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लघुन्यार
श्रीमा
पुष्पनिकुरम्बकुटुम्बशुल्बम् ॥ १९ ॥ प्रसभतलभशुष्माव्यात्मधामर्मसूक्ष्म किलिमतलिमतोक्म युग्मतिग्मं त्रिसंध्यम् । किसलयशयनीये सायखेयेन्द्रियाणि वयभयकलत्रदापरक्षेत्रसत्रम् ॥२०॥ अवेरमजिराभ्रपुष्करं तीरमुत्तरमगारनागरे ।। स्फारमक्षरकुकुन्दरोदरमान्तराणि शिविरं कलेवरम् ॥२१॥ सिन्दुरमण्डूरकुटीरचामर
राणि दुराररवैरचत्वरम् ॥ औशीरपातालमुलूखलातवे सत्वं च सान्त्वं दिवकिण्वयौतवम् ॥ २२ ॥ विश्वं वृशपलिशमर्पिशकिल्विपानुतर्षिषं मिपमृचीपमूजीपशीपें। पीयूपसाध्वसमहानससाध्यसानि कासीसमत्सतरसं यवसं विसं च ॥२३ ॥ मन्दाक्षवीक्षमथ सक्थि शयातु यातु स्वादाशु तुम्बरु कशेरु शलालु चालु ॥ संयत्ककुन्महदपुण्यारादि ॥ शुल्य रज ॥ १९ ॥ अथ भान्ती ॥ प्रसभ बलात्कार ॥ तलभ करिकराघात ॥ भान्तश्चेन पुस्त्वे मालेऽस्य वचनम् ॥ अथ मान्ता दश १०॥ शुप्ममोज ॥ आत्मानमधिष्ठितमध्यात्मम् योगशाराम् ।। बाहुलकात् तःपुरुषादपि समासान्त ॥अव्ययीभावस्य तु 'इन्द्वकत्व'-इति नपुसकत्वम् ॥ घाम गेह तेजत्र ॥ नन्तस्य तु मजन्तत्वादेव सिद्धस् ॥ ईमवणम् ॥ सूक्ष्ममणी ।। किलिम देवदार तलिम कुटिमम् तत्प चन्द्रहास वितान चतोक्म कर्णमल ॥ युग्म युगम् ॥ तिग्म तीक्ष्णम् ॥ अर्थप्राधान्यात् तीक्ष्ण सर तीयमपि ॥ अथ वान्ता ८॥ निसन्यमुपविणवम् सन्यानयसमाहार || 'अजाबन्तान्तो वा'-इति पक्षे सीवे माक्षेऽस्य पाठ || किसलय पहव ॥ शयनीय शय्या ॥ साय दिनावसानम् ॥ खेय परिखा ॥ इन्द्रियम् रेत॥ हुवय मानम् ॥ पाग्यमपि ॥ भय प्रतिभवम् हुन्जकप्रसूनेऽपि ॥ शुप्मादीना मान्तत्वात् किसलयादीना यान्तत्वात् पुस्खे प्राप्ते पाठ ॥ अथ रान्ता २१ ॥ कलत्र भार्या । द्वापर युगविशेप ।। | क्षेत्र केदार । क्षेत्रकलपयोयोनिमज्ञामत्वेन सीत्वमाप्तौ वचनम् ॥ सत्र गृहम् आच्छादनम् सदादानम् बन दम्भ साधन यज्ञश ॥२०॥ शृद्धवेरमाकम् ॥ आजिर प्राङ्गणे वाते विपये दुईरे तनी ॥ अन्न मेध नाका ।। स्वार्थिक के अनक गिरिजामलम् ।। अर्थप्राधान्यात् शैलाभादयोऽपि ॥ पुष्कर परजन्योमपय करिकराग्रेषु ॥ तीर तटम् ॥ चाची तु तीरो बाहुलकात् पुसि ॥ उत्तर प्रतिवचनम् ॥ अगार गृहम् ॥ नागर मुखक शुण्ठी च ॥ स्फार विपुलम् । गुणवृत्तेस्वाभयलिता ॥ अक्षर वर्ण मोक्ष परब्रह्म च ॥ कुकुन्दर जघनकूप ॥ अर्थप्राधान्यात् ककुन्दरस्वावुके अपि ॥ उदर जठरव्याधियुद्धानि ॥ जठरे गिलियोऽयमिति बुद्धिसागर ॥ प्रान्तर विपिने दूरशुन्यवत्मनि कोटरे च। शिविर सैन्यम् तनिवेशश्च ॥ कलेवर शरीरम् ॥ २१ ॥ सिदूर धा| तुबिशेप ॥ अर्थप्राधान्यान् मसिवाईनम् गन्धोरम् नागसभवमित्यपि ॥ मण्डर लोहमलम् ॥ कटीरम् कटी। चामरम् प्रकीर्णकम् ॥ पुस्पपीति कबित् ॥ कर क्रौर्यम् ॥ दूर विप्रकृष्टम् ।। अन
योगुणगृत्स्याश्रयालिशय ॥ अरर कपाटम् रण | रम् विरोध ॥ चत्वर चतुष्पथम् ।। औशीर शयनासने चामर यष्टिश्च ॥ जय लान्ती । पाताल वडवानल । उलूखल गुग्गुल । निर्यासनामस्यात्पुरुचे प्रासे पाठ ॥ आर्तव पुष्प सीरजा ॥ सस्य व्यवसाये स्वभावे विलम्बिते चित्ते गुणे उव्यात्मभावयो ॥ चस्यानुक्तसमुच्चयार्थत्वात् तत्व स्वरूपे बाबभेदे परमात्मनि च ॥ पूर्व मुन्त गन्धतृण च ॥ साम्य साम दाक्षिण्य च ॥ द्विव दिवस स्वर्गव ।। किण्य सुराजिम् ॥ यौतय मानविशेष ॥ २२ ॥ विक्ष जगत् ।। वृश भावेर लशुन मूलक च ॥ पलिश यन पित्या मुगादि व्यापायते । अर्पिशम् आईमासम् ॥ बालवत्साया दुग्घ च ॥ अथ पान्ता ८॥ किल्थिप रोग अपराध विष च ॥ अनुतपं मवम् ।। अपिंपम् आईमासम् ॥ मिष व्याज ॥ चीपम् भाजीप च पिष्ठपचनभाजनम् ॥ शीर्ष शिर ॥ शीपोन्तत्वात् कपिशीर्षमपि ॥ पीयूपममृतम् प्रत्ययप्रसवगब्यादिक्षीरविकारध ॥ अथ सान्ता ८॥ साध्वस भयम् ॥ महानस पाकस्थानम् ॥ साहस दुष्परकर्म वैवात्यमाविमश्यकारिता दमश्च ॥ कासीस धातुविशेष ॥ अर्थमाधान्यात् धातुकासीसम् धातुशेखरमपि ॥ मत्स सधिस्थानम् ॥ तरस मासम् ॥ अर्थप्राधान्यात् उत्तम शुष्कमासम् ॥ यवसमचादिघास ॥ विस पाकन्द ॥ २३ ॥ मन्दाक्ष लज्जा का च ॥ वीक्ष विसय वश्य च ।। सपिय ऊरु ॥ 'इत्तु प्राण्या'-इति सीत्वप्रासो वचनम् ॥ अथोड़न्ता ॥रावातु अजगर ॥ यातु राक्षस ॥ स्वादु पय ॥ आशु शीपम् ॥ तुबह औषधिविशेष ॥ उकारान्तत्वात्पुरत्वे प्राप्ते वचनम् ॥ कसेर कन्दविशेष पृष्ठास्थि च ॥ अर्थप्राधान्यात् गादेयमपि ॥ रामानु
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