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________________ १९६१ कड़वा कुंदरू में श्वेतसार की से ले दृग्गोचर होती हैं। उनकेन्द्र दध्न-खुरफ़े की पत्ती का रस । भाग और उपचर्म-स्तर के मध्य में रालदार पदार्थ गुण, कर्म, प्रयोग-इसके फल को मांस में, के विषम टुकड़े होते हैं । इसकी समग्र बेल स्वाद या किसी शाक के साथ पकाकर ज्वार की रोटी से में कुछ-कुछ कड़वी होती है। खाते हैं। यह शीघ्रपाकी और पोषणौषधि है। पय्यांय-कदुहुची, पुद्रकारलिका, श्रीफलिका, यह पिच्छिल श्लेष्मा का छेदन करती और नेत्र प्रतिपत्रफला, शुभ्रवी, कारवी, बहुफला, कन्दलता रोगों को लाभ पहुँचाती है । यह क्षुधाजनक,पाचक रुद्रादिकारवल्ली (रा०नि०) लघुलता, व्रणनी, पित्तनाशक और कोष्ठवद्धता निवारक है। इसकी कृष्णमृद्भवा (द्रव्य० ), क्षुद्रकारवेल्लक, कडुहुञ्ची, जड़ रजः प्रवर्तक एवं प्रसवकालीन रक्क्रनिस्सारक कटुहुञ्ची, ह स्व कारवेल्ल, कारवल्ली, क्षुद्रकारवेल्लिका, है। योनि में इसकी वर्ति धारण करने वा पिलाने सुश्वी, कन्दफला, क्षुद्रकारवेली-सं० । कड़बंची- से यह दोनों प्रकार से गर्भपात कराती है। इसका हिं०, मरा० । कासरकाई-हिं० । छोट उच्छे, छोट प्रलेप कण्ठमाला को विलीन करता है । निम्वपत्र करला-बं । मोमोर्डिका सिम्बलेरिया Momo- स्वरस और काँजी के साथ यह प्रत्येक उष्ण एवं rdica cymbalaria, Femal.,लुफा व्युव शीतल विष को अपने प्रभाव से नष्ट करती है। रोसा Luffa Tuberosa, Roxb-ले। यह अर्श एवं तजन्य कोष्ठबद्धता का निवारण कुष्माण्ड वर्ग करती है। कहते हैं कि इसकी बेल के आस-पास (N. 0. Cucurbitacece.) सर्प नहीं रहता। किसी-किसी स्त्री की योनि से उत्पत्ति-स्थान-दक्षिण भारत, मैसूर, कोंकण जो बुबुदवत् एक चीज निकलती है, उसे यह इत्यादि। वन्द करती है । न. ० . ___ डीमक-समग्र क्षुप चरपरा होता है। इसके . औषधार्थ व्यवहार-कंद। औषधीय प्रभाव के सम्बन्ध में बम्बई सरकार के रासायनिक संघट्टन-एकतिक ग्ल्युकोसाइड । रासायनिक विश्लेषणकर्ता डॉक्टर लियान कहते प्रभाव-गर्भपातक। हैं कि गत चार वर्षों के भीतर तीनवार कडवंची गुणधर्म तथा प्रयोग के कन्द जिनका व्यवहार गर्भपातनार्थ किया जा आयुर्वेदीय मतानुसार चुका है, उनके पास भेजे गए हैं । सन् १८८६ ई. कुडुहुञ्चीकटुरुष्णातिक्तारुचिकारिणीचदीपनदा। में पुनरपि ये कन्द तात्कालीन विश्लेषण कर्ता रक्तानिलदोषकरी पथ्याऽपि च सा फलेप्रोक्ता ॥ डा० बेरी के पास, गर्भपात के एक मामले के सम्बन्ध में, भेजे गये थे। फा० इं०२ भ. पृ० कारलीकन्दमर्शोघ्नं मलरोध विशोधनम् । ७६-८०) योनिनिर्गत दोषघ्नं गर्भस्राव विषापहम् ॥ कडवनीची-[म.] पाल । अाच्छुक । (ध०नि०)| कडवला-[ कना] कदम । कदम्ब । कडवंची-चरपरी, कड़वी, गरम, रुचिकारी, कड़वा-वि० दे० "कडु वा” । . और दीपन है तथा यह रक एवं वायु के दोष | कड़वा इंदरजौ-संज्ञा पुं० [हिं० कड़वा+इंद्रजौ ] उत्पन्न करनेवाली और इसका फल पथ्य है। एक प्रकार का इन्द्रजौ। तिक इन्द्रयव । कुटज इसका कन्द (कारलीकन्द)-बवासीर को नष्ट करता, मलावरोध को मिटाता, योनिदोष और कड़वा ककैडाका- राजपु० ] कडु वाखेखसा । गर्भस्राव का निवारण करता है एवं विषघ्न है। | कड़वा ककोड़ा-संज्ञा पुं० । वन ककोड़ा । कडु वा यूनानी मतानुसार गुण-दोष खेखसा। प्रकृति-उष्ण और रूक्ष । स्वाद-तिक। कड़वा कुंदरू-संज्ञा पुं० [हिं० कड़ वा कुदरु ] -क्रवमन के रोगी को। तिक बिम्बी। तीता कुनरू। वीज।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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