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________________ कमली २१७६ कमांज रियूस रूखा, रनपित्तनाशक, कफनाशक, वातकारक | कमाज़ रियूस-[यू०, रू० ] (Teucrium chaod और विष्टंभी लिखा है। भा० पू०१ भ० पुष्प व० । maediye, Linn. बलूतुल् अर्ज ( Wall इसकी पत्ती-शीतल, कसैली, मधुर, तीती, पाक Germander.) में अत्यंत कटुक, हलकी और ग्राहक है एवं वात- नोट-किसी-किसी के मत से कमार्जारयूस कारक, कफ और पित्त को नष्ट करनेवाली है। यूनानी माज़रियूस शब्द का मुअरिंब है । यहाँ पर ऐसा मुनियों ने कहा है । वै० निघ० । (३) वह यह भी स्मरण रहे कि जिन लोगों ने इसे मुडी तालाब जिसमें बहुत कमल हों। माना और लिखा है। उन्होंने भूल की है। कमली-[ नेपा० ] गोलक (कुमा०)। क्योंकि यह उससे सर्वथा भिन्न वस्तु है, जैसा कि कमलूल-[अ० ] कुनाबिरी। प्रागे के विवरण से स्पष्ट हो जावेगा। कमलोत्तर-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री० ] बरे का फूल । विवरण-दीसकरीदूस के अनुसार यह एक प्रकार की घास है जो बालिश्त भर ऊँची, अत्यंत कुमुम का फूल । कुसुम्भपुष्प । हे० च ।। कडुवी एवं कुछ चरपरी होती है और जिसके पत्ते कमलो-संज्ञा पु० [सं० क्रमेल | यूः कमेल ] ऊँट । की श्राकृति और रंग बलूत के पत्ते जैसा होता है साँडिया । उष्ट्र।-डिं। बीज अनीसून के दानों से छोटे होते हैं । इन बीजों क्रमस-[१०] एक प्रकार का छोटा मच्छड़ वा मक्खी का स्वाद मीठा होता है। जड़ का रंग ललाई जो पानी पर खड़ी रहती है। लिए होता है । पुष्प का वर्ण नीला और काला कमसी-[?] टिड्डी। होता है । सावन मास के करीब पर्वती भूमि में क्रमह-[१०] गेहूं। उत्पन्न होती है उचित यह है कि इसे परिपक्क कमहदुब्ब:-[अ०] गुदी की हड्डी जो खोपड़ी की होजाने के उपरांत उखाड़ें और इसका ध्यान रखें पिछली तरफ़ स्थित है। (२) गुदी की हड्डी कि कहीं इसके पत्ते, फूल और बीज गिर न जायें । का उभार । मन्यास्थि-अर्बुद। यह तो हकीम दीसकरीदूसोक्त वर्णन है। External occipital eminence. ___ इसहाक़ बिन उमरान ने इसके वर्णन में कमः- अं०] जातज अंधत । सहजांध्य । (Born दीसकरीदूस से विरोध प्रदर्शित किया है। इनके blind. मत से यह एक उद्भिज है। जो रबी की फसल क्रमहः-[१०] चिरायता। में उत्पन्न होती है। इसके पत्र चोड़े, हरितवर्ण [मिश्र०] (१) जीरा । (२) चूर्ण । बुकनी | के और जंगली तुर्मुस के पत्तों की तरह होते हैं। सक्त । पौधा इसका भूमि पर अाच्छादित होता है। ऊँचा कमहार- संज्ञा पुं० [सं० कम्भारी ] गम्भारी । नहीं होता । बलूत के फल के बराबर इसकी जड़में कमहारी-संज्ञा स्त्री. खुमेर ।। एक गाँठ होती है । फूल रक्त वर्ण का होता है। कमक्षा (कामाक्षी) पुल्लु-[ ता०] रूसाघास | इसमें तिक आस्वाद होता है। जब भी ललाई भूतृण। लिए और कड़वी होती है। कमा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] शोभा । खूबसूरती । इब्न अबी खालिद अफरीकी ने किताब एतरा । माद में यह स्पष्ट लिखा है कि कमाज़रियूस एक [?] जावित्री। वनस्पति की जड़ है जो बलूत की तरह होती है। कमाई-[बं०] कलिया-करा । कंटी। (उड़ि०)। इसका स्वाद भी बलूत का सा होता है। कमाखा-[बर ] नीम | जालीनूस के अनुसार इसकी डालियाँ रेहान की डालियों की तरह और उनसे मोटी होती हैं कमाखेर-[बं०] Andropogon pardus, और रंग हरा होता है । पत्ते बलूत के पत्तों की Linn.) गंजिनी। तरह छोटे २ होते हैं । फूल और जड़ कड़वी और क (का) माच-[40] केबाँच । रक्त वर्ण की होती है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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