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________________ कमलच्छद २१७४ कमला कमलच्छद-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) कङ्क पक्षी । कांक । बूटीमार । बगला । (२) कमल का पत्ता । ... पद्म दल । कमलजीरा-संज्ञा पुं॰ [सं० कमल+हिं० जीरा ] | . कमल का जीरा । कमलकेसर । कमलतुज्ज़रअ-[अ० ] टिड्डी की तरह एक पक्षी । कमलतंतु-संज्ञा सं०] कमल की डाँड़ी। मृणाल । कमलनाल-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री० ] कमल की डांड़ी जिसके ऊपर फूल रहता है। मृणाल । वै० निघ०। कमलनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] कुई। नीलोफर । कुमुदनी । कमलफूल-[ मरा० वम्ब० ] नीलोफर । [पं०] कडु। कुटको । ( Gentiana Kurroo.) कमलबन्धु-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] सूरज । सूर्य । कमलबाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० कमल+बाई ] एक मलबाय-संज्ञा पु. रोग जिसमें शरीर, विशेषकर • आँख पोली पड़ जाती है। कमलमूल-संज्ञा पुं० [सं०] कमल की जड़। भसोड़ । मुरार कमलबीज-संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] कमलगट्टा । भा०।कमलपण्ड-सं० पु. [सं० पु.] पनसमूड कमला-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० (1) वर स्त्री। सुदर स्त्री। मे लत्रिक । (२) एक प्रकार की बड़ी, मीठी नारंगी। संतरा । संगतरा, सरबतीलेबु (बं०) । तन्त्रसार के अनुसार एक प्रकार कानीबू । वस्तुतः यह एक प्रकार की बड़ी नारंगीहै । इसका वृक्ष देखनेमें सर्वतः नारङ्गी के पेड़की तरह मालूम होता है । भेद केवल यह है कि नारंगी के पेड़ से इसका पेड़ किंचित् छोटा होता है। इसके फूल अल्प सुगंधी होते हैं । पत्र कोमल और कम हरे होते हैं । कच्चा फल हरा और खट्टा होता है। पकने पर यह नारंगी की तरह और खटमिट्ठा हो जाता है । कोई-कोई अधिक मीठे, पुष्टि, सुगंधिपूर्ण एवं सुम्वादु होते हैं। किसी-किसी का छिलका पतला एवं चिकना और किसी का मोटा किन्तु नारंगी के छिलके की तरह कड़ा नहीं होता है।। नारंगी के छिलके से इसमें कड़वाहट भी कम होती है । और सुगंध आती है मोटे छिलकेवाले से पतला छिलकावाला उत्तम होता है। सिलहट का कमला अच्छा होता है। इतना मीठा और कहीं का नहीं होता। वहाँ इसके जंगल खड़े हैं। वि० दे० "सतरा" वा "नारंगी" । ___ पर्या-कौला, कौंला, कँवला, कमला -हिं कमला लेबू , सरबती लेबू-बं० । कमला, नारङ्ग, नागरङ्ग, सुरङ्ग, त्वग्गन्ध, त्वक् सुगंध, गन्धाढ्य गन्धपत्र, मुखप्रिय, -सं०। सुन्तला (नेपाली) संतरा -पं० । नारुङ्गो-गु० | नारिङ्गताल-बम्ब० सकूलिम्बा -मार० । नारिची-द.। किचिलि -ता । गञ्जनिम्म- कित्तबोइपये-कना० । माहुर नारना -मन। जेरूक (महिसुरी)। नारंज-० । नारंग -फ्रा | थऊबय -बर० । दोदङ्ग -सिंह०। गुणधर्म तथा प्रयोग प्रकृति-द्वितीय कक्षा में शीतल और तर । (मतांतर से द्वितीय कक्षा के प्रथमांरा में शीतल और अंतिमांश में तर है) __ हानिकर्ता-कास रोगीको और श्वासोच्छ वासावयव तथा कफ प्रकृति और शीतल प्रकृतिको । दर्पघ्न-नमक और खाँड । (शर्करा काली मिर्च और शुद्ध मधु)। प्रतिनिधि-मधुर पुष्ट ताजी नारंगी। मात्रा-श्रावश्यकतानुसार। गुण, कम, प्रयोग-गुणधर्म में यह संतरे की अपेक्षा किंचित् निर्बल होता है। इसलिए कि यह अधिक खट्टा होता है । किंतु नारङ्गी से कम खट्टा होता है । यह रन और पित्त जनित तीव्रता का उन्मूलन करता है, प्यास बुझाता, यकृत और श्रामाशयगत प्रदाह का निवारण करता, हृदय को प्रफुल्लित करता, खफकान को दूर करता, और मूत्रप्रवर्तन करता है। इसका छिलका श्रामाशय को बल प्रदान करता है । इसके लेप से ब्यंग वा झाँई का नाश होता है । समूचे कमला नीबू को एक जगह रखदें, जिसमें वह गलकर सूख जावे, पुनः इसे जल में पीसकर चना प्रमाण की गोलियां बाँधे । विसूचिका में जब अत्यन्त के और दस्त
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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