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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार से चली जाती है और यदि वह सत्ता कायम रखनी हो, तुम्हें हमेशा के लिए पुरुष ही रहना हो, तब सत्ता का दुरुपयोग मत करना, वर्ना सत्ताधीशों को अगले जन्म में स्त्री होना पड़ेगा! सत्ता का दुरुपयोग करें तो सत्ता चली जाती है।
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार पुरुष कहते हैं उसमें गलत क्या है। अपने आप नहीं मान लेती। तुमने कहा हो कि तू बहुत अच्छी है, तेरे जैसी और कोई नहीं, तू रूपमती है। तब वह रूपमती मान लेती है अपने आपको। इन पुरुषों ने स्त्री को स्त्री के रूप में ही रखा है। और स्त्री मन में समझती है कि मैं पुरुषों को मूर्ख बनाती हूँ। पुरुष ऐसा करके भोगकर अलग हो जाते हैं।
कुछ भी हो, पति नहीं हो, पति चला गया हो, फिर भी दूसरे के पास नहीं जाए। वह कैसा भी हो, यदि खुद भगवान पुरुष बनकर आए, तो भी नहीं। 'मुझे मेरा पति है मैं पतिव्रता हूँ' वह सती कहलाए। इस समय सती कह सकें ऐसा है इन लोगों का? है ही नहीं ऐसा नहीं लेकिन ज़माना ही अलग तरह का है! सत्युग में ऐसा टाइम कभी ही आता है, सतियों के लिए ही। इसलिए सतियों को याद करते हैं न हमारे लोग!
प्रश्नकर्ता : हाँ।
प्रश्नकर्ता: ऐसा नहीं कि स्त्री तो लम्बे अरसे तक स्त्री के अवतार में रहेगी, ऐसा निश्चित नहीं। लेकिन उनको उसका पता नहीं चलता, इसलिए उसका इलाज नहीं होता।
दादाश्री : उपाय हो तो स्त्री, पुरुष ही है। उस ग्रंथि को जानती ही नहीं है बेचारी और वहाँ पर इन्टरेस्ट (रुचि) आता है, वहाँ मज़ा आता है। इसलिए वहीं पड़ी रहती है और कोई ऐसा रास्ता जानता नहीं इसलिए उसे दिखाता नहीं। केवल सती स्त्रियाँ ही समझती हैं, सतियाँ पति के सिवा दूसरे किसी का विचार किसी हाल में भी नहीं करतीं । उसका पति तुरन्त
ऑफ हो जाए (मर जाए), चला जाए फिर भी नहीं। उसी पति को पति समझती है। इससे उन स्त्रियों का सारा कपट खत्म हो जाता है।
दादाश्री : वह तो सती होने की कामना से। उसका नाम लिया हो तो एक दिन सती होगी और विषय तो आजकल चूड़ियों के भाव बिक रहा है। यह आप जानते हैं? मेरा कहना आपकी समझ में आया?
प्रश्नकर्ता : हाँ, चूड़ियों के भाव बिकता है।
दादाश्री : किस बाज़ार में? कॉलिजों में! किस मोल बिकता है? सोने के मोल चूड़ियाँ बिकती हैं। वहाँ हीरों के मोल चूड़ियाँ बिकती है ! सब जगह ऐसा होता है, नहीं होता? सर्वत्र ऐसा नहीं है। कितनी तो सोना दो तो भी न ले। चाहे कुछ भी दो तो भी नहीं लेती। लेकिन कछ तो बिक जाती हैं, आज की औरतें। सोने के मोल नहीं तो दूसरे भाव पर बिक जाती हैं!
सतीत्व रखे तो अपने आप ही कपट जाने लगेगा। तुम्हें कुछ कहना नहीं होगा। मूल सती जन्म से ही सती होती है। उसे पहले के कोई दाग़ नहीं होते। जबकि तुम्हें पहले के दाग़ है, वे खत्म होने के बाद पुरुष होंगी। लेकिन पुरुषों में भी सभी एक समान नहीं होते। कुछ पुरुष स्त्रियों जैसे भी होते हैं। थोड़े स्त्री के लक्षण रह जाते हैं और बाद में संयोग से सतीत्व प्राप्त हो तो कपट खतम हो जाता है। परुष हो तो सती की तरह उसके सारे दोष खतम होते जाएँ। सतीत्व के कारण सारे दोष खतम हो जाते हैं। जितनी सतियाँ हुई उनके सारे दोष खतम हो जाते हैं और वे मोक्ष में जाती हैं। कुछ समझ में आता है? मोक्ष में जाने के लिए सती होना पड़ेगा। हाँ, जितनी सतियाँ हुईं वे मोक्ष में गईं, वर्ना पुरुष होना पड़ता है। पुरुष भोले होते हैं बेचारे, जैसे नचाये वैसे नाचते हैं बेचारे। पुरुषों को स्त्रियों ने ही नचाया है। स्त्रियों में केवल सती स्त्री अकेली ही पुरुषों को
अतः इस विषय को लेकर पुरुष स्त्री हुआ है, केवल एक विषय के कारण ही और पुरुष ने भोगने के लिए स्त्री को एनकरेज (प्रोत्साहित) किया और बेचारी को बिगाड़ा। बरकत नहीं होती हो फिर भी खुद में बरकत है ऐसा मन से मान लेती है। तब पूछे कि कैसे मान लिया? पुरुषों के बार बार कहने पर समझने लगती है। इसलिए वह जाने कि ये जो