SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कमाज रियूस २१७७ कमाज रिजूस किसी-किसी के मत से इसकी शाखाएँ और नासूर और घाव पाराम होता है आँख के कोये पत्र उशक वृक्ष के से हैं। । । के नासूर में इसको पीसकर भरना भी श्रेष्ठतर है। कज़ाफियुल मख़्ज़न में यह बात ऐसी अस्पष्ट इसके काढ़े में मधु मिलाकर कुछ दिन तक पीने है कि उसको मुहीत के लेखक ने छोड़ दिया है । से वक्ष और फुफ्फुसगत वेदना एवं उनकी सर्दी ' उत्तम वह कमाज़रियूस है. जो जंगली हो और मिटती है । यदि पेशी कुचलजाय, तो इसको पीस उसमें फल और बीज शेष हो । सात वर्ष पर्यन्त कर पीना और लगाना चाहिये । इसको पीसकर इसमें शक्ति रहती है। रखने और खाने से गर्भपात होजाता है। २८ प्रकृति-जालीदूस तृतीत कक्षा में उष्ण एवं तोले पानी में १४ माशे कमाज़रियूस को क्वथित रूक्ष बतलाते हैं। उनके मत से इसमें रूक्षता की करें। जब तृतीयांश शेष रहे, तब १०॥ माशे अपेक्षा उष्णता अधिक बलशालिनी होती है, जैतून तेल सम्मिलित कर पी लें । कुछ दिन इसी जिसका विवेचन इस प्रकार हो सकता है कि प्रकार करें। इससे वृक्क एवं वस्तिगत अश्मरी इसमें उष्णता इसकी तृतीय कक्षा के मध्य और टूट कर निकल जायेगी। कीट-पतंगो के काटे हुए रूक्षता तृतीय कक्षा के प्रथम में होगी। किसी स्थान पर इसका प्रलेप करने से बहुत लाभ किसी ने द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष लिखा होता है। इससे मदिरा भी प्रस्तुत कीजाती है। है और गरमी को खुश्की से अपेक्षाकृत अधिक जिसकी विधि यह है-प्रति २८ तोले मदिरा में बताया है। और यह विवरण दिया है कि गरमी ७ माशे कमाज़रियूस डालते हैं या अंगूरों के प्रति द्वितीय कक्षा के अंत में है। २८ तोले स्वरस में ६ माशे कमाज़रियूस मिलाते हानिकतो-वस्ति, वृक्क और आंत्र को। हैं और निश्चित काल तक रखकर साफ़ करके दर्पघ्न-वस्ति के लिए बिही और शेष केलिए | काम में लाते हैं । यह जितनी पुरानी हो, उतनी कतीरा या सर्द-तर वस्तु । ही श्रेष्ठ है । इसमें से २८ तोले प्रति दिन पीने से प्रतिनिधि-सीसालियूस,कमानीतूस, ग़ाफिस लाभ होते हैं। इससे आक्षेप, अजीर्ण, प्रामाको जड़, उस्कूलूकंदयून, तुख्म हुम्माज बरी । शय विकार, यमन सुद्दी (Obstructive तुह्म शलाम बर्स और चतुर्थाश तज । jaundice ), गर्भाशयगत आध्मान और मात्रा-चूर्ण की मात्रा ६० माशे तक । काथ दोषों की विकृति ये विकार उपशमित होते हैं। में २ तोले तक। जलोदर के प्रारम्भ में इस मद्य का लाभ स्पष्ट प्रधान कर्म-मूत्रल रजः प्रवर्तक और प्लीहा ज्ञात होता है। कमाज़रियूस से तैल भी प्रस्तुत शोथ-हर है। करते हैं, जिसकी विधि यह है कि इसके ताजे अंगों का रस या शुष्क अंगों का काथ किसी तेल गुणधर्म तथा प्रयोग में सुखा लेते हैं या केवल ताजे फूलों से गुलरोग़न उक्त भेषज शरीर के आभ्यंतरिक अवयवों के की भाँति तैयार करते हैं । इस तेल की मालिश अवरोधों का उद्घाटन करता है । यह विलीनकर्ता से अंगों की सरदी और वायु को लाभ होता है। है और तरलता उत्पन्न करता है, शरीर में ऊष्मा नोट-'बु० मु०' और 'म० मु०' आदि तिब्बी की वृद्धि करता, सांद्र दोषों का छेदन करता और निघण्टुओं में भी इसके प्राय: उपरिलिखित गुणों पुरातन कास रोगों को मिटाता है । सिरके के साथ का ही कुछ फेर-फार के साथ उल्लेख मिलता है । यह यौन स्याह ( कृष्ण कामला) को नष्ट करता कमात-[१०] (१) खुमी का एक भेद। (२) है। सिरका और मद्य के साथ विवृद्ध प्लीहा को खुमी । फ्रितर। घटाता है। सिरके में पकाकर प्रलेप करने से भी | क्रमात-[१०] वह जगह जहाँ धूप न पहुँचती हो । प्लीहागत सूजन उतर जाती है। यह प्रार्तव और कमात-[१०] गाँती। मूत्र का प्रवर्तन करता है । इसकी वटिकाएँ प्रस्तुत कमाफीतूस-यू०] (1) कुकरौंधा । जंगली वा कर मच में घिसकर आँखों में आँजने से आँख का | दीवाली मूली ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy