SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश कृष्णराजि पृथ्वीकायिक जीवों और पुदगलों से निर्मित कृष्णपंक्तिप्रचय। इसकी अवस्थिति ऊर्ध्वलोक में है। (देखें चित्र पृ ३४२) 'कण्हराईओ'त्ति कृष्णवर्णपुद्गलरेखाः। (भग ६.८९७) कण्हरातीओ'"पुढवीपरिणामाओ""जीव परिणामाओ वि, पोग्गलपरिणामाओ वि॥ (भग ६.१०४) कृष्णलेश्या अप्रशस्त लेश्या का पहला प्रकार। १. अप्रशस्त भावधारा, क्रूर भावनाओं से संबंधित चेतना की एक रश्मि । निबंधसपरिणामो निस्संसो अजिइंदिओ। एयजोगसमाउत्तो किण्हलेसं तु परिणमे॥ (उ ३४.२२) (द्र भावलेश्या) २. कृष्णलेश्या के परिणमन में आधारभूत कष्ण वर्ण वाले पुद्गल। (उ ३४.४) (द्र द्रव्यलेश्या) केवलदर्शन दर्शन का एक प्रकार । सम्पूर्ण जगत् की समस्त वस्तुओं का सामान्य बोध। (देखें चित्र पृ ३४२) केवलमेव सकलजगद्भाविसमस्तवस्तुसामान्यपरिच्छेदरूपं दर्शनं केवलदर्शनम्। (प्रज्ञा २९.३ वृ प५२७) केवलदर्शनावरणीय दर्शनावरणीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से केवलदर्शन आवृत होता है। केवलमेव दर्शनं तस्यावरणीयं केवलदर्शनावरणीयम्। (प्रज्ञा २३.१४ वृ प ४६७) केवली १. अतीन्द्रियज्ञानी-अवधिज्ञानी, मन:पर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी। तओ के वली पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणकेवली, मणपज्ज-वणाणकेवली, केवलणाणकेवली। (स्था ३.५१३) वह अतीन्द्रियज्ञानी, जिसका ज्ञान घाति कर्मों का क्षय होने पर प्रकट होता है, जो समस्त द्रव्यों और समस्त पर्यायों का साक्षात् ज्ञाता और द्रष्टा है। घातिकर्मक्षयादाविर्भूतज्ञानाद्यतिशयः केवली। (तवा ९.१.२३) कसिणं केवलकप्पं लोगं जाणंति तह य पासंति। केवलचरित्तनाणी तम्हा ते केवली हंति॥ (आवनि १०७९) केवलज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान का एक प्रकार । वह ज्ञान, जो समस्त द्रव्यों और समस्त पर्यायों को साक्षात् जानने में समर्थ है। अह सव्वदव्वपरिणाम-भाव-विण्णत्ति-कारणमणंतं। सासयमप्यडिवाई, एगविहं केवलं नाणं॥ (नन्दी ३३.१) २. आवरण का पूर्णतः विलय हो जाने पर चेतन के स्वरूप का प्रकट हो जाना। तत् सर्वथावरणविलये चेतनस्य स्वरूपाविर्भावो मुख्यं केवलम्। (प्रमी १.१.१५) केवलज्ञानावरणीय ज्ञानावरणीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से केवलज्ञान आवृत रहता है। समस्तावरणक्षयाविर्भूतमात्मप्रकाशतत्त्वमशेषद्रव्यपर्यायग्राहि केवलज्ञानं तदाच्छादनकृत् केवलज्ञानावरणम्। (तभा ८.७) केवलज्ञानी वह आत्मा, जो केवलज्ञानयुक्त है। (भग ६.४५) (द्र केवलज्ञान) केवलीमरण मरण का एक प्रकार । केवलज्ञानी का मरण। """"केवलिमरणं तु केवलिणो॥ (उनि २२३) केवलिसमुद्घात समुद्घात का एक प्रकार । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म का आयुष्य के साथ समीकरण करने के लिए केवली के शरीर से होने वाला आत्मप्रदेशों का प्रक्षेपण। जस्स पुण थोवमाउं हवेन्ज सेसं तियं च बहुतरयं। तं तेण समीकुरुए गंतूण जिणो समुग्घायं॥ (विभा ३०४३) केवलिसमुद्घातो वेदनीयनामगोत्राश्रयः । (सम ७.२ वृ प १३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy