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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
संश्लेषः - बन्धः |
बन्धक
कर्म का बंध करने वाला।
(जैसिदी १.१५ वृ)
बंधस्स दव्व-भावभेदभिण्णस्स जे कत्तारा ते बंधया णाम । (धव पु१४ पृ २)
बन्धन
कर्मकरण का एक प्रकार । वीर्यविशेष के द्वारा कर्मपुद्गलों को आत्मप्रदेशों के साथ अन्योन्य अनुगत करना, संश्लिष्ट करना ।
बध्यते जीवप्रदेशैः सहान्योऽन्यानुगतीक्रियतेऽष्टप्रकारं कर्म (कप्र पृ ४८)
येन वीर्यविशेषेण तद्बन्धनम् ।
बन्धनच्छेदनगति जीव और शरीर के परस्पर संबंध-विच्छेद के पश्चात् होने वाली जीव और पुद्गल की गति । बंधणच्छेदणगती - जेणं जीवो वा सरीराओ, सरीरं वा जीवाओ।
बन्धनस्य छेदनं बन्धनच्छेदनं तस्मात् गतिर्बन्धनच्छेदनगतिः, सा च जीवन विमुक्तस्य शरीरस्य शरीराद्वा विच्युतस्य जीवस्यावसातव्या । (प्रज्ञा १६.२३ वृ प ३२८)
बन्धनप्रतिघात
प्रशस्त औदारिक आदि शरीर की प्राप्ति का अवरोध, जो अशुभ आचरण के द्वारा निष्पन्न होता है।
बन्धनं नामकर्म्मण उत्तरप्रकृतिरूपमौदारिकादिभेदतः पञ्चविधं तस्य प्रक्रमात् प्रशस्तस्य प्राग्वत् प्रतिघातो बन्धनप्रतिघातो.... । (स्था ५.७० वृ प २८९)
बन्धनप्रत्ययिक
सादि विस्रसा बंध का एक प्रकार। स्निग्ध और रूक्ष गुणों के आधार पर होने वाली पुद्गलों की संरचना । जणं परमाणुपोग्गलदुप्पदेसिय-तिप्पदेसिय जाव दसपदेसिय-संखेज्जपदेसिय-असंखेज्जपदेसिय-अणंतपदेसियाणं खंधाणं वेमायनिद्धयाए, वेमायलुक्खयाए, वेमायनिद्धलुक्खयाए, बंधणपच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, जहणणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । सेत्तं बंधणपच्चइए । (भग ८.३५१)
बन्धनविमोचनगति
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आम आदि फलों के पक जाने पर किसी व्याघात के बिना स्वभाव से नीचे की ओर होने वाली गति ।
जण्णं अंबाण वा पक्काणं परियागयाणं बंधणाओ विप्पमुक्काणं णिव्वाघाएणं अहे वीससाए गती पवत्तइ । से तं बंधणविमोयणगती । (प्रज्ञा १६.५५ )
बल
१. वह सामर्थ्य, जिसका शरीर के द्वारा प्रयोग होता है। (भग १.१४६ वृ)
बलं - शारीरः प्राणः ।
बलं च शरीरसामर्थ्यम् ।
(स्थावृ प २१ )
२. वह प्राण, जो मन, वचन और शरीर की शक्ति के लिए उत्तरदायी है। (प्रसा १०६६)
बलदेव
शलाकापुरुष का एक प्रकार । वासुदेव से आधे बल से युक्त, दस लाख अष्टापद शक्ति से युक्त, इनका अस्त्र है हल और मुसल । (स्था ५.१६८) बलदेवस्स सारीरबलसामत्थरिद्धी वासुदेवसारीरबलसामत्थरिद्धीतो अद्धप्पमाणा''''। (आवचू १ पृ ६९)
(द्र शलाकापुरुष)
बला
शतायु जीवन की एक दशा, चतुर्थ दशक। इसमें बलप्रदर्शन की क्षमता होती है।
चउत्थी उ बला नाम, जं नरो दसमस्सिओ । समत्थो बलं दरिसिउं, जइ होइ निरुवद्दवो ॥
(दहावृ प ८ )
बहिःपुद्गलप्रक्षेप देशावकाशिक व्रत का एक अतिचार । संकल्पित देश से बाहर अवस्थित व्यक्ति को व्यापार आदि की प्रवृत्ति का संकेत देने के लिए ढेला आदि फेंकना। 'बहिया पोग्गलपक्खेवे' त्ति अभिगृहीतदेशाद् बहिः प्रयोजनसद्भावे परेषां प्रबोधनाय लेष्ट्वादिपुद्गलप्रक्षेप इति (उपा १.४१ वृ पृ १९ )
भावना ।
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बहिरात्मा
१. वह व्यक्ति, जो भ्रान्तिवश शरीर और आत्मा के भेद की अनुभूति नहीं करता ।
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