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वृन्दावनविलास
वसन्ततिलका। भाषा समोसरनपूजन लालजीका ।
है जैनशासन हुलासन नित्य नीका ॥ पै छंदमंग अनरंग जहां तहां है। यामें यही विदुष दूषनको गहा है ॥
तोमर । तहँ कीन बहु विस्तार । लिखि भागतेंदु () उदार ।। रचना कथन है तेह । जजनादिमें नवनेह ॥
वसंततिलका। जो आदिनाथ-हरिवंशपुरानमाहीं। ___ कीनों समौसरन वर्णन मूल नाहीं ॥ ताकेऽनुसार जजनादि कथा न देखी। जो पाठ होय तब मोद भरै विशेखी ॥
मोतीदाम । * *** । सुषोड़श कारनको फल जान ॥ चहै प्रथमै कछु कीरति तासान वीज विना कहुं वृक्षविकाश ॥ * तदुत्तर पावन पंचकल्यान । चहै तमु पूजन हे मतिवान ।। * छियालिस अर्घ चढ़ावन जोग । नवोनिधि लब्धिसमेत सुभोग॥
इन्द्रवज्रा। तथा श्रुतस्कन्धपि पूजनीयं । चौषष्ठि रिद्धि प्रविचिन्तनीयम् ।। साहस अष्टोत्तर नाम नीके । ले अर्थ पूजे जिनराज नीके ॥
मोदक। आप महामतिमंडित पंडित । कीरति श्रीब्रहमंडविमंडित ॥1