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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
नोइन्द्रिययमनीय क्रोध, मान, माया और लोभ की उदीरणा न करना। जं मे कोह-माण-माया-लोहा वोच्छिण्णा नो उदीरेंति, सेत्तं नोइंदियजवणिजे॥
(भग १८.२१०)
नोकर्म कर्म-पुदगलों की उदयोत्तरकालीन अवस्था, इस अवस्था में वे निर्जरा के योग्य बन जाते हैं। वेदितरसं कर्म नोकर्म।
(भग ७.७५ वृ) नोकर्मवर्गणा कर्म, भाषा, मन और तैजस-इन चार वर्गणाओं को छोड़कर शेष उन्नीस वर्गणाएं। सेसएक्कोणवीसवग्गणाओ णोकम्मवग्गणाओ।
(धव पु १४ पृ५२) नोकर्मशरीर कर्म की सहायक सामग्री। चार शरीर-औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस। ओरालिय-वेगुब्विय-आहारय-तेजणामकम्मुदये। चउ णोकम्मसरीरा, कम्मेव य होदि कम्पइयं ॥ कर्मसहकारित्वेन ईषतकर्मत्वाच्च नोकर्मशरीरत्वसंभवात्।
(गोजी २४४ वृ)
नोपरीत-नोअपरीत सिद्ध, जो न परीत है, न अपरीत-दोनों अवस्था से परे है। णोपरित्ते-णोअपरित्ते सादीए अपज्जवसिते।
(जीवा ९.८२) नोभवोपपातगति उपपात गति का एक प्रकार। सिद्ध जीव तथा परमाणु की एक समय में होने वाली गति। नोभवः-भवव्यतिरिक्तः कर्मसम्पर्कसम्पाद्यनैरयिकत्वादिपर्यायरहित इति भावः, स च पुद्गलः सिद्धो वा।
(प्रज्ञा १६.३३ वृ प ३२८) णोभवोववायगती विहा पण्णत्ता, तं जहा-पोग्गलणोभवोववायगती य सिद्धणोभवोववायगती य॥
(प्रज्ञा १६.३३) नोशब्दरूपगन्धरसस्पर्शानुपाती ब्रह्मचर्य की दसवीं गुप्ति (कोट), जिसमें शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श में आसक्त नहीं बनने का निर्देश है। सद्दे रूवे य गंधे य, रसे फासे तहेव य। पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए॥
(उ १६ सूत्र १२ गाथा १०)
नोकषाय ईषत् कषाय, कषाय का उपजीवी कषाय। जैसे-हास्य, रति आदि। कषायैः सहचारिणो नोकषाया इति, उक्तं चकषायसहवर्त्तित्वात्, कषायप्रेरणादपि। हास्यादिनवकस्योक्ता, नोकषायकषायता।
(प्रज्ञा २३.३६ वृ प ४६९)
नोसंज्ञीनोअसंज्ञी केवलज्ञानी और सिद्ध जो समनस्क और अमनस्क-इन दोनों अवस्थाओं से परे होते हैं। नोसंज्ञीनोअसंज्ञी च केवली सिद्धश्च।
(प्रज्ञा २८.१२० वृ प ५१५) नोसातसौख्यप्रतिबद्ध ब्रह्मचर्य की गुप्ति का एक प्रकार, जिसमें ब्रह्मचारी प्रियता
और अनुकूल संवेदन में प्रतिबद्ध नहीं होता। नोसायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ। (सम ९.१)
नोकषायवेदनीय चारित्रमोहनीय कर्म की एक प्रकृति । स्त्रीवेद आदि नोकषाय का वेदन करना। स्त्रीवेदादिनोकषायरूपेण वेद्यते तन्नोकषायवेदनीयम्।
(प्रज्ञा २३.३४ वृ प ४६८) नोकसायवेयणिज्जे "णवविहे पण्णत्ते, तं जहा-इथिए, पुरिसवेए णपुंसगवेदे हासे रती अरती भए सोगे दुगुंछा।।
(प्रज्ञा २३.३६)
नोसूक्ष्मनोबादर सिद्ध, शरीर मुक्त जीव, जो सूक्ष्म और बादर नहीं होता। नोसूक्ष्मनोबादराः सिद्धाः। (प्रज्ञा ३.१११ वृ प १३९) नोस्त्रीकथा ब्रह्मचर्य महाव्रत की एक भावना। स्त्रीविषयक कथा का वर्जन करना, उनके श्रृंगार आदि की कथा न करना।
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