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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार ९२ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार भोजन का पूरण किया उसका संडास में गलन होगा। पानी पीया इसलिए पेशाब में, श्वाच्छोश्वास सब पुद्गल परमाणु। पुरुष होना हो तो ये दो गुण छूटें तब हो, मोह और कपट। मोह और कपट दो तरह के परमाणु इकटे हों तो स्त्री होती है और क्रोध और मान इकट्ठा हों तो पुरुष होता है। परमाण के आधार पर यह सब हो रहा है। एक बार बहनों ने मुझे पूछा कि हमारे कुछ विशिष्ट दोष होते हैं, उनमें ज्यादा नुकसानदायक दोष कौन-सा है? तब मैंने कहा, 'वह अपनी मनमानी कराना चाहती है।' सभी बहनों की इच्छा ऐसी होती है कि अपनी मरजी के मुताबिक करवायें। पति को भी उलटी राह पर ले जाकर उसके पास अपना मनचाहा करवायें। अर्थात् यह गलत, उल्टा रास्ता है। मैंने उनसे लिखवाया है कि यह रास्ता नहीं होना चाहिए। मरजी के मुताबिक करवाने का अर्थ क्या है? बहुत ही नुकसानदायक! प्रश्नकर्ता : परिवार का भला होता हो, ऐसा हम करवायें तो उसमें गलत क्या? दादाश्री : नहीं, वह भला कर ही नहीं सकती न! जो मरजी के मुताबिक करते हों, वे कभी परिवार का भला नहीं करते। परिवार का भला कौन करे कि सभी की मरजी के मुताबिक हो इस तरह से हो तो अच्छा, ऐसा रखें वह परिवार का भला कर सकता है। किसी का भी मन नाराज नहीं हो इस प्रकार हो तब। अपनी मरजी के मुताबिक करवाना चाहें वह तो परिवार का भारी नुकसान करता है। वह तकरार और झगड़ा करने का साधन है। मरजी के मुताबिक न हो तो फिर खाये भी नहीं, दु:खी हो कर बैठी रहे। किसे मारने जाए, मन मारकर बैठी रहे। लेकिन दूसरे दिन फिर कपट करेगी। वह कुछ जाएगा थोड़े? मरज़ी के मुताबिक करना चाहे पर नहीं हो तब क्या हो? ऐसा सब नहीं करना चाहिए। बहनों, अब आप उदार दिल के हो जाओ। प्रश्नकर्ता : स्त्रियाँ अपने आँसुओं के सहारे पुरुषों को पिघला देती हैं और अपना गलत है उसे भी सत्य ठहराती हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है? दादाश्री : बात सच्ची है। उसका गुनाह उसे लाग होता है और ऐसा आग्रह रखती है न, इसलिए विश्वास उठ जाता है। कई स्त्रियाँ अकेले में मुझे कह देती हैं, 'हमारे पति भोले हैं।' यह इटसेल्फ (स्वयं) सूचित करता है कि यह तो स्त्रियाँ पति को नचाती हैं। माल कपट का भरा हुआ है इसलिए परन्तु ऐसा नहीं बोल सकते, क्योंकि बुरा दिखे। उसके दूसरे गुण बहुत सुन्दर हैं। प्रश्नकर्ता : स्त्री को एक और तो लक्ष्मी कहते हैं और दूसरी ओर कपटवाली, मोहवाली कहा, ऐसा क्यों? दादाश्री : लक्ष्मी कहते हैं तो क्या वह कुछ ऐसी-वैसी है? जब पति नारायण कहलाए तो वह क्या कहलाए? अर्थात् उस जोड़े को लक्ष्मीनारायण कहते हैं ! तो क्या वे कुछ निम्न कक्षा की हैं? स्त्री तो तीर्थंकर की माता हैं। जितने तीर्थकर हुए न, चौबीस, उनकी माता कौन थी? प्रश्नकर्ता : स्त्रियाँ। दादाश्री : तब वे निम्न कक्षा की कैसे कहलायें? स्त्री होने की वजह से मोह तो होता ही है हमेशा। पर जन्म किसे दिया? बड़े बड़े तीर्थंकरों को, सभी को... बड़े लोगों को जन्म वे ही देती हैं। उन्हें हम कैसे बदनाम कर सकते हैं? लेकिन फिर भी हमारे लोग स्त्रियों को बदनाम करते हैं। प्रश्नकर्ता : हम सदैव स्त्री से ही कहते हैं कि तुम्हें मर्यादा रखनी चाहिए, हम पुरुष से नहीं कहते। दादाश्री : वह तो अपने मनुष्यपन का गलत उपयोग किया है। सत्ता का दुरुपयोग किया है। सत्ता के दो उपयोग हो सकते हैं; एक सदुपयोग और दुरुपयोग। सदुपयोग करें तो सुख मिले लेकिन अभी दुरुपयोग करते हो, इसलिए दु:खी होते हो। जिस सत्ता का दुरुपयोग करें वह सत्ता हाथ
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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