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________________ १९२ जैन पारिभाषिक शब्दकोश प्रत्येकशरीरनाम प्रदेशा एव-पुद्गला एव यस्य वेद्यन्ते न यथाबद्धो रसनामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से एक जीव को एक स्तत्प्रदेशमात्रतया वेद्यं कर्म प्रदेशकर्म। शरीर मिलता है। (स्था २.२६५ वृ प ६३) यदुदयात् जीवं जीवं प्रति भिन्नं शरीरं तत्प्रत्येकनाम। (द्र अनुभावकर्म) (प्रज्ञा २३.३८ वृप ४७४) प्रदेशत्व एकात्मोपभोगकारणशरीरता यतस्तत्प्रत्येकशरीरनाम। सामान्य गुण का एक प्रकार । द्रव्य का अवयवात्मक स्वरूप। (तवा ८.११) प्रदेशत्वमविभागी पुद्गल: स्वाश्रयावधिः। (द्रत ११.४) प्रत्येकशरीरबादरवनस्पतिकायिक (द्र प्रदेश, प्रदेशवत्त्व) (प्रज्ञा १.३२) (द्र प्रत्येकशरीरी) प्रदेशनामनिधत्तायु आयुबंध का एक प्रकार। आयष्य कर्म के प्रदेशों के साथ प्रत्येकशरीरी होने वाला आयु का निषेचन। वह जीव, जिसका प्रत्येक (पृथग्भूत) शरीर होता है, जैसे- तत्प्रदेशनाम, अनेन विपाकोदयमप्राप्तमपि अस्मिन् भवे एकेन्द्रिय (साधारण वनस्पति को छोड़कर), तीन विकलेन्द्रिय प्रदेशतोऽनुभूयते परिगृहीतं, तेन प्रदेशनाम्ना सह निधत्तमायुः और पञ्चेन्द्रिय। प्रदेशनामनिधत्तायुः। (प्रज्ञा ६.११८ वृ प २१८) पत्तेयं पुधभूदं सरीरं जेसिं ते पत्तेयसरीरा। प्रदेशनिवृत्तसंस्थान (धव पु १४ पृ २२५) प्रत्येकशरीरिणश्च नारकामरमनुष्यद्वीन्द्रियादयः पृथिव्या मुक्त जीव के आत्मप्रदेशों से निर्मित होने वाला संस्थान। आत्मप्रदेश: न तु बाह्यपुद्गलैः शरीरपञ्चकस्यापि सर्वात्मना दयः। कपित्थादितरवश्च। (पंसं ३.८ मवृ पृ ११६) त्यक्तत्वात् निर्वत्तं -निष्यन्नं संस्थानं येषां ते प्रदेशनिर्वत्त(द्र साधारण जीव) संस्थानाः। (प्रज्ञा २.६७.१ वृ प १०८) प्रथमसमयनिर्ग्रन्थ प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण निर्ग्रन्थ (निर्ग्रन्थ) का एक प्रकार । अन्तर्मुहूर्त की स्थिति द्रव्यप्रमाण का एक प्रकार। वह माप, जो वस्तु के अपने वाले उपशांतमोह अथवा क्षीणमोहगुणस्थान के प्रथम समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ (निर्ग्रन्थ)। प्रदेशों से निष्पन्न होता है। इसमें मेय और मापक पृथक् पृथक् नहीं होते। वस्तुगत प्रदेश (अवयव) ही उसके (द्र यथासूक्ष्मनिर्ग्रन्थ) मापक बनते हैं, जैसे-परमाणु, द्विप्रदेशी, स्कन्ध यावत्, प्रथमसमवसरण अनन्त प्रदेशी स्कन्ध। वर्षावास, चातुर्मासिक काल। प्रदेशनिष्पन्नं परमाण्वाद्यनन्तप्रदेशिकान्तं, स्वात्मनिष्पन्नवर्षाकालाख्ये प्रथमे ओसरणे' समवसरणे द्वितीये तु ऋतुबद्धा त्वादस्य चाण्वादिमानमिति"विविधो भागः विभाग:ख्ये...। (बृभा ४२३५ वृ) विकल्पस्ततोनिवृत्तमित्यर्थः। (अहावृ पृ ७५) प्रदेश प्रदेशबन्ध द्रव्य का अविभाज्य अंश। बंध का एक प्रकार। आत्मा के साथ मिलने वाले कर्मपुद्गलों निरंशः प्रदेशः। (जैसिदी १.३१) की राशि। जीवप्रदेशों के साथ प्रत्येक प्रकृति पर प्रतिनियत परिमाण वाले अनन्तानन्त कर्मप्रदेशों का संबंध होना। प्रदेशकर्म दलसंचयः प्रदेशः। (जैसिदी ४.११) वह कर्म, जिसके पुद्गलों का ही वेदन होता है, अनुभाव जीवप्रदेशेषु कर्मप्रदेशानामनन्तानन्तानां प्रतिप्रकृतिप्रतिनियतका वेदन नहीं होता। परिमाणानां बन्धः-सम्बन्धनं प्रदेशबन्धः । (स्था ४.२९० व प २०९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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