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'कृतप्रतिकृतिता' कृते भक्तादिनोपचारे प्रसन्ना गुरवः प्रतिकृतिं - प्रत्युपकरणं सूत्रादिदानतः करिष्यन्तीति भक्तादिदानं प्रति यतितव्यम् । (स्था ७.१३७ वृ प ३८८)
कृतयोग्य
वह मुनि, जो प्रत्युपेक्षणा आदि प्रवृत्तियों में निपुण है तथा अनशनविधि सम्पन्न कराने में कुशल है।
थेरेहि कडाईहिं सद्धिं..... भत्तपाणसपडियाइक्खियस्स.... । (भग २.६६ ) 'कडाईहिं’..... कृतयोग्यादिभिरिति स्यात्, तत्र कृता योगाः - प्रत्युपेक्षणादिव्यापारा येषां सन्ति ते कृतयोगिनः ।
(भग २.६६ वृ)
(द्र कृतयोगी, निर्यापक)
कृतयोगी
१. जो पहले सूत्र और अर्थ का धारण करने वाला होता है, वर्तमान में नहीं होता।
कृतयोगी नाम यः पूर्वमुभयधरः आसीत् नेदानीम् ।
(व्यभा २३३५ वृ प ९ ) २. सूत्र और अर्थ की दृष्टि से छेद ग्रंथों को धारण करने वाला स्थविर |
कृतयोगी सूत्रतोऽर्थतश्च छेदग्रन्थधरः स्थविरः ।
(व्यभा २३६९ वृ प १६ ) ३. वह मुनि, जिसने कठोर तपस्याओं के द्वारा अनेक बार अपनी आत्मा को भावित कर लिया है। कृतयोगो नाम कर्कशतपोभिरनेकधा भावितात्मा ।
(व्यभा ५३८ वृ प २७ )
(द्र कृतयोग्य )
कृतिकर्म
आचार्य, बहुश्रुत आदि के वन्दनाकाल में की जाने वाली क्रियाविधि, जिसके पच्चीस प्रकार हैं, जैसे-दो अवनमन, द्वादशावर्त्त आदि । जिणसिद्धाइरियबहुसुदेसु वंदिज्जमाणेसु जं कीरड़ कम्मं तं किदियम्मं णाम । तस्स... वारसाक्तादिलक्खणं विहाणं फलं चकिदियम्मं वण्णेदि । (कप्रा १ पृ १५८) दोओणयं अहाजायं किइकम्मं वारसावयं । चउसिरं तिगुत्तं च दुपवेसं एगनिक्खवणं ॥ ( आवनि ११९७)
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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
कृतिकर्म
कृतिकर्म करने में कुशल मुनि, जो आलस्य और अभिमान से मुक्त, वैराग्य - सम्पन्न और निर्जरार्थी होता है। आयरिय उवज्झाए, पव्वत्ति थेरे तहेव रायणिए । एएसिं किइकम्मं, कायव्वं निज्जरट्ठाए ॥ पंचमहव्वयजुत्तो, अणलस माणपरिवज्जियमईओ । संविग्गनिज्जरट्ठी, किइकम्मकरो हवड़ साहू ॥ ( आवनि ११९५, ११९७)
कृतिकर्मसम्भोज
सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार । विधिपूर्वक वंदना करना ।
कृतिकर्म – वन्दनकं तस्य करणं-विधानं तद्विधिना कुर्वन् शुद्धः । (सम १२.२ वृ प २२)
कृत्य
आचार्य, जो वंदना के योग्य होता है।
कृति : - वन्दनकं तदर्हन्ति कृत्याः । ( उ १.४५ शावृ प ५४) कृत्सना आरोपणा
प्रायश्चित्त का एक प्रकार। दोष की शुद्धि के लिए दिया जाने वाला वह, तपरूप आरोपण प्रायश्चित्त, जो छः मास की अवधि के भीतर पूर्ण रूप से वहन कर लिया जाए, जिसमें न्यूनता न करनी पड़े। यावतोऽपराधानापन्नस्तावतीनां तच्छुद्धीनामारोपणा कृत्स्नारोपणा । (सम २८.१ वृ प ४६ ) वीसे दाणाऽऽरोवण, मासादी जाव छम्मासा ॥
(निभा ६२७२) कसिणा झोसविरहिता, जहिं झोसो सा अकसिणा उ ॥ (व्यभा ६०० )
कृष्णपाक्षिक अर्द्धपुद्गलपरावर्त से अधिक अवधि तक संसार में रहने वाला जीव ।
जेसिमवड्ढा पोग्गलपरियट्टो सेसओ उ संसारो । ते सुक्कपक्खिया खलु अहिए पुण किण्हपक्खीआ ॥ (स्था १.१८६ वृप २९)
(द्र पुद्गल परिवर्त्त)
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