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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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प्रदेशवत्त्व द्रव्य का वह सामान्य गुण, जिसके कारण उसके प्रदेशों का माप होता है। अवयवपरिमाणता प्रदेशवत्त्वम। (जैसिदी १.३८ )
प्रभावना सम्यक्त्व का आठवां आचार। तीर्थ (धर्मसंघ) की उन्नति के लिए किया जाने वाला उपक्रम। प्रभावना"""स्वतीर्थोन्नतिहेतचेष्टास प्रवर्त्तनात्मिका।
(उ २८.३१ शावृ प ५६७)
प्रदेशाग्र १. सभी कर्मों के अनंतानंत कर्मपुदगल, जिनके द्वारा जीव का प्रत्येक प्रदेश वेष्टित-परिवेष्टित होता है। सव्वेसिं चेव कम्माणं, पएसग्गमणंतगं। (उ ३३.१७) २. प्रदेशपरिमाण। प्रदेशाग्रेण-प्रदेशपरिमाणेनेति। (स्था ४.४९५ ७ प २४०)
प्रदेशार्थ प्रदेश की संख्या की दृष्टि से किया जाने वाला विचार। धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए"पदेसट्ठयाए सव्वत्थोवा"॥
(प्रज्ञा ३.११५) प्रदेशोदय कर्म का वह उदय, जिसका वेदन केवल आत्मप्रदेशों में होता है। केवलं प्रदेशवेदनम्-प्रदेशोदयः। (जैसिदी ४.५) (द्र विपाकोदय)
प्रमत्त १. वह व्यक्ति, जो कषाय से आविष्ट होकर हिंसा के कारणों में प्रवृत्त होता है, अहिंसा के लिए प्रयत्न नहीं करता। जीवस्थानयोन्याश्रयविशेषानविद्वान् कषायोदयाविष्टः हिंसाकारणेषु स्थितः अहिंसायां सामान्येन न यतत इति प्रमत्तः।
(तवा ७.१३.२) २. वह व्यक्ति, जो विकथा, कषाय और इन्द्रिय-विषयों में
परिणत होता है। __ चतसृभिः विकथाभिः कषायचतुष्टयेन पञ्चभिरिन्द्रियैः निद्राप्रणयाभ्यां च परिणतो यः स प्रमत्त इति कथ्यते।
(तवा ७.१३.३)
प्रमत्तसंयत जीवस्थान जीवस्थान/गणस्थान का छट्रा प्रकार। साध-जीवन की प्रारम्भिक अवस्था, जिसमें सर्वविरति का विकास होता है
और प्रमाद की विद्यमानता भी रहती है। किञ्चित्प्रमादवान् सर्वविरतः। (सम १४.५ वृ प २६)
प्रध्वंसाभाव अभाव (प्रतिषेध) का दूसरा प्रकार । लब्धात्मलाभ (उत्पन्न । कार्य) का विनाश होना। जैसे-छाछ में दही का न होना। लब्धात्मलाभस्य विनाश: प्रध्वंसः। (भिक्षु ३.३१)
प्रपञ्चा शतायु जीवन की एक दशा, सातवां दशक। इस अवस्था में मुंह से थूक गिरने लगता है, कफ बढ़ जाता है और बारबार खांसना पड़ता है। सत्तमिं च दसं पत्तो, आणुपुव्वीइ जो नरो। निट्ठहइ चिक्कणं खेलं खासइ य अभिक्खणं॥
(दहावृ प ९)
प्रमाण १. वह ज्ञान, जिससे स्व और पर का निश्चय होता है। प्रमाणं स्वपराभासि ज्ञानं बाधविवर्जितम।... (न्याया १) २. वह ज्ञान, जिससे अर्थ का सम्यक् निर्णय होता है। सम्यगर्थनिर्णयः प्रमाणम्।
(प्रमी १.१.२) ३. न्याय का एक अंग, साधन । यथार्थ ज्ञान, जो संशय और विपर्यय से रहित होता है। प्रमाणम्-साधनम्।
(भिक्षु १.२ वृ) यथार्थज्ञानं प्रमाणम्। प्रकर्षण-विपर्ययाद्यभावेन मीयतेऽर्थो येन तत् प्रमाणम्।
(भिक्षु १.१० वृ)
प्रबला शतायु जीवन की चतुर्थ दशा। (द्र बला)
(निभा ३५४५)
प्रमाणपद १. पद का एक प्रकार। श्लोक का एक चरण-अष्ट
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