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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
६. भव्य प्राणी, जो मुक्तिगमन के योग्य है।
एकत्र अवस्थिति। रागद्दोसविमुक्को दविओ, वीतराग इत्यर्थः, अधवा वीतराग द्रव्यस्य भावो द्रव्यत्वम्।
(आप पृ २१८) इव वीतरागः।
(सूत्र १.८.१० चू पृ १६८) द्रव्यो भव्यो मुक्तिगमनयोग्य:."यदि वा वीतराग इव
द्रव्यदिशा
दस दिशाओं के उत्थान का कारणभूत द्रव्य। वीतरागोऽल्पकषाय इत्यर्थः।
दशदिक्स्थाननिबन्धनं यद् द्रव्यं सा द्रव्यदिग्। (सूत्र १.८.१० वृप १७०)
(विभा १४७ वृ) द्रव्य अवमोदरिका
द्रव्यनिक्षेप उपकरण और भोजन के अल्पीकरण का प्रयोग।
निक्षेप का एक प्रकार। दव्वोमोदरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उवगरण-दव्वो- १. किसी पदार्थ की विवक्षित क्रिया-परिणति से शून्य अतीत मोदरिया य भत्तपाणदव्योमोदरिया य। (औप ३३) और भविष्य की अवस्था। जैसे-पहले रह चुका अथवा द्रव्य आत्मा
बाद में बनने वाला उपाध्याय। चैतन्यमय अविभाज्य असंख्येय प्रदेशों का स्कन्ध ।
२. अनुपयोग, अध्यवसाय-शून्य अवस्था। त्रिकालानुगाम्युपसर्जनीकृतकषायादिपर्यायं तद्रूप आत्मा
भूतभाविभावस्य कारणम् अनुपयोगो वा द्रव्यम्। द्रव्यात्मा सर्वेषां जीवानां"।"द्रव्यात्मत्वं जीवत्वमित्यर्थः ।
(जैसिदी १०.८) (भग १२.२००,२०१ वृ) द्रव्यनिर्जरा (द्र जीव)
तप आदि शुभयोग की प्रवृत्ति द्वारा होने वाली कर्म-पुद्गलों द्रव्य आश्रव
की जीव से विच्युति।
कर्मणो गलनं यच्च सा द्रव्यनिर्जरा। १. भाव आश्रव के द्वारा आकृष्ट होने वाले कर्म-पुद्गल। परिणमदिकम्मरूवं तं पिहूदव्वासवं जीवे। (नच १५२)
(बृद्रसं ३६ वृ पृ ११९) २. ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के योग्य पुद्गलों का आत्मा में द्रव्यपरमाणु आगमन अथवा आस्रवण।
मूल परमाणु, जो अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य होता णाणावरणादीणं जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि। दव्वासवो स णेओ..॥
(बृद्रसं ३१)
दव्वपरमाणू"अच्छेज्जे, अभेज्जे, अडझे, अगेझे। (द्र भाव आश्रव)
(भग २०.३८) द्रव्यकर्म
(द्र परमाणु) ज्ञानावरण आदि कर्मों के रूप में परिणत पुदगल-द्रव्य।
द्रव्यपाप कम्मत्तणेण एक्कं दव्वं भावो त्ति होदि दुविहं तु।
वह अशुभ कर्म-पुद्गलसमूह, जो बद्ध अवस्था में है, उदयपोग्गलपिंडो दव्वं॥
(गोक ६)
अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ है। (द्र भाव कर्म)
(द्र भावपाप) द्रव्यजिन
द्रव्यपुण्य तीर्थंकर की केवलज्ञान से पूर्ववर्ती अवस्था।
वह शुभ कर्म-पुद्गलसमूह, जो बद्ध अवस्था में है, उदयजे छउमत्था, वाहिं वा वेरियं वा जे जिणंति ते दव्वजिणा।
अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ है। (दअचू पृ ११)
(द्र भावपुण्य) द्रव्यत्व
सामान्य गुण का एक प्रकार। ध्रौव्य, उत्पाद और व्यय की Jain Education International For Private & Personal Use Only
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