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अरहंतस्तुतिः।
। इमि चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतियरवन । है प्रभु मोर दुःखनाशनविषै, अब विलंब कारन कवन ||७|
तब विलंब नहिं कियो, शेठसुत निरविष कीन्हों। है तब विलंब नहिं कियो, मानतुंग बंध हरीन्हौ ॥
तब विलंब नहिं कियो, वादि मुनि कोढ़ मिटायो। । तब विलंब नहिं कियो, कुमुद जिनपास मिटायो॥ । इमि चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतियरवन । । प्रभु मोर दुःखनाशनविषै, अव विलंब कारन कवन ॥ ८॥
तब विलंब नहिं कियो, अंजना चोर उवारे । । तब विलंब नहिं कियो, पूरवा भील सुधारे ॥
तब विलंब नहिं कियो, गृद्धपक्षी सुंदर तन । * तब विलंब नहिं कियो, मेकदिय सुरअद्भुतधन ॥ कपि श्वान सिंह जंबुक नकुल, वृषभ शूर मृग अज भवन ।
इत्यादि पतित पावन किये, अब विलंब कारन कवन॥९॥ ॥ इहविधि दुख निरवार, सार सुख प्रापति कीन्हौ । , अपनो दास निहारि, भक्तवत्सल गुन चीन्हौ ॥
अब विलंब किहिं हेत, कृपाकर इहां लगाई। * कहा सुनो अरदास नाहिं, त्रिभुवनके राई ॥
जन वृंद सुमनवचतन अबै, गही नाथ तुम पदशरन । | सुधि ले दयाल मम हालपै, कर मंगल मंगलकरन ॥ १० ॥
इति अरहन्तस्तुति ।