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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
अक्षरात्मक समूह। अट्ठवखरनिष्फण्णं पमाणपदं। (धव पु १३ पृ २६६) (द्र मध्यमपद) २. सौ, हजार आदि। सदं सहस्समिच्चादीणि पमाणपदणामाणि।
(धव पु९ पृ १३६)
प्रमाणप्रमाद प्रतिलेखना का एक दोष। प्रस्फोटन और प्रमार्जन का जो प्रमाण (नौ नौ बार करना) बतलाया है, उसमें प्रमाद करना। प्रमाणे-प्रस्फोटादिसंख्यालक्षणे प्रमादम्।
(उ २६.२२ शावृ प ५४२) (द्र गणनोपग)
प्रमाता-परीक्षकः।
(भिक्षु १.२ वृ) प्रमाद १. अरति आदि मोह के उदय से अध्यात्म के प्रति होने वाला अनुत्साह। अरत्यादिमोहोदयात् अध्यात्मं प्रति अनुत्साहः प्रमादः।
(जैसिदी ४.२१) २. करणीय कार्य के प्रति होने वाली विस्मृति। ३. कुशल अनुष्ठानों के प्रति होने वाला अनुत्साह और अप्रवृत्ति। ४. शरीर, वाणी और मन का दुष्प्रणिधान। प्रमादः स्मृत्यनवस्थानं, कुशलेष्वनादरः, योगदुष्प्रणिधानं चेत्येष प्रमादः।
(तभा ८.१ वृ) ५. चेतना की वह अवस्था, जो मन, वचन और शरीर की मोहात्मक प्रवृत्ति से उत्पन्न होती है। से णं भंते! पमादे किंपवहे? गोयमा! जोगप्पवहे।
(भग १.१४२)
प्रमाणसंवत्सर संवत्सर का एक प्रकार, जो दिवस आदि के परिमाण से उपलक्षित होता है, जैसे---नक्षत्र, चन्द्र, ऋत, आदित्य, अभिवर्धित। प्रमाणं परिमाणं दिवसाऽऽदीनां, तेनोपलक्षितो नक्षत्रसंवत्सराऽऽदिः प्रमाणसंवत्सरः। (स्था वृ प ३२७)
प्रमाणाङ्गल माप की एक इकाई। वह माप, जो भगवान् महावीर के अर्धअंगुल को हजारगुना करने पर होता है। समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं, तं सहस्सगुणियं पमाणंगुलं भवइ।
(अनु ४०८) प्रमाणातिरेक दोष मांडलिक दोष का एक प्रकार। अधिक मात्रा में बार-बार
और आवश्यकता के बिना गरिष्ठ या अतिस्निग्ध आहार करना। पगामं च निगामं च, पणीयं भत्तपाणमाहरे। अइबहुयं अइबहुसो, पमाणदोसो मुणेयव्वो॥
(पिनि ६४४)
प्रमाद आश्रव आत्मा का प्रमादरूप परिणाम, जो कर्म-पुदगलों के आश्रवण का हेतु बनता है।
(स्था ५.१०९) प्रमादाचरित अनर्थदण्ड का एक प्रकार। प्रयोजन के बिना सावध कर्म करना, जैसे-वृक्ष आदि का छेदन, भूमि का खनन और जल का सिञ्चन। विकथा करना, तेल के पात्र को खुला रखना आदि। एवं प्रमादचरितमपि, नवरं प्रमादो, विकथारूपोऽस्थगिततैलभाजनधरणादिरूपो वा। (उपा १.३० व पृ९)
प्रमादाप्रमाद उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें प्रमाद, अप्रमाद का वर्णन किया गया है। मज्जादियो पंचविहो पमातो, तेसु चेव आभोगपुब्विया उवरती अप्पमातो, एते जत्थ सवित्थरत्था दंसिर्जति तमज्झयणं पमादप्पमादं।
(नंदी ७७ चू पृ ५८) प्रमिति न्याय का एक अंग। प्रमाण का फल, जो साध्य रूप में होता
प्रमाता १. आत्मा, जो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सिद्ध है। प्रमाता प्रत्यक्षादिप्रसिद्ध आत्मा। (प्रनत ७.५५) २. न्याय का एक अंग। परीक्षक-प्रमाण करने वाला।
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