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________________ कड़ी १९६८ कड़ङ्गी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] दे० "कड़म्बी" । कङ्गो - [ ता० ] राई | घोराई । कटङ्गन - [ बर० ] कनेडा श्रोडेरेटा । कडट-डे़ङ्गाय -[ ता० ] दरियाई नारियल । नारजीले बहरी | 1 कडनु-बलकाई - [ का० ] कद्द. | कश्रा । लौ । कडन्ताथी - [ मदरास ] हावर । मचिंगी । (Dolichandrone falcata, Seem ) कडपहुला - [ क० ] जंगली परोरा ! वनपटोल । कडपर - [ ० ] कीड़ामार | गंधानी | धूम्रपत्र | कडपाल - [ ता० ] कपाल भेदी । कडपुम - [ ता० ] समुद्रफल । हिजल । कड़बड़ा- वि० [सं० कर्बर = कबरा ] कबरा । चित कबरा । कड़बी - हिं० [ संज्ञा स्त्री . ] दे० " कड़वी" । कडमी - [ ० ] समुदरफल । हिजल । asht - [ विहा• ] नारी । नाली । कडमेरो -[ नैपा० ] बड़ा मैदा लकड़ी । कड़म्ब, कड़म्बक -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] ( 1 ) कलमी शाक । करे । कलम्बी । नाड़ी । ( २ ) शाक नाड़िका | शाक का डंठल । ( ३ ) अंकुर । कोंपल । ( ४ ) कदम्ब कडुम्बी, कड़म्बुका -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] कलमी शाक | कलम्बी | करेमू । नाड़ी | कडम्बे - [ ते० ] कदम | कदंब | करवून-संज्ञा पुं० [?] एक पौधे का नाम । कडर्य-संज्ञा पु ं० [ सं॰ पु ं० ] किरात तिक्ल | चिरायता | रा० नि० व० १ । कडल तङ्गाय - [ ता० ] दरियाई नारियल । कडल नागल - [ ता०, कना० ] समुद्रफेन | कपालै - [ ता० ] समुन्दर सोख । समुद्र शोष । कडपा च - [aro ] दरिया की पाची । मोस । ( Gracilaria Lichenoides, Grewille ) Ceylon moss ) कडलमु - [ ते० ] जंगलः केला । गिरि कदली । श्ररण्य कदली । कडला - सं० पु० । कडले - काड -[ मल० ] चने का सिरका । सिरकहे कडले - [aro, मल, का० ] चना | चणक । कडवंची कडलै-डि } [ ता० ] चने का सिरका । कडलै - पुल-पु- बूँट का सिरका । कडल्य - [ ता० ] श्रॉलिया ग्लैण्ड्यूलिफेरा । कडवंची संज्ञा स्त्री० [ मरा०, बम्ब० ] एक लतावर्गीय उद्भिद का फल । इसकी वेल ज्वार के खेत में वर्षारम्भ में उत्पन्न होती है। इसकी शाखायें भूमि पर फैली होती हैं. पत्ती १ से २ इञ्च चौड़ी पञ्चकोण वा कुछ कुछ पंच-खंड युक्त होती हैं और जिसका मध्य खण्ड नातिदीर्घ होता है। यह श्यामता लिए, हरे रंग की कोमल, मसृण वा किंचिल्लोमश होती है जिसके दोनों पृष्ठ (Punctu late ) होते हैं । पत्र प्रांत कराततित अर्थात् श्ररी की भाँति दन्दानेदार होते हैं । पत्रवृत श्राधा से १॥ इञ्च लम्बा होता है पुपुष्पस्तवक १-२ इञ्च होता है और उसमें साधारणतः केवल २ से ४ तक पुष्प होते हैं। पुष्प वाह्यावरण खंड भालाकार पुष्पांतरावरण वा पंखड़ी 4 इ'च दीर्घ एवं सफेद रंग की होती है ( किसीकिसीने पीत रंगकी पंखड़ीका भी निर्देश किया है) पराग केसर दो होते हैं, जिनमें से एक द्विशीर्ष और दूसरा त्रिशीपं होता है, इनमें से प्रत्येक एक पराग कोष युक्त होता है। केसर वा तुरी कटोरी के सिरे के समीप से प्रारम्भ होते हैं । स्त्री-पुष्प वृत - २ ई० दीर्घ, एक पुष्पीय, पौष्पिक पत्र विहीन ( नर पुष्प वृत में एक लघु पौष्पिक-पत्र होता है ।) फल - १ इञ्च श्रर्थात् उंगली के पोर्वे के बराबर लम्बा और 4 इञ्च ( चौड़ा ) तथा पतला होता है । फल का उपरिस्त्वक् झुर्रीदार होता है और उस पर आठ प्रशस्त पशु काएँ होती हैं । छिलका पतला और रेशमी रोइयों से परिव्याप्त होता है । अभी जब कि यह हरा ही होता है चार खण्डों में विदीर्ण हो जाता है और बीज निकल पड़ते हैं। बीज 2-4 इञ्च कुछ-कुछ गोल और कठोर, छोटी मिर्च के बराबर, चिकना और चमकीला होता है और उस पर अणुसंयोजक ( Hilum ) स्पष्ट दिखाई देता है । इसकी जड़ शलगम की तरह गोल और कड़ी होती है और इसमें से ककड़ी (Cucumbe) की भाँति गन्ध श्राती है। यह अत्यन्त विक्क श्रौर तीच्ण होती है। सूक्ष्मदर्शक द्वारा परीक्षा करने पर इसके केन्द्रभाग A
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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