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________________ कमल कमलगुरी भी इसका उपयोग होता है। दद् एवं अन्यान्य पदम काठ । पद्मकाष्ठ । (७) केसर। कुंकुम | त्वग् रोगों में इसका करक व्यवहृत होता है। (८) मूत्राशय । मसाना । मुतवर । (१) जल | -ई० मे० प्लां०। पानी । रा०नि० व०१४ । (१०) आँख का आर० एन० चोपड़ा एम० ए०, एम. डी. - कोया । डेला । (११) गर्भाशय का मुख वा मूत्रकारक एवं शैत्यकारक (Refrigera- अग्र भाग जो योनि के भीतर कमलाकार गाँठ की nt) रूप से ज्वर में कमल की जड़, डंठल, फूल तरह अंगूठे के अगले भाग के बराबर होता है। और पत्ती का शीतकषाय ( Infusion ) सेव्य जिसके ऊपर एक छेद होता है। फूल । धरन । है। -इं० डू. इं० पृष्ठ ५८७ । टणा ! (१२) पित्त का एक रोग जिसमें आँखें कमल का फूल शीतल, कषाय (Astring. पीली पड़ जाती हैं और पेशाब भी पीला पड़ ent) पित्त निहरण (Cholayogue) जाता है। कमला। काँवर । पीलू । और मूत्रकारक है तथा सर्प एवं वृश्चिक-दश मे - [पं०] कमीला । (२) लापपताको । सेव्य है। कमला। अन्य प्रयोग [मह०, कना०, को० ] कमल (१)। मुलेठी, लाल चन्दन, खस, सारिवा और | कमल-[१०] जूं । कमल के पत्ते-इनका काढ़ा बनाकर, उसमें मिली कमलअंडा-संज्ञा पुं॰ [सं० कमल+हिं० अण्डा ] और शहद मिलाकर पीने से गर्भिणी स्त्रियों का कवलगट्टा । ज्वर जाता रहता है। कमलक-संज्ञा पुं॰ [सं० नो०] कमल । कँवल । कसेरू, कमल और सिंघाड़े-इनको पानी के | | कमलकन्द-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कमल की जड़ । साथ पीसकर लुगदी वनालो और दूध प्रौटाकर भिस्सा । भसीड़ । मुरार । शालूक । वै० निघ० । दूध को छान लो। इस दूध के पीने से गर्भवती | दे. "कमल (१)"। सुखी होजाती है। कमल क़रीश-[१०] छोटे सनोवर के बीज । सिंघाड़ा, कमलकेशर, दाख, कसेरू, मुलहटी कमलक (का) कड़ी-[म.] कमलगट्टा। पद्मवीज । और मिश्री-इनको गाय के दूध में पीसकर पीने | कमल कणिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कमल का से गर्भस्राव बंद हो जाता है। छत्तो। कमल बीज कोष। वै० निघ० । दे. कमल-पत्र स्वरस । सेर में १ पाव हरीतकी | "कमल (१)"। भिगोकर शुष्क करलें । पुनः चूर्ण कर रखलें। कमल कीट-संज्ञा पु० [सं० पु.] एक प्रकार का मात्रा-१-६ मा० । इसके उपयोग से पुरा कीड़ा। वन विषम ज्वर का नाश होता है | कमलकेसर-संज्ञा पुं॰ [सं० पुं०, क्री०] कमल का कमल पुष का स्वरस ४ सेर उत्तम शर्करा १ | ___जीरा वा तुरी । पद्म किझल्क। वै० निध० । दे. सेर दोनोंको परस्पर मिलाकर चाशनी करके शर्बत ___"कमल (1)"। तैयार करें। कमलकोरक- ; संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कमल की मात्रा-१-३ तो० । इसके उपयोग से गर्भ कमलकोष- कली । पद्म कलिका । स्राव, रक्क प्रदर, गदोद्वग और रक्त पित्त का नाश | कमलखण्ड-संज्ञा पुं० [सं० की.] पनसमूह । होता है। ___ कमलों का झुण्ड। संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) [ स्त्री. कमलगट्टा-संज्ञा पु. [ सं० कमल+हिं. गट्टा] । कमली ] एक प्रकार का मृग । मे० लत्रिक । (२) सारस । अम० । (३) ताँवा । ताम्र । (४) कमल का बीज । पद्मबीज । कमलाक्ष । कमल के आकार का एक मांस-पिंड । क्रोमा । | कमल गर्भ-संज्ञा पुं॰ [सं०] कमल का छत्ता। (५) औषध । भेषज | मे० लत्रिक । (६) | कमलगुरी-[4.] कवीला । कमीला.!
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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