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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
का अर्थ- श्रुत और विचार का अर्थ-व्यञ्जन और योगों (मन, वचन, काय) का संक्रमण है। किसी एक वस्तु को ध्यान का विषय बनाकर दूसरे सब पदार्थों से उसके भिन्नत्व का चिन्तन करना पृथक्त्ववितर्क है और उसमें एक अर्थ से दूसरे अर्थ पर, एक शब्द से दूसरे शब्द पर, अर्थ से शब्द पर, शब्द से अर्थ पर एवं एक योग से दूसरे योग पर परिवर्तन होना सविचार है। पृथक्त्वं-भेदः । वितर्कः-श्रुतम्। विचार:-अर्थव्यञ्जनयोगानां संक्रमणम्।
(जैसिदी ६.४४ वृ)
'पेसुन्ने' प्रच्छन्नमसदोषविष्करणम्। (भग १.२८६ वृ) पैशुन्य पापस्थान वह कर्म, जिसके उदय से जीव पैशुन्य में प्रवृत्त होता है।
(झीच २२.२२) पोट्टपरिहार एक शरीर से मरकर पुनः उसी शरीर में उत्पन्न होकर उसका परिभोग करना। यह परावर्त केवल वनस्पतिकाय में होता है। पउट्टपरिहारो नाम परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके उववञ्जति" तं एवं वणप्फईणं पउट्टपरिहारो। (आवचू १ पृ २९९) (द्र परिवर्त परिहार)
पृथ्वी लोकस्थिति का एक प्रकार। रत्नप्रभा आदि पृथ्वियां, जो उदधिप्रतिष्ठित हैं और त्रस-स्थावर जीवों का आधार है। उदहिपइडिया पुढवी। पुढविपइट्ठिया तसथावरा पाणा।
(भग १.३१०)
पृथ्वीकाय षड्जीवनिकाय का पहला प्रकार। (आचूला १५.४२) (द्र पृथ्वीकायिक) पृथ्वीकायिक वह जीव, जिसका शरीर मिट्टी, खनिज आदि है। पृथिवी-काठिन्यादिलक्षणा प्रतीता सैव कायः-शरीरं येषां ते पृथिवीकायाः, पृथिवीकाया एव पृथिवीकायिकाः।
(द ४ सूत्र ३ हावृ प १३८) पृष्ठतः अन्तगत अवधिज्ञान अंतगत आनुगामिक अवधिज्ञान का एक प्रकार। शरीर के पृष्ठवर्ती भाग से उत्पन्न होने वाला अवधिज्ञान। मग्गओ अंतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलियं वा अलायं वा मणिं वा जोइंवा पईवं वा मग्गओ काउं अणुकञमाणे-अणकडेमाणे गच्छेज्जा। सेत्तं मग्गओ अंतगयं॥
(नन्दी १३) 'मग्गतो' त्ति पिट्ठतो 'अणुकङ्कणं' ति हत्थग्गहितस्स दंडग्गहितस्स वा अणु-पच्छयो कड्डणं ति। (नन्दीचू पृ १७) पैशुन्य पाप पापकर्म का चौदहवां प्रकार। चुगली की प्रवृत्ति से होने वाला अशुभ कर्म-बंध।
(आवृ प ७२)
पोतज आवरणरहित शिशुरूप में जन्म लेने वाला जीव, जैसेवल्गुली आदि। पोतमिव सूयते पोतजा वल्गुलीमादयः।
(द ४.९ अचू पृ ७७) (द्र जरायुज) पौराणिक बहुत वृद्ध होने के कारण बहुविध बातों का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति। पुराणो-वृद्धः, स च चिरजीवित्वाद् दृष्टबहुविधव्यतिकरत्वान्नैपुणिक इति पुराणं वा-शास्त्रविशेष: तज्ज्ञो निपुणप्रायो भवति।
(स्था ९.२८ वृ प ४२८) पौरुषी प्रत्याख्यान का एक प्रकार। सूर्योदय से लेकर दिन के एक चौथाई भाग (प्रहर) में खाद्य-पेय पदार्थों का पूर्ण संयम। सूरे उग्गए पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं।
(आव ६.२) पौरुषीमण्डल उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें प्रहरों के कालमान का प्रतिपादन है। मंडले-मंडले अण्णोण्णा पोरिसी जत्थ अज्झयणे दंसिजति तमज्झयणं पोरिसिमंडलं। (नन्दी ७७ चू पृ ५८)
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