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वृन्दावनविलास
तब विलंब नहिं कियो, सिया पावक जल कीन्हौ । तब विलंब नहिं कियो, चंदना शृंखल छीन्हौ ॥ तब विलंब नहि कियो, चीर द्रुपदीको बाढ्यो ।
तब विलंब नहिं कियो, सुलोचन गंगा काढ्यो || इमि चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतिय वन ।
प्रभु मोर दुःखनाशनविषै, अब बिलंब कारन कवन ॥ ४ ॥ तब विलंब नहिं कियो, साँप किय कुसुम सुमाला ॥
तब विलंब नहिं कियो, उरविला सुरथ निकाला ॥ तब विलंब नहिं कियो, शीलबल फाटक खुल्ले ।
तब विलंब नहिं कियो, अंजना वन मन फुल्ले ॥ इमि चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतिय वन । प्रभु मोर दुःख नाशन विषै, अब विलंब कारण कवन ॥ ५ ॥ तब विलंब नहिं कियो, शेठ सिंहासन दीन्हौ ।
तब विलंब नहिं कियो, सिधु श्रीपाल कढ़ीन्हौ || तब विलंब नहिं कियो, प्रतिज्ञा वज्रकर्ण पल ।
तब विलंब नहिं कियो, सुधन्ना काढ़ि वापि थल || इम चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतिय वन ।
प्रभु मोर दुःखनाशनविषै, अब विलंब कारन कवन ॥ ६ ॥ तब विलंब नहिं कियो, कंश भय त्रिजुग उबारे ।
तब विलंब नहिं कियो, कृष्णसुत शिला उतारे ॥ तब विलंब नहि कियो, खड्ग मुनिराज बचायो । तब बिलंब नहि कियो, नीरमातंग उचायो ॥
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