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कनेर घट्ट
२०६६
कनौचा कनेर चेट्ट -[ ते० ] कनेर का पेड़ । दे० "कनेर" | है। अर्थात् शीघ्र अर्द्ध स्वच्छ लबाद द्वारा धना कनेर काला-संज्ञा पु. काला कनेर । कृष्ण करवीर । वृत होजाता है। इसकी गिरी तेलान और स्वाद दे० "कनेर"।
में गिरिवत् ( Nutty ) एवं मधुर होती है। कनेर गुलाबी-संज्ञा पु. कनेर,लाल । दे. उक्र लबाब के लिए ही इसका औषध में उपयोग "कनेर" ।
होता है। कनेर ज़र्द-संज्ञा पुं॰ [ हिं० कनेर x फ़ा० ज़र्द ] पय्यो०-कनौचा, हिं. पं० । नलउसरे को
पीला कनेर । पीत करवीर । दे. "कनेर"। मरा० । सैल्विया स्पाइनोसा Salvia Spiकनेर, पीला-संज्ञा पु० पीला कनेर । दे० 'कनेर" nosa, फायलैन्थस मैडरास पेटेंसिस ( Phyकनेर, लाल-संज्ञा पु. लाल कनेर । दे० "कनेर"। llanthus maderas patensis, कनेर सफेद-संज्ञा पुं० सफेद कनेर । दे. "कनेर"। Linn., Wight.) -ले० । कनोछा । कनेर सुर्ख-संज्ञा पु० [हिं० कनेर फ्रा० सुर्ख] लाल कनेर ।
उत्पत्ति स्थान-पंजाब, लंका के शुष्क भाग, कनेरा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] हथिनी। हस्तिनी । अफ्रीका के गरम भाग तथा अरब, जाबा, चीन वै० निघः ।
और प्रास्टे लिया में पैदा होता है। कनेरियम् कम्यून-[ ले० Canarium Comm - प्रकृति-उष्ण और रूक्ष । किसी-किसी के __une,] दरख्त हब्बुलमन्शम् ।
मत से समान रूप से उष्ण एवं रूक्ष। किसी कनेल-संज्ञा पुं० दे० "कनेर"।
किसी के अनुसार द्वितीय कक्षा में उष्ण और कनैर, कनैल-संज्ञा पु० दे० 'कनेर"।
प्रथम कक्षा में तर है । पर औरों ने इसे द्वितीय
कक्षा में उष्ण एवं रूक्ष लिखा है। कनोमन लेपचा ] बहेड़ा।
हानिकर्ता-पीहा को और शिरः शल उत्पन्न कनोर-[देश॰] बनखोर। Aesculus Indica
करता है। खानोर । काकरा।
दर्पघ्न-गुलनार तथा रक गुलाब । किसीकनेरी-संज्ञा स्त्री० [ अं० कैनरी (टापू)] प्रायः किसी के मत से रोगन वादाम, तुम हुम्माज और
तोते के श्राकार की एक प्रकार की बहुत सुन्दर अर्क बादियान | चिड़िया । जिसका स्वर बहुत कोमल और मधुर | प्रतिनिधि-तुख्म रेहाँ, तुम बालंगा और दोष होता है और जो इसीलिए पाली जाती है । यह
परिपाकार्थ अलसी के बीज । अनेक जाति और रंग की होती है।
मात्रा-अकेले ७ मा० से १०॥ मा० तक कनोचा-संज्ञा पुं० ) ।
और दूसरी दवा के साथ ॥ मा० तक। कनौचा-संज्ञा पु० देश. पं०] एक प्रकार का
प्रधान कम-अबरोधोद्धाटक, प्रामाशय बल (मरोजातीय) पौधा जिसकी शाखायें लम्बी
प्रद और प्रवाहिका एवं रनातिसार नाशक है। और कुछ गोलाई लिए हर सुगंधिमय होती हैं ।
गुणधर्म तथा प्रयोग फूल पीत कृष्ण वर्ण का होता है। बीज अलसी अबु जरीह के अनुसार तुख़्म कनौचा में यद्यपि की तरह के भूरे, त्रिकोणाकार, मसृण और कोषा- अलसी की अपेक्षा कम उष्णता है तथापि व्रणों वृत होते हैं । ये ऊपर से जालीनुमा कोमल गहरे | के पकाने में यह उससे अधिक शनिशाली है। भूरे रंग की रेखाओं से चित्रित । इञ्च लम्बे, उ
ये कोष्ठ मृदुकर है । और अल्प मात्रा में मलमार्ग
से कफ निःसृत करते हैं। परन्तु भून लेने से ये ससे कुछ कम चौड़े और एक ओर मेहराब नुमा संग्राही हो जाते हैं। इसे भूनकर यदि तुख्म होते हैं। इनका छिलका कड़ा और भंगर होता है।
हुम्माज़ (चुक्र-बीज) के साथ फाँके, तो यह पानी में भिगोने से यह पानी सोखकर फूल जाता खून के दस्त बन्द करदे । और प्रांत्र-व्रण एवं व