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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार हैं। समझते नहीं है न! कोई चारा नहीं हो तभी ऐसी हिंसा हो ऐसा होना चाहिए। लेकिन ऐसी समझ नहीं तब क्या करें? पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार नहीं नचाती। सती तो पति को परमेश्वर (भगवान) समझती है! प्रश्नकर्ता : ऐसा जीवन बहुत कम लोगों का देखने को मिलता है। दादाश्री : इस कलियुग में कहाँ से हो? सतयुग में भी बहुत कम सतियाँ होती थीं, तो इस कलियुग में कहाँ से हो? अतः स्त्रियों का दोष नहीं है, स्त्रियाँ तो देवियाँ जैसी हैं। स्त्रियों में और पुरुषों में आत्मा तो आत्मा ही है, केवल पैकिंग का फर्क है। 'डिफरन्स ऑफ पैकिंग!' स्त्री एक प्रकार का 'इफेक्ट' (परिणाम) है। इसलिए आत्मा पर स्त्री का इफेक्ट रहता है। इसका 'इफेक्ट' हम पर नहीं हो तो अच्छा। स्त्री तो शक्ति है। इस देश में कैसी-कैसी स्त्रियाँ राजनीति में हो गई! और धर्मक्षेत्र में जो स्त्री जुड़ी हो वह कैसी हो? इस क्षेत्र से जगत का कल्याण ही कर दे! स्त्री में तो जगत कल्याण की शक्ति भरी पड़ी है! उसमें खुद का कल्याण करके दूसरों का कल्याण करने की शक्ति है। विषय बंद वहाँ प्रेम सम्बन्ध विवाहित जीवन की शोभा कब बढ़े? जब (विषय सम्बन्ध में) दोनों को बुखार चढ़े तभी दवाई पीएँ। बिना बुखार दवाई पीते हैं या नहीं? बिना बुखार दवाई पीने पर विवाहित जीवन की शोभा नहीं रहती। दोनों को बुखार चढ़े तभी दवाई पीओ। दिस इज ऑन्ली मेडिसिन (यह केवल दवाई है)। मेडिसिन (दवाई) मीठी हो तो भी हर रोज पीने जैसी नहीं होती। विवाहित जीवन की शोभा बढ़ानी हो तो संयमी पुरुष की आवश्यकता है। ये सभी जानवर असंयमी कहलाते हैं। हमारा तो संयमी जीवन चाहिए। आगे जो राम-कृष्ण आदि हो गए, वे सभी पुरुष संयमवाले थे। स्त्री के साथ संयमी! यह असंयम क्या दैवी गण है? नहीं, वह पाशवी गुण है। मनुष्यों में ऐसा नहीं होता। मनुष्य असंयमी नहीं होना चाहिए। जगत समझता ही नहीं कि विषय क्या है? एक बार के विषय में पाँचपाँच लाख जीव मर जाते हैं, उसकी समझ नहीं होने से यहाँ मौज उड़ाते सभी धर्मों ने उलझन पैदा की कि स्त्रियों का त्याग करो। अरे, स्त्री का त्याग कर के मैं कहाँ जाऊँ? मझे खाना कौन पका कर देगा? मैं अपना व्यापार सम्हालूँ कि घर में चूल्हा फूंकू? शास्त्रकारों ने विवाहित जीवन की सराहना की है। उन लोगों ने विवाहित जीवन की निंदा नहीं की है। विवाह के सिवाय दूसरा व्यभिचार है उसकी निंदा की है। प्रश्नकर्ता : विषय पुत्र प्राप्ति के लिए ही होना चाहिए या फिर बर्थ कंट्रोल करके विषय भोग सकते हैं? दादाश्री : नहीं, नहीं। वह तो ऋषि-मुनियों के समय में, पहले तो पति-पत्नी का व्यवहार ऐसा नहीं था। ऋषिमुनि विवाह करते थे, तब पहले तो शादी करने की ही ना कहते थे। तब ऋषि पत्नी ने कहा, कि आप अकेले! आपका संसार ठीक से चलेगा नहीं, प्रवृति ठीक से होगी नहीं, इसलिए हमारी पार्टनरशिप (साझेदारी) कीजिए, स्त्रियों की, तब आपकी भक्ति भी होगी और संसार भी चलेगा। तब उन ऋषि-मुनियों ने एक्सेप्ट (स्वीकार) किया, लेकिन कहा कि 'हम तुम्हारे साथ संसार नहीं बसायेंगे।' तब इन स्त्रियों ने कहा कि 'नहीं, हमें एक पत्र दान और एक पत्री दान, दो दान देना केवल। तब उस दान जितना ही संग, दूसरा कोई सरोकार नहीं। बाद में हमारी आपसे संसार में फ्रेन्डशिप (मित्राचारी) रहेगी।' इसलिए उन लोगों ने एक्सेप्ट किया। और फिर वे मित्र की भाँति ही रहती थीं, पत्नी के रूप में नहीं। वह घर का सब काम देखती और यह बाहर का काम देखते। बाद में दोनों साथ-साथ भक्ति करने बैठते। लेकिन अब तो बस यही काम रह गया है सारा! इससे सब बिगड़ गया है। ऋषिमुनि तो नियमवाले थे। अभी अगर एक पुत्र या एक पुत्री के लिए शादी हो तब हर्ज नहीं।
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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