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________________ कपूर कपूर अतिरिक्र ब्लूमिया की और कई अन्य जातियाँ | होती हैं । जिनमें कि कपूर की अत्यन्त तीव्र गंध भाती है और उनसे कपूर प्राप्त भी किया जा सकता है । बंगाल के मैदानों में पाई जाने वाली लिम्नोफिला ग्रेटियोलाइडीज (अंबुल, अंबुली) नामक वनस्पतियों से भी बंगाल में कपूर प्राप्त किया जाता है। इतने उत्तम साधनों के रहते हुये भी भारतबर्ष अपनी कपूर की मांग के लिए विदेशों पर ही निर्भर है। जो कपूर देशी कपूर या इण्डियन कैम्फर के नाम से प्रसिद्ध है, वह भी वस्तुतः | चीन का कपूर है । जो भारतवर्ष में शुद्ध किया जाता है । ब्लूमिया कैम्फर की अल्प मात्रा के अतिरिक्त और कोई भी जाति का कपूर ऐसा नहीं है। जो भारतवर्ष में उत्पन्न हुश्रा कहा जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी में ऐसे पौधों की कृषि का प्रयास किया गया था कि जिनसे कपूर प्राप्त हो सके । ड्रायोवैलेनाप्स कैम्फोरा नामक वृक्ष की कृषि यहाँ पर करने का प्रयत्न किया गया था। इसके अतिरिक्र बोर्नियो और सुमात्रा के कपूर के वृक्ष से जिससे कि बरास उपलब्ध होता है। उनको भी यहाँ उत्पन्न करने का प्रयत्न किया जा चुका है। लखनऊ हार्टीकल्चरल गार्डेन्स की सन् १८८२-८३ की रिपोर्ट में यह बतलाया गया है कि "जो भी कपूर के वृक्ष यहाँ पर लगाये गये थे, उनका परिणाम अति उत्तम हुश्रा, ऐसा विश्वास किया जा सकता है कि यदि इस विषय में पर्याप्त उत्साह लिया जाय, तो ब्लूमीज़ जातिसे उपलब्ध होनेवाले कपूर से या ड्रायबैलेनाप्स नामके वृक्षों से कपूर प्राप्त करने में व्यापारिक साफल्य प्राप्त हो सकता है। कपूर वृक्ष सदैव हरा रहनेवाला वृक्ष है । यह कोचीन, चीन से शंघाई पर्यन्त और हेनान से दक्षिण जापान तक होता है। प्रथम यह चीन में बहुत उत्पम होता था, पर अब वहां की पैदायश बहुत कम हो चुकी है। इस समय जापान और फारमूसा हो इसकी उत्पत्ति के प्रधान केन्द्र हैं। कपूरके सभी वृक्षों में से कुछ गाढ़ा तेल प्राप्त किया | जाता है। इसको वैज्ञानिक विधि से साफ करने । पर कपूर प्राप्त होता है। लकड़ी और जड़ से जो तेल प्राप्त होता है वह अधिक उपयोगी ठहरता है." उसमें कपूर के अतिरिक "साफरल" नामक एक पदार्थ और रहता है। कृत्रिम कपूर • इसके अतिरिक्त रासायनिक योग से कितने ही प्रकार के नकली कपूर बनते हैं। जापान में दारचीनी कपूरी के तेल से (जो लकड़ियों को पानी में रखकर खींचकर निकाला जाता है) एक प्रकार का कपूर बनाया जाता है । तेल भूरे रंग का होता है और वानिश के काम में आता है। आजकल तारपीन तैल में लवणाम्ल-हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाकर नकली कपूर बनाया जाता है। बोर्नियो कैम्फर-बरास को रासायनिक विधि से साधारण कपूर में परिणत कर सकते हैं और सामान्य कपूर में ऐल्कोहालिक पोटाश मिलाकर उससे बोर्नियो कैम्फर निर्मित कर सकते हैं । खज़ाइनुल अद्विया के अनुसार प्रायः केले की जड़ और पत्तियों तथा कपूर की लकड़ी और कई अन्य द्रव्यों से नकली कपूर बनाया जाता है । प्राईन अकबरी में बनावटी कपूर की विधियाँ लिखी हैं। उसके अनुसार नर.. कचूर-जरबाद में अन्य चीजें मिलाकर कपूर बनाते हैं और उसे चीनी कहते हैं। संग सफ़ेद के महीन चूर्ण में कपूर, मोम, बननशा का तेल और गुल रोगन मात्रानुसार योजित करके भी कृत्रिम कपूर बनाते हैं कपूर की छोटी छोटी टिकिया जो बाज़ार में बिकती है उसको औषधि के काम में नहीं लेनी चाहिये, क्योंकि यह कृत्रिम रीति से बनाई जाती है। उसे केबल सुगंधि के लिये काम में ले सकते हैं। ___ इतिहास-भारतीयों का कपूर विषयक ज्ञान अति प्राचीन है। अस्तु, प्रागैतिहासिक काल से ही औषध रूप से एवं धार्मिक कृत्योंमें भी इसका बहुल प्रयोग दिखाई देता है। सुक्षु त, चरक, वाग्भट, हारीत प्रभृति प्राचीन आयुर्वेद-ग्रंथों में 'कर्पूर' का केवल नाम ही नहीं, अपितु गुणागुण पर्यन्त उल्लिखित देखने में आता है। फार्माकोग्राफिया के रचयिता डाक्टर फ्लकीजर के कथनानुसार प्राचीन युनानी एवं लेटिन चिकित्सक कपूर से अपरिचित थे। परन्तु प्रारब्य भेषज तत्वविद इसे
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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