________________
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
१८५
पौषध अष्टमी आदि पर्वतिथियां। पौषध:-पर्वदिनमष्टम्यादि।
(स्थावृ प २२५)
आयारनामधेज्जा, वीसतितमे पाहडच्छेदा॥
(व्यभा ४३५) उग्घायमणुग्घाया, मासचउम्मासिया उ पच्छित्ता। पुव्वगते च्चिय एते, णिज्जूढा जे पकप्पम्मि।
(निभा ६६७५) (द्र निशीथ)
पौषधशाला धर्मजागरिका तथा पौषधोपवास आदि के लिए निर्धारित धर्मस्थान। पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ।
(भग १२.६)
प्रकल्पधर निशीथ का अधिकत वेत्ता। प्रकल्पो निशीथाध्ययनं तद्धारिणः। (व्यभा ४०३ ) तिविहो य पकप्पधरो, सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव।..."
(निभा ६६७६) (द्र प्रकल्प)
पौषधोपवास श्रावक का ग्यारहवां व्रत। आहार, शरीर-संस्कार और सावध व्यापार का त्याग कर ब्रह्मचर्यपूर्वक एक दिन-रात तक किया जाने वाला साधना का विशेष प्रयोग। उद्दिष्टेत्यमावास्या परिपूर्णमिति-अहोरात्रं यावत् आहारशरीरसंस्कारत्यागब्रह्मचर्याव्यापारलक्षणभेदोपेतम्।
(स्था ४.३६२ वृप २२५) पोसहोववासे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा-आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे।
(आव परि २३)
पौषधोपवास सम्यग् अननुपालन पौषधोपवास व्रत का एक अतिचार। पौषधोपवास की आराधना के समय आहार, शरीरसंस्कार, अब्रह्मचर्य और व्यापार का चित्त की अस्थिरता के कारण अभिलाषात्मक चिन्तन करना। कतपौषधोपवासस्यास्थिरचित्ततयाऽऽहारशरीरसंस्काराब्रह्मव्यापाराणामभिलषणादननुपालना पोषधस्येति।
(उपा १.४२ वृ पृ १९)
प्रकीर्णक १. वे आगम ग्रंथ, जिनका स्थविर अर्हत्-उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण कर निर्वृहण करते हैं। अरहंतमग्गउवदिढे जं सुतमणुसरित्ता किंचि णिज्जूहंते ते सव्वे पइण्णगा।
(नंदी ७९ चू पृ ६०) २. वे देव, जो नागरिकजनों के सदृश होते हैं। प्रकीर्णकाः पौरजनपदस्थानीयाः। (तभा ४.४) ३. सौधर्म आदि कल्पों का एक प्रकार का विमान। (द्र क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति) प्रकीर्ण तप श्रेणी आदि निश्चित पदों की रचना बिना ही अपनी शक्ति के अनुसार किया जाने वाला तप। 'प्रकीर्णतप:' यच्छ्रेण्यादिनियतरचनाविरहितं स्वशक्त्यपेक्षं यथाकथञ्चिद्विधीयते। (उ ३०.११ शावृ प ६०१) प्रकृति बन्ध बंध का एक प्रकार । सामान्य रूप से ग्रहण किये हुए कर्मपुद्गलों का स्वभाव। सामान्योपात्तकर्मणां स्वभावः प्रकृतिः। (जैसिदी ४.८) प्रक्षेपाहार कवलाहार, मुख तथा किसी अन्य माध्यम से प्रक्षिप्त किया जाने वाला आहार। """पक्खेवाहारो पुण, कावलिको होति नायव्वो॥
(सूत्रनि १७२)
पा
प्रकरण सूत्र वह सूत्र, जिसमें प्रश्नोत्तर अथवा संवाद-शैली का प्रयोग होता है। पगरणओ पुण सुत्तं, जत्थ उ अक्खेवनिन्नयपसिद्धी।
(बृभा ३१८) प्रकल्प निशीथ (आचारप्रकल्प) सूत्र, जो प्रत्याख्यान पूर्व के तीसरे आचारवस्तु के बीसवें प्राभृतछेद से निर्मूढ है, जिसमें उद्घातिक तथा अनुद्घातिक प्रायश्चित्त प्रतिपादित हैं। निसीध नवमा पुव्वा, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थूओ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org