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एफिड़ा
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(Exhaust) करें, फिर उसमें इतना काफी पानी सम्मिलित करें, जिसमें एलकोहल की शकि लग-भग ४५ प्रतिशत रहे । ५.० घनरातांरामीटर रसक्रिया में समस्त क्षारोद की मात्रा ग्रेन रहनी चाहिये । इस एक्स्ट्रक्ट को चाहे अकेला व्यवहार में लायें या ऐजमा भिक्स्चर के साथ सम्मिलित का । यह श्वास के वेग नियन्त्रित करने में अतीव गुणकारी है। विशुद्ध ज्ञारोदों की अपेक्षा यह बहुत ही सस्ती है । अस्तु यह गरीब जनता के उपयोग में भी पा सकती है। इसका निर्बल टिंक्चर भी बाजार में उपलब्ध होता है।
श्वास एवं श्वासयन्त्रगत अन्य रोगों में एफीडा का त्वरित विशिष्ट फल होता है। जब श्वास के वेग के कारण रोगी को प्राणान्त क्लेश और पीड़ा हो रही हो, उस समय इसके चूर्ण के उपयोग से वह तत्काल प्रराभित हो जाती है। इसके नियमित प्रयोग से सदा के लिये श्वास रोग को निवृत्ति होती है। इसका क्वाथ भी वातकफज श्वासनलिकाक्षेप में वा अवरुद्व कफज शब्दादि में उपकारी होता है। ____ इसी प्रकार बालकों की श्वास नलिका एवं उसकी शाखा प्रशाखोपशाखाक्षेप, वात-कास (Whooping cough) तथा श्वासयन्त्र पीड़ा को यह विशेषतः प्रशभित करता है और जिनको स्वभावतः प्रतिश्याय और कास हो जाता है, सीने में कफ शब्द करता है, उन्हें इसके कुछ काल के नियमित प्रयोग से शुभ विपाक दिखाई
देता है । श्वसनक ( Pneumonia) और | ... गलग्रह ( Diphtherin) आदि रोगों में |
हृदय के बलाधानार्थ इसका प्रतिदिन प्रयोग
करते हैं। . वक्तव्य-यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि इस
भूतल पर श्वासरुजात मानव-समाज के लिये . एफीडा ईश्वरीय वादान है। इसे श्वास-रोग को अमोघ औषध कहने में कोई संकोच नहीं हो सकता। जिन लोगों का यह विश्वास है कि “दमा दमके साथ जाता है", भलावे एकबार इसका प्रयोगका
देखें । पुनः उन पर हमारी बात को सत्यता व्यक्त . हुये बिना न रहेगी। अखिल भूखंड के डाक्टर
इसका सत्व ( Alkaloid ) श्वास-रोग में वर्तते हैं। इसलिये इसकी अतीव प्रति ठा-वृद्धि हुई है। पर विदित हो कि प्रयोग एवं परीक्षणों द्वारा यह बात भली-भाँति प्रमाणित हो चुकी है कि इस पौधे का चूर्ण इसके क्षारोदों की अपेक्षा कहीं अधिक गुणकारी है। इतना ही नहीं, वरन् जहाँ इसके सत्व के उपयोग से रक्त-चापं इत्यादि बढ़कर नाना प्रकार के उपसर्ग उत्पन्न हो जाते हैं, वहाँ उक्र पोधे के चूर्ण के उपयोग से उनका कहीं दर्शन भी नहीं होता तया रोगी और चिकित्सक दोनों हर प्रकार सुरक्षित रहते हैं । इस प्रकार जहाँ
आप अधिकाधिक लाभप्राप्त करेंगे, वहाँ गरीब जनता भी आपको चिकित्सा से लाभान्वित हो सकेगी। वेग के समय जब रोगी जल-विहीन मोन की भाँति तड़प रहा हो और उसका खाना-पीना, उठना-बैठना भी हराम हो रहा हो, इसको ४ से १५ रत्ती को एक ही मात्रा ताजे पानी के साथ भोता जाने से क्षणमात्र में एकत्रोभूत कफ निःसरित होकर श्वास-नलिका सर्वथा परिष्कृत हो जाती है और रोगी सुख की नींद सो जाता है। इसके अतिरिक्त तीन-चार सप्ताह निरन्तर ६ रत्ती चूर्ण प्रातः काल और वैसी ही एक मात्रा रात्रि में सोते समय ताजे पानी के साथ सेवन कराते रहने से श्वास से सदा के लिये मुक्ति लाभ होता है।
एकोडीन और स्युडो-एफीड्रोन के हृदयोद्दीपक प्रभाव-क्र-चाप पर इन क्षारोदों की उद्दीपनीय क्रिया सुविदित है । इसी हेतु हृदयोत्तेजक रूप से इनका उपयोग किया जा चुका है। हम पहले ही बतला चुके हैं, कि जब कि एफीडीन, विशेषतः बहुल परिमाण में, हृत्पेशियों पर निर्बलताकारक प्रभाव करती है, उसके विपरीत दूसरी ओर स्युडोएफीडीन उस पर उद्दीपक प्रभाव करती है । कोष्ठगत्युत्पादक नाड़ी-प्रांतों पर अपने निर्दिष्ट प्रभाव के सिवा उत्तर कथित क्षारोद धमनिकाओं के मांसतन्तुओं को भी उत्तेजित करता है। अस्त. लेखक ने हृदयोत्तेजक रूप से एफीडा रसक्रिया की, जिसमें एफीड्रीन और स्युडो-एफीडीन दोनों वर्तमान होती हैं ( उसमें भी उत्तर कथित क्षारोद ही अधिक परिमाण में होता है) परीक्षा को, और उससे श्राशा