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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
निसर्जनं निसृष्टं, क्षेपणमित्यर्थः, तत्र भवा तदेव वा नैसृष्टिकी, निसृजतो यः कर्म्मबन्धः । (स्था २.२६ वृ प ३९ )
नैसर्प
महानिधि का एक प्रकार । वास्तुशास्त्र - ग्राम, नगर आदि की रचना का प्रतिपादक शास्त्र ।
सप्पंमि णिवेसा, गामागर नगर पट्टणाणं च । दोणमुहमडंबाणं, खंधाराणं गिहाणं च ॥ (स्था ९.२२.२) नो अतिमात्र भोजन
ब्रह्मचर्यगुप्ति का आठवां प्रकार, जिसमें प्रमाण से अतिरिक्त भोजन करना निषिद्ध है।
धम्मलद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्तं तु भुंजेज्जा, बंभचेररओ सया ॥ नोअमन
लक्ष्य - शून्य मन, अनुबंधशून्य मन ।
( उ १६.८ )
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(स्था ३.३५७ वृ प १३२)
(द्र तदन्यमन, तन्मन)
नोआगमतः ज्ञशरीर द्रव्यनिक्षेप
नोआगमतः द्रव्यनिक्षेप का एक प्रकार । जो शरीर निर्दिष्ट विषय को जानता था पर वर्तमान में ज्ञानशून्य है । जाणगसरीरदव्वावस्सयं - आवस्सए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय चाविय चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा - अहो णं इमेणं सरीर-समुस्सएणं जिणदिवेणं भावेणं आवस्सए ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं । को दितो ? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीर- दव्वावस्सयं ॥ (अनु १६) नोआगमतः ज्ञशरीर - भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यनिक्षेप नोआगमतः द्रव्यनिक्षेप का एक प्रकार। वह क्रिया अथवा द्रव्य, जिसका संबंध अतीत अथवा भावी ज्ञाता के साथ नहीं होता, जैसे- स्वस्तिक, श्रीवत्स आदि तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगल |
तव्वतिरित्तं जहा सोत्थियसिरिवच्छादिणो अट्ठमंगलया सुवण्णदधिअक्खयमादीणि य । (आवचू १ पृ५)
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नोआगमतः द्रव्यनिक्षेप
द्रव्यनिक्षेप का एक प्रकार । व्यक्ति का वह मृत शरीर, जो कभी विवक्षित पद के अर्थ को जानता था । वह व्यक्ति, जिसका शरीर भविष्य में विवक्षित पद को जानने वाला होगा। वह द्रव्य, जो विवक्षित पदार्थ का प्रतिनिधित्व करता है ।
जाणगसरीरं जो जीवो मंगलपदत्थाधिकारजाणओ तस्स जं सरीरं ववगयजीवं, पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च, जहा अयं घयकुंभे आसी अयं महुकुंभे भविस्सति, एवं भवियसरीरविभासा कायव्वा । (आवचू १ पृ ५)
नोआगमतः भव्यशरीर द्रव्यनिक्षेप
नो आगमतः द्रव्यनिक्षेप का एक प्रकार। वह शरीर, जो भविष्य में निर्दिष्ट विषय को जानेगा पर वर्तमान में ज्ञानशून्य है 1 भवियसरीरदव्वावस्सयं - जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते इमेणं चेव आदत्तएण सरीरसमुस्सएणं जिणदिवेणं भावेणं आवस्सए त्ति यं सेकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खड़ । जहा को दितो ? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं ॥ ( अनु १७)
नोआगमतः भावनिक्षेप भावनिक्षेप का एक प्रकार। जो विवक्षित अर्थ को जानता है तथा उस क्रिया में प्रवृत्त है।
उपाध्यायार्थज्ञः अध्यापनक्रियाप्रवृत्तश्च नोआगमतो भावो(जैसिदी १०.९ वृ)
पाध्यायः ।
नोइन्द्रिय
१. मन, जो इन्द्रियों द्वारा गृहीत विषयों का विश्लेषण, पर्यालोचन करता है इसलिए वह नोइंद्रिय है, ईषत् इन्द्रिय है ।
नोइन्द्रियं - मनः ।
(स्था ६.१४ वृ प ३३८)
२. चार कषाय
(द्र दान्त)
नोइन्द्रियप्रत्यक्ष
अतीन्द्रियज्ञान, इन्द्रियों की सहायता के बिना आत्मा से होने वाला ज्ञान ।
गोइंदियपच्चक् ति इंदियातिरित्तं । ( नन्दी ७ चू पृ १५ )
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