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पत्रव्यवहार।
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जोग अजोग विचारि अखंडित । उत्तर वेग लिखौ अविहंडित ॥
सारवती। चारक नारक वास अहै । लोक विलोक प्रसिद्ध कहै। तामधितै मोहि पाहि विभो । दीनदयाल समर्थ प्रभो ॥
भुजगी। हमें आपका है बड़ा आसरा। सुनो दीनके बंधु दाता वरा ॥ नृपागारगर्ताततै काढ़िये । अमैदान आनंदको बाढ़िये ॥
रथोद्धता।
है और क्या अधिक आपसों कहैं । आप तात सब जानते हैं। । कीजिये अब उपाय नासते (ए)।मोह 'वृन्द' सुख होय जासते।।
(नादविद्यावित् चेतनाथ पंडितसे प्रार्थना।)
दोहा।
चिदानंद चिद्रूप घन, तास दास सुखरास । तिनप्रति करजुग जोरि नित, विनवत 'वृन्द' हुलास ।
प्रमाणिका (गुर्वादि)। मूल चूक शोधको । लीजिये सुबोधको । कीजिये न क्रोधको । जानि बालबोधको ।
सोरठा। केवल ग्रह दिन चंद, संवत शक विक्रम विगत । कातिक कलि कुज छन्द, 'वृन्दावन' पत्री लिखी ॥
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