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प्रगृहीता पिण्डैषणा का एक प्रकार, जिसमें मुनि देने अथवा खाने के लिए कड़छी या चम्मच आदि से निकाला हुआ आहार लेते हैं।
पग्गहिया जं दाउं भुक्त्तुं व करेण असणाई ।
प्रचला
दर्शनावरणीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से बैठेबैठे अथवा खड़े-खड़े नींद आती है।
उपविष्ट ऊर्ध्वस्थितो वा प्रचलत्यस्यां स्वापावस्थायामिति
प्रचला ।
(स्था ९.१४ वृ प ४२४)
(प्रसा ७४२)
प्रचलाप्रचला
दर्शनावरणीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से चलतेफिरते नींद आ जाती है। प्रचलातिशायिनी प्रचला प्रचलाप्रचला, सा हि चंक्रमणादि कुर्वतः स्वतुर्भवति । (स्था ९.१४ वृ प ४२४)
प्रच्छनी
असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार । अज्ञात अथवा संदिग्ध विषय की जानकारी के लिए प्रयुक्त की जाने वाली प्रश्नात्मक भाषा ।
पृच्छनी अविज्ञातस्य सन्दिग्धस्य कस्यचिदर्थस्य परिज्ञानाय तद्विदः पार्श्वे चोदना । (प्रज्ञा ११.३७ वृ प २५९)
प्रज्ञप्ति
वह प्रतिपत्ति अथवा व्याख्या, जिसके द्वारा स्वसमय और परसमय की प्ररूपणा की जाती है।
प्रज्ञप्तिर्नाम स्वसमयपरसमयप्ररूपणा ।
प्रज्ञा
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(व्यभा १४७७ वृ प २७)
प्रज्ञप्तिकुशल
में
जीव- अजीव, बंध-मोक्ष, गति आगति आदि की प्ररूपणा कुशल। स्वसमय और परसमय के प्रतिपादन में निपुण । जीवाजीवा बंधं, मोक्खं गतिरागतिं सुहं दुक्खं । पण्णत्तीकुसलविदू, परवादिकुदंसणे महणो ॥ पण्णत्तीकुसलो खलु, जह खुड्डुगणी मुरुंडरायस्स । पुट्ठो कह न वि देवा, गयं पि कालं न याणंति ॥
(व्यभा १५००, १५०१)
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
१. विषय की समग्रता का ज्ञान । प्रज्ञा- अशेषविशेषविषयं ज्ञानम् ।
(भग १.१६५ वृ)
२. विशिष्ट क्षयोपशमजन्य मति, जो वस्तुगत धर्मों का यथार्थ पर्यालोचन करती है।
प्रज्ञानं प्रज्ञा - विशिष्ट क्षयोपशमजन्या प्रभूतवस्तुगतयथावस्थितधर्मालोचनरूपा मतिः । ( आवनि १२ हावृ पृ १२) ३. अदृष्ट, अश्रुत विषय के परिज्ञान की क्षमता, जो शिक्षा के बिना होती है।
अदिट्ठ-अस्सुदेसु असु णाणुप्पायणजोगत्तं पण्णा णाम ।' णादुजीवसत्ती गुरूवएसणिरवेक्खा पण्णा णाम । (धव पु९ पृ ८३, ८४) ४. शतायु जीवन की एक दशा, पांचवां दशक। इस अवस्था में मनुष्य धन, स्त्री आदि की चिन्ता करने लगता है और कुटुम्बवृद्धि की अभिकांक्षा करता है।
पंचमं तु दसं पत्तो, आणुपुव्वीइ जो नरो । इच्छित्थं विचिंते, कुडुंबं वाभिकखइ ॥
( दहावृ प ९ ) ५. वह बुद्धि, जिसके द्वारा पहले ही जान लिया जाता है कि क्या होगा ।
प्रागेव ज्ञायते अनयेति प्रज्ञा ।
(उच् पृ २१० )
प्रज्ञापक दिशा
प्रज्ञापक जिस दिशा की ओर अभिमुख होकर सूत्र आदि की व्याख्या करता है, वह पूर्व दिशा है, शेष दक्षिण आदि दिशाएं हैं।
ras जदभिमुोसा पुव्वा सेसिया पयाहिणओ । ( विभा २७०२)
प्रज्ञापना
उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार। यह तत्त्वमीमांसा और दर्शन का ग्रन्थ है। (नन्दी ७७)
प्रज्ञापनी
असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार शिष्यों के लिए यथार्थ का प्रज्ञापन करने वाली भाषा ।
प्रज्ञापनी - विनीतविनयस्य विनेयजनस्योपदेशदानं, यथा प्राणि-वधान्निवृत्ता भवन्ति भवान्तरे प्राणिनो दीर्घायुष इत्यादि ।
(प्रज्ञा ११.३७ वृ प २५९)
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