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६ नाटकं खेटकं तोटकम् ॥ आह्निकं रूपकं जापर्क जालक, वेणुकं गैरकं कारकं वास्लुकम् ॥ १३ ॥ रुचकं धान्याकनिःशलाकालीकालिकशरकोपसूर्यकाल्कम् ॥ कव
ककिबुकतोकतिन्तिडीकै डूकं छत्राकत्रिकोल्मुकानि ॥ १४ ॥ मावीककदम्बके बुकं चिबुकं कुतुकमनूकचित्रके ॥ कुहुकं मधुपर्कशीर्पके शालूकं कुलकं प्रकीर्णकम् ॥१५॥ हल्लीसकपुष्पके खलिङ स्फिगमॉ प्रगचोचवीजपिञ्जम् ॥ रिष्टं फाण्ट ललाटमिष्टव्युष्टं करोटकृपीटचीनपिष्टम् ॥१६॥ शृङ्गाटमारटपिटान्यथ पृष्ठगोष्ठभाण्डाण्डतुण्डशरणग्रहणेरणानि ॥ पिडाणतीक्ष्णलवणद्रविणं पुराणं त्राणं शणं हिरणकारणकार्मणानि ॥ १७ ॥ पर्याणर्णघाणपारायणानि श्रीपर्णोणे धोरणक्षणभूतम् ॥ प्रादेशान्ताश्मन्तशीतं निशान्तं वृत्तं तस्तं वार्तवाहित्यमुक्थम् ॥ १८॥ अच्छोदगोदकुसिदानि कुसीदतुन्दवृन्दास्पदं दपदनिन्नसशिल्पतल्पम् ॥ कूपत्रिविष्टपपरीपवदन्तरीपरूपं च गजयोत्रम् ॥ गैरिक धातुविशेष ॥ कारक कादि ॥ गुणवृत्तित्वाश्यलिङ्ग ॥ वास्तुक शाकविशेष ॥ १३ ॥ रुचक चन्दनपेपणी शिला ॥ धान्याकम् अल्लुका ॥ अर्थप्राधान्यात् धानेयकम् धान्यकम् धानीयकम् अपि । नि शलाक रह ॥ अर्थप्राधान्याजनान्तिकमपि ॥ अलीकं ललाटम् अलिक च ॥ शल्क खण्डम् ॥ उपसूर्यक परिवेप ॥ अत्कश्च रोग. ॥ कवक भूकन्दविशेष ।। किबुक जलोपन्नद्रव्याविशेष ॥ तोकमपत्यम् ॥ तितिडीक चुक्रम् ॥ एडूक्म् अन्तयस्तास्थि कुड्यम् ॥ छत्राक भूकन्दविशेष ॥ त्रिकम् पृष्ठाधोभाग ॥ उपमुकम् अलातम् ॥ ११ ॥ मावीक मृवीकासव ॥ अर्थप्राधान्यात् मावीकमपि हारहूर च ॥ सुरानामत्वेन स्त्रीत्वे प्राप्ते वचनम् ॥ कदम्बक समूह ॥ काभावे कदम्बम् ॥ बुक तृणविशेप ॥ चियुकमधरस्याध. ॥ कुतुक कुतूहलम् ॥ अनूकमन्वयः ॥ चिनक पुण्दम् ।। कुहुकमाश्चर्यम् ॥ मधुपके दधिमध्वादि देवादीनामर्घ ॥ शीर्षकम् शिरमाणम् ॥ शालूकमुपलादिकन्द. ॥ कुलक वृत्तसमूहः ॥ प्रकीर्णक चामरम् ॥ १५॥ हल्लीसक स्त्रीणा नृत्तभेद ॥ पुष्पक नेत्ररोग ॥ ख सवेदनम् ॥ लिङ्ग हेतुथिहन च ॥ अर्थप्राधान्याच्चिनमपि ॥ स्फिग स्फिग् ॥ अङ्ग प्रतीक समीप च ॥ अशान्तत्वावरान चक्राश च ॥ प्रगम् प्रभातम् ॥ चोचमुपभुक्तफलावशेषल्यादि । बीजम् हेतु आधान च ॥ पिक्षम् बलम् ॥ रिष्ट क्षेमम् ॥ फाण्टमनायासम् ॥ ललाट भालम् ॥ इष्ट ऋतुकर्म ॥ व्युष्ट प्रभातम् ।। करोट मस्तकम् कास्यभाजन च ॥ कृपीटमुदरम् ॥ चीनपृष्टम् सिन्दूरम् ॥ १६ ॥ शृङ्गाट जलोद्भवकन्द चतुप्पथ च ॥ मोरटमिक्षुमूलम् ॥ पिट छर्दि ॥ टान्ताना तु पुस्त्वे प्राप्तेऽस्य पाठ ॥ अथ ठान्ती ॥ पृष्ठम् प्राण्यङ्गम् ॥ गोष्ट गोकुलम् । गोष्टप्रत्ययान्तमपि ॥ गोगोष्टम् । अश्वगोएम् ॥ 'पशुभ्य स्थाने गोष्ठ' इति गोष्ठ । भाण्ड भाजनं गेह च ॥ अण्ड तृपण ॥ तुण्ड मुण्डम् ॥ अर्थप्राधान्यात् द्विजालयमपि ॥ शरण गृह वाण च ॥ ग्रहणमाढर ॥ इरिणमूपरम् ॥ अर्थप्राधान्यादूरमपि ॥ पिडाण काचभाजनम् गेह च ॥ तीक्ष्ण विषादि । लवण लावण्यम् ॥ द्रविण पराक्रम । अर्थप्राधान्यात् घुममपि ॥ पुराण पञ्चलक्षणम् ॥ त्राण वायमानाख्यो विधिविशेष ॥ शण धान्यविशेष ॥ हिरणम् 'विराटहेमरेत सु हिरण स्याद्धिरण्यवत् ॥ कारण हेतु. । कार्मण सवननमपि ॥ १७ ॥ पर्याण पल्ययनम् ॥ ऋणमुत्तमर्णदेयम् ॥ घ्राण घाणा ॥ पारायण शास्त्राविशेष ॥ श्रीपर्णमग्निमन्थ ।। उष्ण शीतविरोध ॥ धोरण वाहनम् ॥ क्षण विकलता ॥ भूत प्राणी ॥ प्रादेशान्त प्रमाणविशेषावस्थानम् । अश्मन्त चुलि ॥ शीतम् मरतुविशेष उष्णविरोधश्च ॥ निशान्तं गृहम् अवरोधश्च ॥ अन्तान्तत्वात्पुरवे प्राप्तेऽस्य पाठ ॥ वृन्त प्रसववन्धनम् ॥ वृन्तान्तत्वात्तालवृन्तमपि ॥ तूस्त केशजटा, जरहस्रम् । खण्डे तु सिद्धमेव । वार्तमारोग्य नि सार च ॥ अथ थान्तौ ॥ याहित्य गजकुम्भयोरध. ॥ उक्य साम ॥ १८ ॥ अथ दान्ता ११॥ अच्छोद देवसर ॥ उपलक्षणत्वाम्मानसमपि ॥ गोद मस्तकस्नेह ॥ कुसिद ऋणम् ॥ कुसीद विज्ञानम् ॥ तुन्दमुदरम् ॥ वृन्दम् समूह ॥ आस्पदं प्रतिष्ठा कृत्यम् च ॥ द कलन त्राण च ॥ पद त्राण स्थानम् ।। पादे पुस्यपि पदान्तत्वात् गोष्पदप्रपदादयोऽपि ॥ निम्न गम्भीरम् ॥ शिल्प विज्ञानम् ॥ तल्प रणमण्डप अट्ट' दाराश्च ॥ शयनीये तु पुक्लीय ॥ कूप ध्रुवोर्मध्यरोम ॥ कूपमिति भावि ॥ त्रिविष्टप स्वर्ग । त्रिपिष्टपमपि ॥ परीप परिगता आपो यन्त्र । अन्तरीप मध्येजलप्रदेश ॥ रूप चक्षुपिय. सौन्दर्य च ।। पुष्प स्त्रीरजोनेत्ररोगश्रीविमानप्रसूनेषु ॥ निकुरम्ब समूह ॥ कुटुम्ब
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