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पत्रव्यवहार।
द्रुतविलवित। ' सकल मंजुल मंगलमूल हो । चिदविभूति विमू अदुकूल हो।। * प्रणतपाल कृपाल कृपा करो। मम कलेश कलंक सबै हरो॥
तोटक। सुनिये विनती करुणायतनं । प्रणतारतमंजन पाहि जनं । * कलिकाल कराल प्रचंड अहै। जिनशासनको न उदोत चहै ॥६॥
समरथ्य जथारथपथ्यधनी । तुमसे विरले विरले अवनी। तिहितें कछु जोग प्रयोग करो।कलि-कल्मष-ताप समस्त हरो॥ वरणारसि तीरथवास वसे । जिननाथ सुपारस जन्म लसै। वह पावन पापनशावन भू । परिरच्छ प्रतच्छ प्रणम्य प्रभू ॥
समुद्रिका । अथ रथ पथ तीरथेशको । हथरस थथमो सुवेषको।। * खल-बल-दल कीजिये कला । झटपट रथ दीजिये चला ॥
पुनश्च । । समवसरनके सुपाठकी । अति मति हुलसी सुठाठकी। जिहि विधि निधि सो सुसिद्धिदा। सिधि भवति सु मोहि देवता॥
परिदम दिशामें हायरस नाम शहरमें श्रीनिनमार्गी रथजात्रा में होती थी, सो अनन्तससारी मिथ्यातियोंने विन किया । सो हाकिम आ-y गरेवालेने तो हुक्म दिया के जात्रा होय । तिस्पर दौलतरामादि मि-1
भ्यातियोंने प्रयागमें जो सदरकी अदालत है, तहा नालिश किया। ति इन्होंक तिरस्कार होनेको और त्रिलोकमगलमूल श्रोतीफैश्वरभगवानका
दिगम्परामायको विजय होनेको देवाराधनको लिखी है। (वृन्दावन) २२ धोनमवमरणपूजाको नवीन भाशा वनावनेक संस्कृत प्राकृतादिक प्रथानके अनुसार विधि मांगी है ताकी प्रार्थना । (वृन्दावन) ।
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