी अम्लता वास्तविक उक्त श्रोषधिको बड़ी प्रशंसा की है और लिखा है उष्णता के कारण बात नाडियों को कम हानि कि भारतवासी उन विधि से इस रोग का प्रायः पहुँचाता है। उक रोगों में इसको जइ का अचार | . उपचार करते है एवं कृतकार्य होते हैं। इसकी