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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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कूटतुला-कूटमान स्थूलअदत्तादानविरमण व्रत का एक अतिचार । झूठा तोलमाप करना, अप्रामाणिक व्यवहार करना। तुला प्रतीता, मानं-कुडवादि, कूटत्वं-न्यूनाधिकत्वं, ताभ्यां न्यूनाभ्यां ददतोऽधिकाभ्यां गृह्णतोऽतिचरति व्रतमिति, अति-चारहेतुत्वादतिचारः कूटतुलाकूटमानमुक्तः।
(उपा १.३४ वृ पृ १२,१३)
समूहात्मकं, तस्य धर्मः-सामाचारी।
(स्था १०.१३५ वृ प ४८९) कुशल १. वह व्यक्ति, जो कर्म को क्षीण करने में समर्थ है। 'कुसलो' नाम प्रधान: कर्मक्षपणसमर्थ इत्यर्थः ।
(निभा ७४ चू) २. वीतराग अथवा वीतरागता का साधक। कुशल:-वीतराग: वीतरागसाधनायां वा प्रवृत्तः पुरुषः।
(आभा २.९५) ३. सर्वपरिज्ञाचारी, ज्ञानी जीवन्मुक्त। कुशलः-सर्वपरिज्ञाचारी पुरुषः । असौ जीवन्मुक्तः इत्यपि उच्यते।
(आभा २.१८२) ४. केवली, जो ज्ञान के आवरण आदि से बद्ध नहीं होता। कुशल:-केवली। स च अवरणादिभिर्नो बद्धो भवति, भवोपग्राहिकर्मभिर्नो मुक्तो भवति। (आभा २.१८२) कुशलमूला निर्जरा आत्मशोधन के लिए की जाने वाली तपस्या और परीषहजय से होने वाला कर्मपुद्गलों का निर्जरण। तपःपरीषहजयकृतः कुशलमूलः।
(तभा ९.७) परीषहजये कृते कुशलमूला, सा शुभानुबन्धा निरनुबन्धा चेति।
(तवा ९.४५)
कूटलेखकरण स्थूलमृषावादविरमण व्रत का एक अतिचार। प्रमाद अथवा दुश्चिन्तनपूर्वक मिथ्या लेख लिखना। 'कूडलेहकरणे' त्ति असद्भूतार्थस्य लेखस्य विधानमित्यर्थः, एतस्य चातिचारत्वं प्रमादादिना दुर्विवेकत्वेन वा।
(उपा १.३३ वृ पृ ११) कूर्मोन्नता योनि कछुए की पीठ के समान उन्नत योनि, यह योनि का उत्तम प्रकार है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती और बलदेव-वासुदेव की माता के यह योनि होती है। कूर्मः-कच्छप: तद्वदुन्नता कूर्मोन्नता।
(स्था ३.१०३ वृ प ११६) कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं। कुम्मुण्णयाते णं जोणीए तिविहा उत्तमपुरिसा गब्भं वक्कमति तं जहाअरहंता, चक्कवट्टी बलदेववासुदेवा। (स्था ३.१०३)
कृतकरणा वह कुशल साध्वी, जो बहुत बार साधुसंघ की सेवा कर चुकी है। यया साध्व्या बहशो वैयावृत्यानि कृतानि सा कुतकरणा कुशला इत्यर्थः।
(व्यभा २३८८ वृ प १८),
कुशील १. निर्ग्रन्थ का तीसरा प्रकार, जो उत्तरगुण में दोष लगाता है अथवा जो संज्वलन कषाय वाला होता है। कुत्सितं उत्तरगुणप्रतिषेवया सञ्चलनकषायोदयेन वा दूषितत्वात् शीलं-अष्टादशशीलाङ्गसहस्रभेदं यस्य स कुशीलः।
(भग २५.२७८ वृ प ३२०) २. वह शिथिलाचारी मुनि, जो ज्ञानाचार, दर्शनाचार और । चारित्राचार का सम्यक् अनुशीलन नहीं करता तथा जाति, कुल आदि के आधार पर आजीविका प्राप्त करता है। कुत्सितं शीलमस्येति कुशीलः, स त्रिविधो भवतिज्ञानविषये दर्शनविषये चारित्रविषये च। (प्रसाव प २६) जाती कुले गणे या, कम्मे सिप्पे तवे सुते चेव। सत्तविधं आजीवं, उवजीवति जो कुसीलो सो॥
(व्यभा ८८०)
कृतदान 'अमुक ने सहयोग किया था', इस प्रत्युपकार की भावना से जो दिया जाता है। कृतं ममानेन तत्प्रयोजनमिति प्रत्युपकारार्थं यद्दानं तत्कृतम्।
(स्था १०.९७ वृ प ४७१) कृतप्रतिकृतिता लोकोपचार विनय का एक प्रकार। प्रत्युपकार की भावना से विनय करना।
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