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कवर
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ham ? (ले० ) । The edible caper
or Caper plant -श्रं० ।
कबर की जड़
पर्या०. 10- कबर की जड़ -हिं० । वीख़कबर, - ( फ्रा० ) । श्रस्तु कबर । श्रस्लुल् श्रस्फ ( श्रु० ) । टिप्पणी
- श्रारव्य भाषा में 'कबर' से करीर का फल जिसका अचार बनाते हैं, अभिप्रेत है और यह स्वयं करील का भी एक नाम है । यह वस्तुतः अरबी भाषा का शब्द है । परन्तु रसीदो ने फरहगे फ़ारसी में इसका पारस्य कबर शब्द से अरबीकृत होना लिखा है । अंजुमन श्राराय नासिरी से भी उक्त कथन की पुष्टि होती है । अंजुमन और गियासुल्लुगात प्रभृति में इसका उच्चारण 'कबर' लिखा है। उनके अनुसार यह एक सुस्वादु एवं खट्टा है । परन्तु यह ठीक नहीं । क्योंकि कब्र खट्टा नहीं, प्रत्युत कड़वा होता है । करीर वर्ग
(N. O. Capharideoe.)
श्रौषधार्थ व्यवहार - मूलत्वक् ।
इतिहास - ऐसा प्रतीत होता है कि सर्व प्रथम मुसलमान चिकित्सकों ने ही इसकी छाल का औषधीय प्रयोग किया । मजनुल् श्रद्विया के लेखक ने इसके पौधे का उत्तम वर्णन किया है । वे लिखते हैं कि मूलत्वक् ही इसका सर्वाधिक प्रभावकारी भाग है और प्रायः प्रयोग में श्राता है। भारतीयों का करीरफल - टेंटी के प्रयोग का ज्ञान बहुत प्राचीन है । प्रायः सभी प्राचीन अर्वा चीन श्रायुर्वेदीय निघंटुनों में इसका सविस्तार उल्लेख श्राया है । परन्तु करीर की छालका प्रयोग उक्त निघंटुओं में नहीं मिलता । कदाचित् मुसलमान चिकित्सकों को इसका प्रयोग करते देखकर ही इसकी श्रोर भारतीय चिकित्सकों का ध्यान कृष्ट हुआ हो । संभव है इनका उक्त ज्ञान स्वतंत्र हो । यूनानी और लेटिन इन दोनों भाषा के ग्रन्थों मैं कबर – करीर भेद (Capparis ) का उल्लेख मिलता है । अस्तु, यह संभव है कि इसके औषधीय गुणों का ज्ञान उन्हीं से अरबनिवासियों
कबर
को हुआ हो । भारतवर्ष में इसकी जड़ की छाल का श्रायात फारस की खाड़ी से होकर होता है । धर्म तथा प्रयोग
यूनानी मतानुसार-
प्रकृति - जड़ द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष, उष्ण देशों में उत्पन्न वृक्ष की जड़ तृतीय कक्षा पर्यन्त उष्ण एवं रूक्ष। फल तृतीय कक्षा में उष्ण और द्वितीय कक्षा में रूक्ष, किसी किसी के मत से गरम श्रोर तर, बीज तृतीय कक्षा में उष्ण एवं रूक्ष और फूल द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष है । हानि कर्त्ता - - उष्ण प्रकृतिवालों के श्रामाशय, afta, वृक्क और मस्तिष्क को । इसके बहुल प्रयोग से ख़ाज उत्पन्न होती है।
दर्पन - आमाशय के लिये सिकंजबीन, वस्ति के लिये नसून तथा उस्तो खुद्द्स, वृक्क के लिये मधु एवं कुलञ्जन, और मस्तिष्क के लिये शीतल जल और ख़ाज के लिए खीरा ।
प्रतिनिधि - सम भाग ज़रावन्द की जड़ श्रोर विजौरा, श्रर्द्धभाग सफ़ेद कूट, तृतीयांश बेल एवं वृक्ष का प्रत्येक भाग अन्य भाग की प्रतिनिधि है मात्रास्वरस - २ तो० ४ मा० तक, जड़ का चूर्ण १० ॥ मा० तक, क्वाथ में १७॥ मा० से २ तो० ७ ॥ मा० तक |
कब में कटुता, तीव्रता श्रोर क़ब्ज— संकोचन गुण वर्तमान होता है, अस्तु, यह विलीनकर्त्ता, छेदनकर्त्ता, तारल्यकर्त्ता और स्वच्छताप्रद है । अपने कट्वंश के कारण यह स्वच्छता प्रदान करता, शोधन करता, अवरोधोद्घाटन करता और छेदन करता है, अपने तीच्णांश के कारण यह श्रौम्य उत्पन्न करता एवं विलीन करता है, क़ाबिज़ांश के कारण संकुचित करता और शक्ति उत्पन्न करता है । शुष्क फल की अपेक्षा ताज़े फल में अधिक श्राहार — पोषण होता है । अपने पूर्वोक गुणों के कारण यह फालिज – पक्षाघात और श्रवसवताख़दर को लाभ पहुँचाता है । अपने अवरोधोद्घाटक छेदक, विलायक और नैर्मल्यकर गुणों के कारण यह प्लीहा के लिये प्रतीव गुणकारी औषध है । इसी हेतु यह रबू— श्वास को लाभ पहुँचाता है। यह सांद्रीभूत श्रम दोषों का उत्सर्ग करता है,