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________________ फ्लू २१३७ लाते हैं। यह दो प्रकार का होता है, एक ललाई | लिए नीला और दूसरा स्वच्छ और ख़ाकी । वि० दे० "मिट्टी का तेल ” । क़फ़्लूतु - [ ? ] शामी गंदना । कफ्लूस - [ ? ] ग़ार । क़फ़्साऽ - [अ०] ( १ ) श्रामाशय । ( २ ) उदर । शिकम । ( ३ ) कमीनी औरत । पु'चला स्त्री । कसून, कब्सून - [ यू० ] एक वनस्पति के पत्र और गोल दाने जिसे हबश देश से ले आते हैं। स्वाद तीव्रता और कटुता एवं तीव्र सुगंधि होती है । किसी किसी के मत से यह 'कसूस' है । कोई बायबिडंग मानते हैं । परन्तु सच तो यह है कि यह एक वनस्पति है. जिसके श्रवयव बरंजासिफ की तरह होते हैं । हबश- निवासी इसका प्रचुर प्रयोग करते हैं । प्रकृति - - प्रथम कक्षा में उष्ण एवं रूक्ष । किंतु सत्य यह है कि यह तृतीय कक्षा में उष्ण और रूत है। गुणधर्म तथा प्रयोग दरीय कृमि - निःसारण एवं विरेचनार्थ इसका . चूर्ण मधु वा शर्करा मिलाकर दूध के साथ खिलाते | हैं । कभी इसके साथ अन्य श्रौदरीय कृमि निस्सारक श्रोषध सम्मिलित करते हैं। इसकी जड़ अन्य सभी अंगों से बलवत्तर होती है। इसके उपयोग की सर्वोत्तम विधि यह है कि इसे कूटकर पानी में इमली के साथ मलकर साफ करके पिलादें । यदि अधिक शक्ति की आवश्यकता हो, तो बायबिडंग भी सम्मिलित करदें । यदि अपेक्षाकृत इससे भी अधिक शक्ति की जरूरत हो, तो कालादाने के चूर्ण के साथ खिला दें। यदि कृमि सर्वथा दूर न हो सकें, तो केवल जड़ को पीसकर पानी के साथ फाँक लें। ( ० ० ) क़फ़हर–[ ? ] क्रैक़हर । कब अयून - कब अदयो- } [ सिरि० ] शाहतरा । पित्तपापड़ा । बंग [ वर० ] धोरान । गरान । कबई - संज्ञा स्त्री० दे० "कवयो” । कबक - संज्ञा पुं० [फा०] चकोर पक्षी । कबकू - [ फ्रा ] तीतर | दुर्राज । ४५ फा० कत्रक दरी - फ्रा० ] चकोर पक्षी । क़बक़ब - [ अ ] ( १ ) ठोड़ी । ठुड्डी उदर । पेट । (३) पेट की | श्रावाज़ | कबकी - [ ? ] बेर । कबड्या - निंब - [ मरा० | बकाइन । कबर बग़ब | ( २ ) गुड़गुड़ाहट की TET - [ ० ] शहत की मक्खी । मधुमक्षिका । कबतर - संज्ञा पु ं० दे० "कबूतर" | कबता अकमता, कबस । श्रक्रमता - [ सिरि० अ० ] फ़ाशिरस्तीन । कबन्थ-संज्ञा पुं० दे० "कबन्ध" कबन्ध-संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] जल । रा० नि० व० १४ । संज्ञा पुं० [सं० पु० ] ( १ ) उदर । पेट । ( २ ) बिना सिर का धड़ । रुंड । ( ३ ) बादल । मेघ । ( ४ ) पीपा । कंडाल । कबमी - [ कना० ] शमी । कबद - [ श्रु० ] ( १ ) कलेजे पर चोट लगना । (२) कलेजे में दर्द होना । यकृद्व ेदना । जिगर की बीमारी । (३) श्रायास । कबर - संज्ञा पु ं० [देश० ] पाकर | खबर | संज्ञा पु ं० [अ० क | करील की जाति का एक वृक्ष । जिसमें सफेद फूल आते हैं। शेष सभी बातों में यह करीर के समान होता है । भारतवर्ष में उष्ण प्रधान पश्चिमी हिमालय की घाटी से पूरब की ओर नेपाल तक तथा पंजाब, सिन्ध, पश्चिमी प्रायद्वीप और महाबलेश्वर की पहाड़ियों में इसके वृक्ष पाये जाते हैं । एसिया, अफरीका और यूरोप, अफगानिस्तान, पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफरीका, आस्टेलिया और सैंडविच टापुओं में यह बहुत होता है ! पर्या०- ० - कबर ( क ) - हिं०, पं० । कवार कारक –फ़्रा० । कंटा ( कुमाऊँ ) । कौर, कियारी, बौरी, बेर, बन्दर, बस्सर, ककरी, कंडर, टाकर, बोड़र, करी, कवार, बेरारी, ( पं० ) । कबार | ( सिरिया और श्र० ) । कबरिश, कबर - (बम्ब० ) कलवरी - (सिंध)। कैपेरिस स्पाइनोसCapparis spinosa, Linn. कैडेबा gara Cadaba Murrayana, Gra
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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