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________________ २१७२ कमल पानी में भिगोकर वह पानी पिलाने से शिशुओं की पित्तज तृषा शांत होती है ।-ख० अ०। नव्य मत आर. एन. खोरी-पद्मबीज स्निग्ध और पुष्टिकर है। पुष्पकेसर और पुष्पदल शीतल,कषाय तिक एवं कफनिःसारक है। अर्श जात रकस्राव, रकप्रदर और अन्न द्वारा सरक्क प्रचुर द्रव मलनिर्गम प्रतीकारार्थ और कास रोग में इसके पुष्प का शर्बत व्यवहृत होता है। शिरः पीड़ा, विसर्प एवं त्वम्गत अन्यान्य प्रदाह को निवृत्ति के लिये कमल के फूल एवं कोमल पत्र, चंदन और आँवला इनको पीसकर प्रलेप करते हैं। तीव्र ज्वरात रोगी के शयनार्थ कमल-पत्र को बनी शय्या प्रशस्त होती है। मखान्नवत् पद्मबीज भी खाद्य रूप से व्यवहृत होता है। पद्ममूल अर्थात् शालूकजात श्वेतसार से अरारूट तुल्य एक प्रकार का खाद्य प्रस्तुत होता है । पद्मबीज अर्थात् कँवल ककड़ी का चूर्ण "भेसबोला" नाम से प्रसिद्ध है । भारतवर्षीय रमणीगण, प्रदर रोग में स्निग्धता-संपादक रूप से उक्त दोनों वस्तुओं का जो यहां शंघाई से बहुल परिमाण में अाती है, प्रचुर व्यवहार करती हैं। ( मेटीरिया मेडिका श्रान इंडिया, २ खं०, पृ. ३६) डीमक-पद्मबीज-कमलककड़ी और मखाना . खाद्य-द्रव्य रूप से काम में आते हैं । दुर्भिक्ष के समय कमल की जड़ ओर बिशि (Scapes) भी काम में आती हैं, पर ये कड़ई कुस्वादु होती है । ( फा० ई० १ भ० पृ० ७२) .. नादकर्णी-पद्मबीज स्निग्ध और पुष्टिकर होता है । पद्मकेसर ( Filament) और पुष्प शीतल, अवसादक (Sedative ), कषाय (Astringent), तिक, ह्वादक ( Refrigerant) और कफ निःसारक है। जड़ स्निग्धता संपादक है । पुष्प, केसर और पुष्प-दंड वा मृणाल स्वरस अतिसार, विसूचिका, यकृद्विकार और ज्वर में भी उपयोगी होते हैं। यह हृद्य भी : है। पित्तज ज्वरों में इसका मिश्र क्वाथ भी उपकारी होता है । पद्मपुष्पाहृत मधु को पद्ममधु वा मकरंद | कहते हैं । यह नेत्ररोगों में परमोपयोगी सिद्ध होता | है। कफ (Coughs), निर्हरणार्थ व रकाश रकप्रदर और प्रवाहिका गत रक्कनु ति को रोकने के लिए इसके फूलोंका शर्बत व्यवहार किया जाता है । सिर और आँखों को शीतलता प्रदान करने के लिये श्वेतकमलकंद को तिल तेल (Gingelly oil) में उबालकर उससे शिरोऽभ्यंग करते हैं । कंद के टुकड़ों की जगह, इसका निकाला हा स्वरस भी काम में प्राता है। जड़ पिच्छिल वा लुनाबी होती है और अर्श में दी जाती है । कुष्ठ एवं अन्यान्य त्वग् रोगों में इसके बीजों का प्रलेप करते हैं। कामेच्छा को कम करने के लिये इसके तथा मखाना के बीज खाद्य वस्तु की तरह व्यवहार किये जाते हैं। कालीमिर्च के साथ इसके स्त्री-केसर (Pistil) वाह्य और सर्प विषघ्न रूप से अन्तः प्रयोग होता है। रक्तार्श में शहद और ताजे मक्खन वा शर्करा के साथ कमलतंतु व्यवहार्य है । (भा०)। अतीव दाह युक्र तीव्र ज्वर में इसकी पत्ती अधिक विछावन की चादर की तरह काम में आती है। इस हेतु सफेद कमल के साथ पिसी हुई इसकी पत्ती के कल्क का स्थानिक प्रयोगभी होता है, शिरःशूल (Cephalalgia) में शीतल प्रलेप रूप से इसकी पत्ती की डाँडी को पीसकर सिर में लगाते हैं। चंदन और आँवले के साथ पिसा हुश्रा कमल का फूल शिरःशूल (Cephalalgia) में सिर तथा त्वचामें लगाने के लिये तथा विसपं( Erysipelas) एवं अन्यान्य वाह्य शोषों में शीतल प्रलेप का काम भी देता है। ई० मे० मे० पृ० ५६०-१। __कर्नल, वी० डी. वसु-छर्दि में इसके बीज काम में आते हैं और मूत्रल एवं शैत्यजनक ( Refrigerant) रूप से ये शिशुओं को सेवन कराये जाते हैं। पत्र एवं फज के डंठल का ढधिया पिच्छिल स्वरस अतिसार में प्रयोजित होता है। पँखड़ी किंचित् कषेली एवं संग्राही बतलाई जाती है। मसूरिका व शीतला (Smallpox ) में इसके पौधे का शर्बत शीतलतादायक रूप से व्यवहार किया जाता है और कहते हैं कि इसके प्रयोग से निकलते हुये मसूरिका के दाने रुक जाते हैं। सभी प्रकार के विस्फोटकीय ज्वरों में
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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