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श्री मश० ॥ १६ ॥
कथुलुक डुडुक्कतुरुष्कतिन्दुकाः ॥ ६ ॥ शृङ्गोऽथ लखभुजशाटसटाः सृपाटः कीटः किटस्फटघटा वरटः किलाटः || चोटचपेटफटगुण्डगुडाः सशाणाः स्युर्वारिपर्णफलगर्तरथाजमोदाः ॥ ७ ॥ विधकूपकलम्ब जिसवर्धाः सहचरमुद्गरनालिकेरहाराः ॥ बहुकरकसरौ कुठारशारौ बलरशफरमसूरकीलरालाः ॥ ८ ॥ पटोल: कम्बलो भल्लो दंशो गण्डूपवेतसौ । लालसो रभसो वर्तिवितस्तिटयखुटिः ||९|| ऊर्मीशम्यौ रत्न्यरत्नी अवीचिर्तव्यण्याणिश्रेणयः श्रोण्यरण्यौ ।। पाष्णशल्यौ शाल्मलिर्यष्टिमुष्टी योनीमुन्यौ शेपस्यरण ॥ महक मल्लिका दीपवर्त्यांधार ॥ वृश्चिक वृश्चिकी सविप कीट ॥ शल्यक शल्यकी यावित् ॥ घुटिक घुटिका गुल्फ ॥ अर्थप्राधान्यात् घुण्टिक घुण्टिका, घुट घुटी, गुल्फ गुफा इत्यादि ॥ पिपीलक पिपीलिका वल्मीककृमि । चुलुक चुलुका आस्यपूरणं वारि ॥ हुडक हुदकातोयम् ॥ तुरुक तुरुका सिहक ॥ तिन्दुक तिन्दुकी वृक्षविशेष ॥ ६ ॥ शुद्ध गुद्धा कन्दल ॥ अथ चान्त ॥ लज लया उपचार ॥ भुज भुजा बाहु ॥ शाट शादी परिधानम् ॥ सट सटा सिस्कन्धकेशा ।। सुपाट. पाटी परिमाणविशेष ॥ किट किटी क्शादिपुतलिका ॥ स्फट स्फटा फण ॥ घट घटी कलश ॥ वरद चरा क्षुद्रजन्तुविशेष ॥ किलाट किलाटी क्षीरविकार ॥ किलाटिकेत्यमरटीका || चोट चोटी शाटिका | चपेट चपेटा विस्तृताशफरी गुलिपाणितलम् ॥ फट फटा फण ॥ झुण्ड झुण्डा सुरा | गुड गुडा हस्तिसग्राह ॥ साण शाणा निकष ॥ वारिपर्ण वारिपर्णी फलानामशाकम् ॥ फणफणा फटा ॥ गर्त गतां श्वभ्रम् ॥ रथ रथी स्यन्दन ॥ अजमोद अजमोदा अकुशा ॥ ७ ॥ विध विधा प्रकार ॥ कूप कूपी अन्धु ॥ कलम्य कलम्बी शाकविशेष | जित्य जित्या हलि ॥ अथ रान्ता १२ ॥ वर्ध व चर्मरन् ॥ सहचर सहचरी लता समूहविशेषश्च ॥ मुहर मुद्ररी लोप्टादिभेदनोपकरणम् || नालिकेर नालिकेरी तरुविशेष ॥ फले तु तन्त्रामत्वात् व्यम् ॥ हार हारा मुकादाम ॥ बहुकर बहुकरी समार्जनी ॥ कृसर कसरी तिलोदन ॥ कुठार कुठारी पर्शु ॥ शार शारी आयानवीन वराचेति हर्ष ॥ यहर वल्लरी मञ्जरी । अर्थप्राधान्यान्मक्षर मञ्जरीत्यपि ॥ शफर मत्स्यविशेष | मसूर मसूरी मापविशेष अर्थप्राधान्यान्मसुरोऽपि ॥ कील कला कफण्यादि ॥ राल राला सर्जरस ॥ ८ ॥ पटोल पटोला औषधिविशेष ॥ कम्बल कम्बली उणीवखम् गोगलचर्म च ।। मह भही शखभेद ॥ अथ शान्त ॥ दश दशी क्षुद्रजन्तुविशेष | गण्डूप गण्डूपा करजलादिमुखपूरणम् ॥ अथ सान्ता ॥ वेतस वेतसी बानीर तृष्णातिरेकौत्सुक्यवाचनासु ॥ अन्यत्र तु आश्रयलिङ्ग ॥ रभस रभसा पौर्वापर्याविचार ॥ रभसो हर्षवेगयो । माघे तु सियाम् ' क्रमते नभो रभसबैव ' ॥ अथेदन्ता ३४ ॥ अत्र वर्तिरिय कुटिरिय कुटि स्वल्पवास ॥ अय त्रुटिरिय त्रुटि अवस्था क्षणद्वयम् चेत्यरुण ॥ ९ ॥ अयमूर्मिरियमूर्ति बी[वर्तिर्वस्त्र दशा ।। जय वितस्तिरिय वितरित बितताङ्गुष्ठकनिष्ठ कर || च्यादि ॥ जयमिय वा शमिस्तरुविशेष | अयमिय वा रत्न बद्धमुष्टि कर ॥ अयमिय वारनि सकनिष्ठ कर ॥ अयमिय वाडवीचि नरकभेद | अमिय वा लवित्रम् ॥ अयमिय
॥ लालस लालसा
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अणि अक्षाकीलिका अनि सीमा च ॥ अयमिय वाणि सैव ॥ अयमिय वा श्रेणि पङ्क्ति । अयमिय वा श्रोणि कटि ॥ अयमियमरणि अग्निनिर्मन्थनकाष्टम् । अयमिव वा पाणि गुल्फयोरध' पादावयव ।। सैन्यपृष्ठे तु बाहुलकारपुसि ।। अयमिय वा शलि कौटिल्यम् ॥ अयमिय या शाल्मलिवृक्षविशेष ॥ एकदेशविकृतस्यानन्यात्वात्वाल्मलि ॥ अयमिय वा यष्टि आलम्ब - नदण्ड ।। अयमिय वा मुष्टि सापीडिताङ्गुलि कर ॥ अयमिय वा योनित्पत्तिस्थान श्रोणिश्र ॥ यहौड ' द्वयोयोनिर्भगाकारे ' ॥ अयमिय वा मुनिस्तपस्वी ॥ अयमिय वा स्वातिर्नक्षत्रम् ॥ अयमिय वा गव्यूति कोशद्वयम् । अयमिय वा बस्तिर्मूत्राधार ||१०|| जयमिय वा मेथि पशुबन्धनार्थ सलमध्ये स्थूणा | अयमिय मेधि सेव ॥ अयमिय मसि कञ्चलम् । अयमिय मपिस्तदेव || अयमियमिपुधिस्तूणीर ॥ अयमियसृष्टि खड्ग ॥ व्यञ्जनादिरपि । अयमिय पाटलिस्तरुविशेष ॥ अयभिय जाटलि स एव ॥ अयभियमहि सर्प | अयमिय प्रक्षि किरण | अयमिय तिथि प्रतिपदादि' ।। अयमियमशनिर्वज्रम् विदुञ्च ॥ अयमिय मणि रत्नादि || अयमिय सृणिरङ्कुश ॥ जयमिय मौलि चूडा मुकुट केशाश्च ॥ अयमिय कलि परिहास ॥ अवमिय हलि महाह
लघु
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