SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वृन्दावनविलास wawwwwwwwwww wwwwww मथुरानिवासी पंडित चम्पारामजीके प्रति । शार्दूलविक्रीड़ित। खस्तिश्री मथुरापुरी अघदुरी, सद्धर्मचक्रद्धरी । जंबूमन्मथ मोक्षकामिनि वरी, सर्वार्थसिद्धेश्वरी ॥ चंपाराम पुनीत श्रावक तहां, स्याद्वादविद्याधुरी । काशीतें तिनको जुहार लिखतो, वृंदावनो माधुरी ॥ १॥ लोलतरंग। आप सदा सुखरूप विराजो । श्रीजिनशासनसों हित सानो ॥ शुद्ध चिदानंदकंद अराधो । विघ्न विनिम्न रहो निरबाघो ॥२॥ तोटक। * तुमरे जसको रस फैल रह्यो । दशहूं दिशमाहिं सुवास लह्यो।। * अवकाश नहीं दुसरे जसको। तिहँ वर्न सकै कवि है अस को ॥३॥ वसन्ततिलका। श्रीरामचंद्र बलिभद्र सुमद्रजी है। ___ ताकी कथा सुकृत प्राकृतमें कही है। सीता सुता कवनकी सु तहाँ गही है। जा भांति होय सु इहाँ लिखियो सही है ॥ ४ ॥ पुनश्च । जज्ञाधिकार जिन आदिपुराणजीका । खंडान्वयी सुगम तास प्रबुद्ध टीका ॥ हे मित्र! मोहि अति शीघ्र वनाय ठीका । भेजो जिसे पढ़त प्रांति मिटै सु हीका ॥ ५॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy