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________________ कमाफी, तूस कमाफ़ी, तूस - संज्ञा | यू० ख़ामानीतुस यू० कामुत्र० ] कुकरौंदे की जाति का एक पौधा जो लगभग एक गज के ऊँचा होता है। इसकी पत्ती कलगी की तरह फूल छोटे और बीज करफ़स की तरह होते हैं | कुकरौंदा रूमी | करफ़्स रूमी । कुमाफ़ीतूस । २१७८ नोट- बुर्हान क्राति के अनुसार यह यूनानी भाषा का शब्द है और मुफ़रिदात हिंदी श्रादि में इसे यूनानी शब्द ख़मानीतुस का मुरिंब लिखा है । कमाफीतूस का धात्वर्थ सनोबरूलअर्ज़ पृथ्वी जात सनोबर है । कोई-कोई मुफ़र्रिशुल अर्ज़ अर्थ करते हैं । परन्तु गोलानी प्रथमोक्क श्रर्थ ठीक बतलाते हैं । वर्णन - कोई-कोई इसे 'कुकरोंधा' मानते हैं । परंतु इसराहल तिब के अनुसार यह 'हर्शन है, जिसके गोंद को कंकरज़ द कहते हैं। सांहब मिन्हाज के मत से यह तुख्म करसरूमी है । साहब कामिल इसे तरखून रूमी या कासनी रूमी बतलाते हैं। गीलानी कहते हैं कि इसके कई भेद हैं । इसकी एक जाति का वृक्ष वह है जिसमें काँड नहीं होता और न यह ऊँचा होता है। इसकी पत्ती और शाखें ज़मीन पर फैलती हैं। शाख़ै ललाई लिए और पत्तियाँ हयुत् आलम् सगीर की सी होती हैं, किंतु उनसे पतले होते हैं, उन पर माँ होता है और उनसे चिपकनेवाला द्रव स्त्रवित होता है । पत्ते मोटे होते हैं । स्वाद कड़वा और फीका एवं तीक्ष्ण होता है। इसमें सनोवर के पेड़ की सी सुगन्धि श्राती है। फूल महीन - और पीत-रक्त होता है। पीला कम मिलता है । जड़ करफ़्स की भाँति किंतु उससे छोटी और सफेद होती है । इसकी दूसरी जाति मादा कहलाती है। इसकी शाखें दीर्घं और एक हाथ लंबी और इज़खिर को तरह होती हैं। उनमें बहुत पतली पतली डालियाँ होती हैं । पत्ते और फूल प्रथम जाति की तरह 1 होते हैं। बीज काले होते हैं। इसमें सनोबर की सी सुगंध आती है। इसकी तीसरी जाति को नर कहते हैं । इसकी पेड़ी और शाखें खुरदरी और सफ़ेद होती हैं। शाखें पतली और पत्ते छोटे, बारीक और सफेद होते हैं, जिन पर रोंगटे होते कमाफ़ी. तूस हैं। फूल पीला और छोटा होता है और इसमें से तीनज की सी गंध श्राती है। उक्त दोनों जाति के कमानीतूस गुणधर्म में परस्पर समान हैं और प्रथम जाति से अपेक्षाकृत निर्बल हैं। इसमें ताजा जंगली उत्कृष्टतर है । किसी किसी के मत से बाग़ी तीक्ष्ण गंधी और श्रेष्ठतर है। इसी के पत्ते, फूल और बीज श्रौषध के काम आते हैं । प्रकृति — द्वितीय कक्षा में उष्ण और तृतीय में रूत है । कोई कोई तृतीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष जानते हैं. दूसरों के मत से द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष है । बजाअतुल इतिब्बो में लिखा है कि यह द्वितीय कक्षा में उष्ण और द्वितीय कक्षा के अंत में रूक्ष है । हानिकर्त्ता - - फुफ्फुस और गरम जिगर के लिये । दर्पन - प्रथम के लिये मधु और अनीसून और द्वितिय के लिये श्रू रूर । प्रतिनिधि - समभाग जदः श्रर्द्ध भाग सोसालियूस, चतुर्थांश तज । कोई कोई समभाग सोसालिस अर्द्ध भाग तज और समभाग श्रफ़ - संतीन, जीरा स्याह श्रर कमाज़रियूस बतलाते हैं । मात्रा - ४॥ माशे से १०॥ माशे तक । किसी किसी ने ७ माशे तक लिखा है । धर्म तथा प्रयोग | यह अवरोधोद्घाटक और संशोधनकर्त्ता है । उष्णता उत्पन्न करने की अपेक्षा यह श्राभ्यंतरिक अंगों को अधिक निर्मलता प्रदान करता है । इसमें विरेचन की शक्ति है। स्तन पर प्रलेप करने से उसकी सूजन उतरती है। नमला ( स्फोटक विशेष ) पर लगाएँ तो वह फैलता नहीं । सद्यः जात क्षतों पर लगाने से उनको पूरित करता है । गृधसी रोग के लिये कल्याण जनक है । वात तंतुओं का शोधन करता है। कूल्हे के दर्द और वातरक्त (निकरिस ) के दर्द लिये लाभदायक हैं। इसके लेप से भी उक्त लाभ होता है । मधुवारि ( माउलू अस्ल ) के साथ उसे वेदनाको. भी गुणदायक है । यकृत के अवरोध का उद्घाटन कर्त्ता है। प्लीहा के रोग और वातज कामला ( यक़ीन सौदावी ) को के ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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