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________________ क कफेलु - वि० [सं० त्रि० । उणा । श्लेष्मातक वृक्ष । कफोणि. कफोगी. संज्ञा स्त्री० कुहनी । कोहनी । कफणी कपोणी | कफोत्कट - वि० [सं० त्रि० ] कफप्रधान । बलग़मी । यथा—'कणया च कफोत्कटे ।'–च० द. सान्निपातिक ज्व० चि० । २१३६ कफयुक्त । बलग़मी । लसोड़े का पेड़ । सं॰ पु ं० स्त्री० ] केहुनी । कूर्पर । टिहुनी कफोक्लिष्ट - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] एक प्रकार का नेत्र रोग जो कफ से होता है । इसमें सनद, चिकने और मानो जल से शराबोर हो, ऐसे एवं जड़ रूप दिखाई देते हैं । कफेन पश्येद्रूपाणि स्निग्धानि च सितानि च । सलिलप्लावितानीव परिजाडयानि मानवः ॥ मा० नि० । कफोत्क्लेश- संज्ञा पु० [सं० पु० ] कफ के कारण जी मिचलाना । कफ जन्य मिचली । कफ की काई । कफोलि - संज्ञा स्त्री० [सं० पु०, स्त्री० ] केहुनी । कोहनी | कोणी कपोणी । टिहुनी । कफोदर - संज्ञा पुं० [सं० नी० ] कफ से उत्पन्न पेट · का एक रोग । इस रोग में शरीर में सुस्ती, भारीपन और सूजन होजाती है, नींद बहुत श्राती है। भोजन में रुचि रहती है । खाँसी श्राती और पेट भारी रहता है, मंत्री मालूम पेट में गुड़गुड़ाहट रहती है तथा रहता है । I होती है और शरीर टंडा कफौड़- वै० पु० ] कफोणि । कोहनी । कच:- [ फ्रा० ] एक प्रकार का साँप । लफ्ज़ - [ ? ] कसूस का पौधा । नफ़्त - [ ? | जीरा । कफ़्तर - [ फ्रा० तु० ] कबूतर । कफ़्तार -! फ्रा० ] लकड़बग्घा । चर्ख । क्रद -[ ? ] जीरा । [ सिरि० । साही । क़दीर - [ यू० ] मांस गोश्त । कलयहूद कफ्फुलकल्ब - [ [ ० ] ( १ ) बदस्काँ । ( २ ) क मरियम | कफ्फुल्ज् बुअ - [ श्र० ] एक प्रकार का पौधा, जो मौसम बहार में पैदा होता है। कफ़्फ़ - [ [ ० ] उँगलियाँ सहित हवेशी । पंजा । ( २ ) हथेली । ( ३ ) हथेली भर चीज़ । ( ४ ) तैल जो एक दिरहम ३॥ माशे का होता है । एक कफ़्फ़ुस्सब* [ अ० ] जलधनियाँ | देव कॉडर कबीकज (Ranunculus sceleratus ) कफ़्फूल जुबु, फ्कुल सबुअ - [अ०] शाकी के अनुसार एक वनस्पति जी क्षणभंगुर होती है । इसकी पत्ती गोल, कटी हुई, अजमोदे की पत्ती के बराबर होता है और भूमि पर परिविस्तृत रहती है। इसमें पत्ती कम होती है। शाखाएँ पतली और रोमावृत होती हैं । तथा ये भी ज़मीन पर फैजी होती हैं। रंग में ये पीली होती हैं और एक जड़ से बहुत सी शाखायें फुटती हैं। फूल सुवर्ण पीत और श्वेत रंग के भी जाते हैं। इसकी जड़ कटुकी (खर्ब) मूलवत् और अत्यन्त तोच्या होती है। यह जल के समीप एवं तर भूमि में उत्पन्न होती है । किसी-किसी के नवं से यह कवीकज का एक भेद । कोई-कोई इसे नस कबीकज जानते हैं । / प्रकृति - द्वितीय कक्षा में उष्ण और रूक्ष । गुणधर्म - यह लताफ पैदा करती है, मवाद को काटती है, स्वच्छता प्रदान करती है । और विलायक है । इसको पीसकर आँख में लगाने से जाला कट जाता है । इसके लेप से मस्से कट जाते हैं। यदि इसको पीसकर दत पर अवचूर्णित करें तो बदगोश्त को नष्ट करे और क्षत को साफ करे । ( ख० श्र. ) कफ़्याल - [ ? ] चालूबुखारा । कफ. - [अ०] ] क़ ुल्यहूद । क़फ. - [अ० ] (१) क्रिर्मिज़ । ( २ ) गुग्गुल । मक । (३) सिलाजीत हिन्दी । [?] (9) क़ीर | मोमियाई | अलकतरा । (२) क़क्रूरस - [ ? ] हवुषा | हाऊबेर । क. फ्रा - [ सिरि० | मेंहदी । हिना । } कहलयहू? - [ फ्रा० ] दे० "कुछ रुल्यहूद” । क़फ़रुलयहूद - [ श्र० ] ( १ ) मिट्टी का तेल । (२) एक प्रकार का पत्थर जिसे यहूदिया के समुद्र से
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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