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कनर
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२०६७
कनेर
कर चुका हो, तब वस्ति का उपयोग लाभकारी सिद्ध होता है । रोगी को आराम से सुलाएँ ।वमन और वस्ति के उपरांत जब भामाशय और प्रॉन | शुद्ध हो जाँय, तब मुर्गे का चर्ब वा शोरबा शीतल करके पिलाएँ। छाछ में इसबगोल का लबाब मिलाकर देखें या कतीरे के लबाव में मीठे बादाम
का तेल मिलाकर पिलायें, इसके लिये तर और 'ताज़ा खजूर खाना अत्यन्त गुणकारी होता है।
कनेर, पीला
प-०-पीतप्रसव, सुगन्धि कुसुम, (रा. नि०)-सं० । पीला कनेर, पीले फूल का कनेर, पीली कनइल-हिं०, द०। पीत करवी (कल्के फुल)-बं० थेवेटिया नेरिफोलिया Thevetia Nerifolia, Nerium Psidium guss,-ले. | The Exile or yellow Oleander-
ग्रंपच्चै अलरि, तिरुवाञ्चिप्यू -ता. पञ्चगन्नेरु । पञ्च-अरलि ते०-मल। मोलमियाइ-पान-बर। पिं० वट्ठी, पीपला कहर, शेरानी-मरा० । पीलाफुलनी, पीला कनेर-गु० । थिवटी-बम्ब०।
शतावरी वर्ग (N. 0. Apocynaceae) उत्पत्ति-स्थान-पश्चिम भारतीय द्वीप-समूह और भारतवर्ष । भारतीय उद्यान एवं मैदानों में इसे लगाते भी हैं।
रासायनिक संघट्टन-इसके बीजों में ४१% तेल, थेबीटीन ( Thevatin ), थेव-रेजिन ( Theve-resin ), कार्यकारी सार और स्युडो-इंडिकन (Pseudo Indican) ये द्रव्य पाये जाते हैं । छाल में थेवेटीन (Thevatin ) होती है । इसके बीज तैल में ट्रिमातीन Triolein ६३%, ट्रिपामेटीन Tripalm. atin २३%, और ट्रि-स्टियरीन Tri-Stearin २७% ये द्रव्य होते हैं। इसकी खली में धेवेटीन Thevetine नामक एक विषैला ग्लुकोसाइड पाया जाता है। शुद्ध स्थिर तैल नादकी
और खोरी" विल्कुल प्रभाव शून्य ( Inert) होता है।
औषधार्थ व्यवहार चाल। · मात्रा-स्वकचूर्ण, 1 से पाना भर
__ गुणधर्म तथा प्रयोग . आयुर्वेदीय मतानुसार'पीतकरवीरको'ऽन्यः * . * *। कृष्णस्तु चतुर्विधोऽयं गुणे तुल्यः ।
रा०नि० १.. पीतादि चारों प्रकार के कनेर गुण में समान है
यूनानी मतानुसार-वैद्यों के कथनानुसार पीले कनेर का दुधिया रस अतिशय विषैला होता है। इसकी छाल कडू ई दस्तावर और ज्वर उता. रनेवाली है। इसका अर्क उचित मात्रा में सेवन करने से कई तरह के जूड़ी-तापों को और ज्वर के दौरों को रोकता है । इसके बीजों की मांगी अत्यंत कड़ ई होती है। इसके चबाने से मि सुन्नपन एवं रुक्षता प्रतीत होती है । इसके बीजों की मींगी का तेल वमन एवं विरेक् लाता है। किसी २ को इससे अत्यंत कै-दस्त होते हैं। इस को मांगी अत्यन्त विषैली होती है। ब्र...
नव्यमत आर० एन० खोरी-पीले कनेर के स्वाद चूर्ण में सिंकोना त्वक् चूर्ण से पचगुनी. ज्वरनी शक्ति विद्यमान होती है। अर्थात् एक रत्ती यह बात ५ रत्तो सिंकोना की छाल के बराबर है। इसकी छाल कड़ई और नियतकालिक ज्वर नाशक (Anti-periodic) है। नवज्वर (Renittent) और विषम ज्वर में इसके सेवन से उपकार होता है। अधिक मात्रा में सेवन करने से इसका वामक एवं विरेचक प्रभाव होता है और विषाक्त मात्रा में सेवित होने से 'एसिड-विष' के लक्षण प्रकाश पाते हैं। वीजजात तैन बांतिकर
और विरेचक है तथा जैतून के तेल की भांति इसका बाह्य प्रयोग होता है। (मेटीरिया मेडिका श्राफ इंडिया-२ य खं०, ३६२ पृ.)
पीले कनेरा की छाल को ज्वरनिवारणी शक्ति का परीक्षण और समर्थन डा. जी. बिडी और डा० जे० शार्ट ने भी किया है।
जल कनेर. . . यह सूजन उतारता, शुक्र प्रमेह का नाश करता, कफनाशक और विषघ्न है तथा वायु के रोगों में उपकारी है। यह उदर के भारीपन को दूर करता है।