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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
शिर और गर्दन प्रमाणोपेत नहीं होते, शेष अवयव प्रमाणयुक्त होते हैं, कुबड़ा। 'खुज्जे'त्ति अधस्तनकायमडभं, इहाधस्तनकायशब्देन पादपाणिशिरोग्रीवमुच्यते तद् यत्र शरीरलक्षणोक्तप्रमाणव्यभिचारि यत्पुनः शेषं तद्यथोक्तप्रमाणं तत्कुब्जम्।
(स्था ६.३१ वृ प ३३९)
कुम्भी
सहा
परमाधार्मिक देवों का एक प्रकार। वे नरकपाल देव, जो नैरयिकों का हनन करते हैं तथा उनको कुम्भी, कढ़ाही, लोहभाजन आदि पात्रों में पकाते हैं। कुंभीसु य पयणेसु य, लोहीसु य कंदु-लोहि-कुंभीसु। कुंभी य नरयपाला, हणंति पाचिंति नरगेसु॥
(सूत्रनि ७८)
कुल
विविधाभरणभूषणाश्चित्रनगनुलेपनाश्चम्पकवृक्षध्वजाः।
(तभा ४.१२) किल्विषिक वह कल्पोपपन्न देव, जो अन्त्यवासिस्थानीय होता है। अन्त्यवासिस्थानीयाः किल्विषिकाः। (तवा ४.४.१०) किल्विषिकी भावना संक्लिष्ट भावना का एक प्रकार। ज्ञान और ज्ञानी के प्रति । असद भावना से भावित चित्त वाले व्यक्ति का व्यवहार और आचरण। नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहणं। माई अवण्णवाई किग्विसियं भावणं कुणइ॥
(उ ३६.२६५) कीलिका संहनन संहनन का वह प्रकार, जिसमें अस्थियों के छोर परस्पर जुड़े हुए होते हैं-एक दूसरे से बंधे हुए होते हैं। कीलिकाविद्धास्थिद्वयसञ्चितं कीलिकाख्यम्।
(स्था ६.३० वृ प ३३९) कुत्रिकापण वह दुकान, जिसमें स्वर्ग, मनुष्यलोक और पाताल-इन तीनों लोकों में होने वाली सभी वस्तुएं मिलती हैं। कुत्रिकं-स्वर्गमर्त्यपाताललक्षणं भूमित्रयं तत्संभवं वस्त्वपि कुत्रिकं तत्सम्पादक आपणो हट्टः कुत्रिकापणः।
(भग २.९५ वृ) कुष्यप्रमाणातिक्रम इच्छापरिमाण व्रत का एक अतिचार। अनजान में अथवा अतिलोभ के कारण गृहसामग्री-थाली, कटोरी आदि के प्रमाण का अतिक्रमण करना। तीव्रलोभाभिनिवेशादतिरेकाः प्रमाणातिक्रमाः।
(तवा ७.२९) 'कुवियपमाणाइक्कमे' त्ति कुप्यं-गृहोपस्करः स्थालकच्चोलकादि, अयं चातिचारोऽनाभोगादिना।
(उपा १.३६ वृ पृ १४) कुब्ज संस्थान संस्थान का पांचवां प्रकार । जिस शरीर-रचना में पैर, हाथ,
१. एक आचार्य की शिष्यसंपदा । २. समानधर्मी और अनेक गच्छों का समूह । कुलमाचार्यसंततिसंस्थितिः।...बहूनां गच्छानां एकजातीयानां समूहः कुलम्।
(तभा ९.२४ वृ) ३. वंश की एक शाखा। (द्र कुलधर्म)
कुलकर कर्मभूमि के प्रारंभ में कुल का संचालन करने वाला व्यक्ति। कुलकरणम्मि य कुसला कुलकरणामेण सुपसिद्धा॥
(त्रिप्र४.५०९)
कुलकोटि
एक ही योनि में उत्पन्न होने वाले जीवों की श्रेणियां। एकस्यामेव योनौ अनेकानि कुलानि भवन्ति।
___(प्रज्ञा १.४९ वृ प ४१) "बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्त जाइकलकोडिजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। (प्रज्ञा १.४९) कुलधर्म १. उग्र आदि कुल (वंश की शाखा) की व्यवस्था और आचार-संहिता। २. जैन मुनियों के चान्द्र आदि गच्छों की सामाचारी। उग्रादिकुलाचारः अथवा कुलं चान्द्रादिकमार्हतानां गच्छ
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