SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१.५ कपूर शीतलचीनी, सफेद जीरा, बालछड़, लौंग, केसर, | बड़ी इलायची के बीज, शुद्ध कस्तूरी, समुद्रफेन, चमेली का इत्र, अर्क गुलाब प्रत्येक २ तो०, समग्र औषधियों को बारीक करके कपूर मिलाकर । इतना खरल करें, जिसमें कपूर के कण न दिखाई देवें । फिर अर्क एवं इतर डालकर इसे एक काँसी की थाली के मध्य स्थापित करें, और उसके | ऊपर एक कॉसे का कटोरा औंधा रखकर गूंधा हुआ आटा लगाकर संधि बंद करदेवें, पुनः थाली को चूल्हे पर रखकर उसके नीचे छोटी उंगली जैसी मोटी वत्ती डालकर एक घी का चिराग़ जला देवे । चार पहर आँच रहे और उतने काल तक ऊपर का कटोरा पानी से भीगे कपड़े से तर करके रखना चाहिये । समस्त कपूर उड़कर ऊपर जा लगेगा । शीतल होने पर उतार लेवें। लगभग ७ तोला कपूर प्राप्त होगा। इससे न्यून होने पर पुनः उसी प्रकार पांच देकर उड़ा लेवें। आँच इतनी हो जिसमें औषधि जले नहीं, और कपूर ऊर्ध्व लग्न होजाय, अन्यथा इसका उक्त प्रभाव नष्ट हो जायेगा । यह 'भीमसेनी कपूर' है। चीनिया कपर-फार्मोसा टापूमें टामशुई नदी के आस पास में इसका वृक्ष अधिक उत्पन्न होता है। वहाँ के गरीब लोग इसको बनाकर चीनी व्यापारियों के हाथ बेचते हैं और वे लोग यूरोपीय सौदागरों के हाथ बेच देते हैं। इसलिये इसको चीनिया कपूर कहते हैं। चीनिया कपूर जापान में भी बनता है। कहते हैं कि इसके वृक्ष के नीचे के भाग को छोटे छोटे टुकड़े करके जापानी लोग भाफ के द्वारा उसका तैल निकाल कर जमाते हैं। प-०-चीनकः, चीनकपूरः,कृत्रिमः, धवलः पटुः ( कटुः ) मेघसारः, तुषारः, द्वीपक' रजः (रा०नि० १२ व०) चीनाक (भा०)-सं० । चीनिया कपूर,चीन कपूर-बंगाचीनी कापूर-म० । चिनाई कपूर-गु०। टनासरम के इलाके में एक श्राप से श्राप उगने वाली घास है, जो ६ से = फुट तक ऊँची होती है। इसके पत्तों को मलनेसे तीव्र कपूर की सगंध पाती है। एक प्रकार की भिंडी भी है, जिससे ४४ फा. कपूर की सी सुगंध निकलती है। खज़ाइनुल अदबिया के रचयिता लिखते हैं कि “मैंने एक वृक्ष देखा, जो ८ फुट के लगभग ऊँचा होता है। तना लगभग ३॥-४ फुट होता है। खजूर के वृक्ष से उसका तना कुछ पतला होता है । सबसे बड़ा पत्ता अढ़ाई इञ्च के लगभग चौड़ा, नुकीला मसृण और जामुन के पत्ते की तरह होता है। इसकी डाली और पत्ते सूधने से कपूर की सुगंधि श्राती है।" उपर्युक पौधों के अतिरिक्त भारतवर्ष में और भी कुछ वृक्ष ऐसे होते हैं जिनसे कपूर प्राप्त किया जा सकता है । जैसे-पाक, नरकचूर, कुलञ्जन, इलायची, हाशा और इकलीलुल जबल प्रभृति । इनमें भी कपूर पाया जाता है। पर साधारण तया इसे ऊपर प्रथमोक्र (Cinnamomum Ca mphora ) वृक्ष से ही प्राप्त करते हैं। ___ कर्नल चोपरा लिखते हैं कि “जंगल की साधारण महत्व की वस्तुओं के परीक्षण से यह ज्ञात होता है कि कारस केम्फोरा ( Kaurus Cam phora) वृक्ष भारतवर्ष में उत्पन्न नहीं होते हैं। फिर भी ब्लूमीज़ ( Blumes) जाति के प्रतिनिधि वृक्ष यहाँ पर पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं । ब्लूमीज़ की कई जातियाँ, जैसे(Blumea Balsamifera) कुकरौंधा ( Blumea lacera ) ( Blumea Depsiflora ) (Blumea malco mii ) और ( Blumea grandis) इत्यादि नैपाल से सिक्किम तक उत्पन्न होती हैं । इसी प्रकार दक्षिणी पठार में १७०० से लगाकर २५०० फुट की ऊँचाई तक भी उत्पन्न होती हैं। इन जातियों के वृक्षों में से कपूर काफी मात्रा में पैदा हो सकता है। ब्लूमिया बालसेयिफेरा ( कुकुन्दर भेद ) अासाम और बरमा में प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता है । मेसन का मत है कि बरमा में ब्लूमिया बाल सेमीफेरा इतना अधिक उत्पन्न होता है कि उससे श्राधे संसार की कपूर की माँग पूरी की जा सकती है। ___डीमक ने कैफोरेशियस ब्लूमिया की तरफ जन साधारण का ध्यान आकर्षित किया है। इसके
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy